प्रथमेश व्यास
भारतीय संस्कृति में नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है। प्रमुख वार-त्योहारों पर श्रद्धालु इन्ही नदियों के घाट किनारे स्नान करने जाते है और पात्रों में भरकर इन नदियों के जल को अपने घरों में भी लाते हैं। इस जल का उपयोग घर की शुद्धि करने, चरणामृत में मिलाने, पूजा या अनुष्ठान करने जैसे कई धार्मिक कार्यों में किया जाता है। लगभग हर हिन्दू परिवार में आपको एक कलश मिल ही जाएगा जिसमे गंगाजल होता है। भारत में लोग गंगा जल को सबसे ज्यादा पवित्र मानते हैं और बताते हैं कि इसका पानी कभी ख़राब नहीं होता। अब सवाल ये है कि इतने अवांछित पदार्थों के मिल जाने के बाद भी गंगा जल आखिर खराब क्यों नहीं होता?
हिन्दू वेद-पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की माने तो उनमें गंगा की महिमा का वर्णन कई कथाओं के माध्यम से मिल जाएगा। इस विषय में एक घटना ये भी प्रचलित है कि एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने वर्ष 1890 में गंगा के पानी पर रिसर्च भी की थी। दरअसल, उस दशक में भारत के कई हिस्सों में हैज़ा का भयंकर प्रकोप था, जिसने कई लोगों की जान ली थी। उस समय लोग लाशों को गंगा नदी में फ़ेंक जाते थे। गंगा के उसी पानी में नहाकर या उसे पीकर अन्य लोग बीमार ना पड़ जाए, इसी बात की चिंता उस वैज्ञानिक को थी। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और गहन शोध के बाद उसने यह पाया की गंगा नदी के पानी में विचित्र वायरस है जो इसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। इस वजह से गंगा के पानी को घरों में कई दिनों तक रखा जाने के बाद भी उसमें से दुर्गंध नहीं आती।
'पवित्रता के पर्याय' गंगाजल का नाम आते ही ये सवाल हमारे मन में जरूर आता है। लेकिन इसका जवाब भी वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है। दरअसल, हिमालय में स्थित गंगोत्री से निकली गंगा का जल इसलिए कभी खराब नहीं होता, क्योंकि इसमें गंधक, सल्फर इत्यादि खनिज पदार्थों की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा का जल हिमालय पर्वत पर उगी कई उपयोगी जड़ी-बूटियों को स्पर्श करते हुए आता है। एक अन्य रिपोर्ट ये भी दावा करती है कि गंगा जल में' बैक्ट्रिया फोस' नामक एक विशेष बैक्टीरिया पाया जाता है, जो इसमें पनपने वाले अवांछित पदार्थों को खाता रहता है, जिससे इसकी शुद्धता बनी रहती है।
गंगा हिमालय से शुरू होने के बाद कानपुर, वाराणसी और प्रयागराज जैसे शहरों तक पहुंचती है जहां खेतीबाड़ी का कचरा-कूड़ा और औद्योगिक रसायनों की भारी मात्रा इसके पानी में मिल जाती है , इसके बाद भी गंगा का पानी पवित्र बना रहता है। इसका एक और वैज्ञानिक कारण है कि इसे शुद्ध करने वाला तत्त्व गंगा की तलहटी में ही मौजूद है। कई वर्षों से गंगा के पानी पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने ये निष्कर्ष निकाला है कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है, जो दूसरी नदियों के मुकाबले कम समय में पानी में मौजूद गंदगी को साफ़ करने में मदद करती है।