बाड़मेर। ससंदीय चुनावों में सरहदी बाड़मेर लोकसभा सीट पर यह संभवत: पहला मौका होगा, जब इस सीट पर चुनावी दंगल भाजपा बनाम कांग्रेस होने के बजाय भाजपा बनाम भाजपा और कांग्रेस बनाम कांग्रेस हो गया है।
ऐसे समय में जब चुनावी समर अपने चरम पर है, दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे को चुनौती देने के बजाय अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं।
पाला बदलकर कांग्रेसी से भाजपाई बने सोनाराम चौधरी और भाजपा से निष्कासित नेता जसवंत सिंह ने बाड़मेर लोकसभा सीट पर चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है।
बाड़मेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा सांसद हरीश चौधरी को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है वहीं भाजपा ने कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद पार्टी छोड़कर कुछ ही दिन पहले भाजपा में शामिल हुए सोनाराम चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा उम्मीदवार चौधरी इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर 4 बार लोकसभा चुनाव लड़कर 3 बार संसद में बाड़मेर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2 बार विधानसभा चुनाव लड़कर 1 बार राज्य विधानसभा में बाड़मेर की बायतु विधानसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा के कैलाश चौधरी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सोनाराम को करीब 15 हजार मतों से हराया था। शिकस्त के बाद सोनाराम चौधरी ने कांग्रेस से लोकसभा का टिकट मांगा लेकिन पार्टी की ओर से हरीश चौधरी को मौका देने पर सोनाराम दलबदल कर कांग्रेसी से भाजपाई बन गए।
बाड़मेर संसदीय सीट पर कुछ ऐसी ही स्थिति वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की भी है। भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण इसे स्वामिभान की लड़ाई बताकर सिंह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर पड़े हैं। बगावत के बाद उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है।
हालांकि जसवंत सिंह इस सीट से पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके पुत्र और वर्तमान में बाड़मेर की शिव विधानसभा सीट के मौजूदा विधायक मानवेन्द्र सिंह इस सीट से 3 बार 1998, 2004 और 2009 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
वर्ष 1998 में मानवेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के सोनाराम चौधरी से शिकस्त खाई और 2004 के चुनावों में सोनाराम चौधरी को करारी शिकस्त दी। मानवेन्द्र 2009 में कांग्रेस के हरीश चौधरी से चुनाव हार गए थे।
बाड़मेर लोकसभा सीट पर करीब 17 लाख मतदाताओं में से 3.5 लाख जाट, 2.5 लाख राजपूत, 4 लाख एससी-एसटी, 3 लाख अल्पसंख्यक और शेष अन्य जातियों के मतदाता हैं। विश्लेषकों का मानना है कि सोनाराम चौधरी के कारण कांग्रेसी वोट बैंक में बिखराव आ सकता है। चौधरी भी 50 फीसदी कांग्रेसी वोट मिलने का दावा कर रहे हैं।
कांग्रेस की तरह कुछ ऐसी ही स्थिति भाजपा की है जिसे पार्टी के पंरपरागत वोट बैंक के जसवंत सिंह के पक्ष में लामबंद होने का डर सता रहा है। इसमें राजपूत और ओबीसी चारण, पुरोहित, प्रजापत जैसी जातियां शामिल हैं।
सिर्फ यही नहीं, भाजपा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग भी जसवंत सिंह के पक्ष में खुलकर खड़ा है। राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा के अनुसार कर्नल सोनाराम चौधरी को भाजपा में लाने और उन्हें टिकट दिलवाने में वसुंधरा राजे की भूमिका रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सोनाराम अगर इस सीट पर चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो इससे न सिर्फ राजस्थान में भाजपा के मिशन-25 को झटका लगेगा, वरन पार्टी में वसुंधरा के निर्णय पर भी सवाल उठेंगे। (भाषा)