सिलसिला शुरू हुआ कोई पंद्रह साल पहले जब हिजड़ों ने चुनाव लड़ना शुरू किया था। लोगों ने कहा आप क्यों नहीं लड़तीं? सांसद का चुनाव लड़ा और उन्हें इसमें मज़ा आने लगा। दो बार सांसद और एक बार विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। गाजियाबाद के हिजड़ों की गुरु हैं।
पूरा नाम दयारानी है, मगर लोगों में दयारानी किन्नर ही मशहूर है। उनके चुनाव पोस्टर पर भी दयारानी किन्नर ही लिखा है। वे जाटव समाज से हैं। इस बार उनका नामांकन रद्द हो गया है और जिस दिन नामांकन रद्द किया गया, उन्होंने डीएम को खूब खरी-खोटी सुनाई। बद्दुआएं भी दीं। यहां के अखबारों में ये वाकया कई दिनों तक छाया रहा।
पिछले डेढ़ बरस से दयारानी उन ठगों के चक्कर में पड़ गई हैं, जो लोगों को अपनी बेनाम सी पार्टी का टिकट देता है और पैसा ऐंठा है। पार्टी का नाम है 'भारतीय नौजवान इंकलाब पार्टी'। इस पार्टी ने डेढ़ साल पहले ही दयारानी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस पार्टी का कर्ता-धर्ता भी ठगनुमा नेता और नेतानुमा ठग है। हर वार-त्यौहार पर पार्टी ने उनसे खूब विज्ञापन दिलवाए (और दयारानी के बहाने अपना प्रचार किया)।
खूब बैनर पोस्टर भी लगवाए। खूब दावतें भी खाईं और चंदा भी ऐंठा। डेढ़ साल में दयारानी अपने चुनाव प्रचार में 65 लाख रुपए फूंक चुकी हैं। उन पर हिजड़ा बिरादरी का उधार भी खूब चढ़ गया है। पार्टी ने उनसे यही कहा था कि इस बार तो आप ही जीतेंगी, फिर आपका सब घाटा पूरा हो जाएगा। मगर डीएम ने उनका नामांकन इस आधार पर रद्द कर दिया कि दो अलग-अलग कागजों पर उनके अंगूठे के निशान एक से नहीं हैं (दयारानी अंगूठाटेक हैं)।
दयारानी को लोग नेताजी कहते हैं। वे रहती हैं गाजियाबाद की एक गंदी सी बस्ती में। बस्ती का नाम है कैला भट्टा गोशाला फाटक। उनके घर के आगे रेल की पटरियां हैं, जिनसे दिन-रात रेलें गुजरा करती हैं। आस-पास सब खुदा पड़ा है और बहुत ही बदहाली है। मगर इतने चुनाव लड़ने का फायदा यह हुआ है कि सब उन्हें जानने लगे हैं। किसी से भी पूछिए कि दया रानी कहां रहती हैं, तो कहता है- ''अच्छा वो नेताजी...''। दयारानी के पास कार है, जिसका जिस पर उन्होंने बिना किसी इजाज़त या पात्रता के वो वाला सायरन लगवा रखा है, जो बड़े अफसरों और मंत्रियों की कार में लगा रहता है (मुमकिन है इसी से खीजकर डीएम ने उनका नामांकन रद्द किया हो)।
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दयारानी को पूरा यकीन है कि इस बार उनका जीतना तय था। उनका कहना है कि गाजियाबाद में 16 हजार तो किन्नर ही हैं। फिर इस बार जाटव समाज के लोगों ने भी मुझसे कहा था कि मायावती को बहुत बार वोट दिया, उसने कुछ नहीं किया, इस बार जरूर तुम्हें देंगे। डीएम एसवीएस रंगाराव का जिक्र छिड़ते ही उनके मुंह से गालियों और बद्दुआओं का फव्वारा सा छूट पड़ता है।
एक दूसरा हिजड़ा कहता है- '' इन अफसरों के घर में एक न एक लड़का जरूर 'खराब' होता है। हमारी मुट्ठी में सबके राज हैं। अगर बोलने पर आएंगी तो ये भागते फिरेंगे।'' दयारानी कहती हैं कि अगर 16 ही प्रत्याशी रखने थे तो किसी और का नाम काट देते। मुझ हिजड़े की बद्दुआ क्यों ले रहे हैं।
वैसे यह बात भी सच है कि इस बार कई जगह से ऐसे लोगों के नामांकन रद्द हुए हैं, जो मजे के लिए चुनाव लड़ते हैं। पटना से धरतीपकड़ का नामांकन भी लगभग अबूझ कारणों से रद्द किया गया है। दयारानी किन्नर का नामांकन भी ऐसे कारण से रद्द हुआ, जो कारण था नहीं, बनाया गया।
बहरहाल दया रानी को 'भारतीय नौजवान इंकलाब पार्टी' की असलियत भी समझ में आ गई है और उनकी बद्दुआओं की बौछार उस पार्टी पर भी हो रही है, जिसने उन्हें उम्मीदवार बनाकर (फंसा कर) लाखों रुपया खर्च करा दिया।
एक और दिलचस्प खबर यहां से यह है कि बड़ी पार्टियों के किसी भी उम्मीदवार ने प्रशासन से सुरक्षा नहीं मांगी है। मगर तीन निर्दलियों ने कहा है कि उन्हें सुरक्षा दी जाए। नियम है कि नामांकन भरने वाले को सुरक्षा दी जाती है, बशर्ते कि वो सुरक्षा मांगे और ये सुरक्षा मुफ्त होती है। निर्दलीय सोच रहे हैं कि जब जमानत के पैसे वापस नहीं मिलने वाले, तो यही 'वीआईपीपन' भोग लिया जाए। बहरहाल दया रानी दुखी हैं। अगली बार कोई भी चुनाव हो, वे जरूर लड़ेंगी।