Gangaur Vrat Puja Vidhi and significance in Hindi: गणगौर व्रत भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है, जिसमें कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं। गणगौर व्रत 2025 में भी महिलाएं पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस पावन पर्व को मनाएंगी। आइए, जानते हैं गणगौर व्रत की पूजा विधि, दिनभर के नियम और आवश्यक पूजन सामग्री के बारे में।
गणगौर का अर्थ क्या है?
गणगौर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - "गण" और "गौर"। "गण" का अर्थ होता है भगवान शिव और "गौर" का अर्थ है देवी पार्वती, जिन्हें गौरी भी कहा जाता है। इस प्रकार, गणगौर का अर्थ है शिव और पार्वती का दिव्य मिलन, जो प्रेम, समर्पण और अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। गणगौर पर्व विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है, जो मां गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन और अच्छे वर की प्रार्थना करती हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है।
गणगौर व्रत कैसे मनाते हैं?
वैसे तो गणगौर व्रत की शुरुआत होली के बाद से ही हो जाती है। विवाहित और कुंवारी महिलाएं इस पर्व को पूरे नियम और निष्ठा के साथ करती हैं। 16 दिन तक व्रत रखने वाली महिलाएं हर दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनतीं हैं और मिट्टी की गणगौर (गौरी) और ईसर (भगवान शिव) की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं।
इस व्रत में महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को गौरी माता को जल चढ़ाने के बाद ही कुछ ग्रहण करती हैं। गणगौर माता को सुहाग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं, जैसे चूड़ी, बिंदी, कुमकुम, महावर, सिंदूर, चुनरी आदि। साथ ही, भोग के रूप में हलवा, पूड़ी और मीठे पकवान बनाए जाते हैं।
गणगौर व्रत में दिनभर क्या किया जाता है?
सुबह की शुरुआत व्रती महिलाएं प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करती हैं और मां गणगौर (गौरी) व भगवान शिव (ईसर) की पूजा करती हैं। विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और मां गौरी को भी श्रृंगार अर्पित करती हैं। दिनभर महिलाएं व्रत रखती हैं और गणगौर माता के भजन गाती हैं। शाम को माता गौरी की विशेष पूजा होती है और जल अर्पण कर व्रत का समापन किया जाता है। अंतिम दिन महिलाएं नदी, तालाब या किसी जल स्त्रोत पर गणगौर माता का विसर्जन करती हैं।
गणगौर पूजा विधि (Gangaur Vrat Puja Vidhi in Hindi)
गणगौर व्रत के दिन प्रातः स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात, भगवान शिव और माता गौरी की मूर्तियों को मिट्टी से बनाकर उन्हें सुंदर परिधानों से सजाएं।
फिर, विधिवत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। पूजा के दौरान माँ गौरी को सुहाग सामग्री अर्पित करें। भगवान शिव और माता पार्वती को रोली, चंदन, अक्षत और कुमकुम से तिलक करें।
उनके चरणों में दूर्वा अर्पित करें और श्रद्धा भाव से धूप-दीप प्रज्वलित करें। साथ ही, उन्हें प्रेमपूर्वक चूरमे का भोग लगाएं।
एक थाली में पान, सुपारी, चांदी का सिक्का, दूध, दही, गंगाजल, हल्दी, कुमकुम और दूर्वा रखकर सुहाग जल तैयार करें।
इसके बाद, दूर्वा की सहायता से इस पवित्र जल को भगवान शिव और माता गौरी पर छिड़कें और फिर घर के अन्य सदस्यों पर भी इसे छिड़कें, जिससे परिवार पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहे।
गणगौर पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
गणगौर पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार है -
मिट्टी की गणगौर (गौरी) और ईसर (भगवान शिव) की प्रतिमा
लाल चुनरी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, कुमकुम, महावर, काजल आदि सुहाग सामग्री
रोली, अक्षत, हल्दी, फूल, फल और पंचामृत
दीपक, धूप, कपूर और गंगाजल
भोग के लिए हलवा, पूड़ी, मीठे पकवान
गेहूं और जौ के अंकुर (जिन्हें गणगौर माता को चढ़ाया जाता है)
गणगौर व्रत का महत्व: गणगौर व्रत का महत्व बहुत अधिक है। इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मिलता है, जबकि कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था, तभी उन्हें शिवजी का आशीर्वाद मिला था। इसी कारण गणगौर व्रत को अखंड सौभाग्य का पर्व माना जाता है।
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