विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की शुरुआत में कांग्रेस ही एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी। 1951 के बाद राजनीतिक पटल पर भाजपा का उदय हुआ। इसके अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की है।
प्रमुख रूप से तीन ये तीन पार्टियां ही राष्ट्रीय पार्टियां मानी जाती हैं, किंतु कम्युनिस्ट पार्टी कभी भी पश्चिम बंगाल और केरल से बाहर निकल कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पाई इस बीच राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने अपनी पैठ बनाई। प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की संक्षिप्त जानकारी-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में ए.ओ. ह्यूम द्वारा की गई थी। ह्यूम पार्टी के प्रथम महासचिव थे, जबकि वोमेश चंद्र बैनर्जी पार्टी के प्रथम अध्यक्ष।
पार्टी के आरंभिक दिनों में इसके सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रेजीडेंसी से थे। लिहाज़ा कांग्रेस कुलीनवर्गीय संस्था थी, जबकि बालगंगाधर तिलक ने सबका ध्यान स्वराज विचारधारा की ओर खींचा। आगे चलकर 1907 में कांग्रेस गरम और नरम दल के रूप में बंट गई।
गरम दल का नेतृत्व लाल-बाल-पाल अर्थात लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और बिपिनचंद्र पाल के हाथ था, जबकि गोपालकृष्ण गोखले, फिरोज़शाह मेहता और दादा भाई नौरोजी नरम दल के पैरोकार थे। गरम दल की मांग थी पूर्ण स्वराज, जबकि नरम दल ब्रिटिश राज में ही स्वशासन चाहता था लेकिन 1914 में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने के बाद 1916 में लखनऊ में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में दोनों दल एक हुए और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई।
इसके तहत स्वतंत्र-उपनिवेश राज्य की आवाज़ उठाई गई। इस बीच 1916 में गांधीजी के स्वदेश आगमन से कांग्रेस में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1916 में बिहार के चंपारन जिले और 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में हुई सभाओं ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अभियान को ज़बरदस्त गति प्रदान की।
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद गांधीजी को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस अब कुलीनवर्ग के आधिपत्य से निकलकर जनसाधारण की संस्था बन गई। इसी समय सरदार वल्लभभाई पटेल, पं.जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सुभाषचंद्र बोस आदि नई पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में उभरे।
गांधीजी ने प्रेदश कांग्रेस कमेटियों का गठन किया। पार्टी के सभी पदों के लिए चुनाव प्रारंभ हुए। पार्टी ने छुआछूत, पर्दाप्रथा व मद्यपान जैसी सामाजिक समस्याएं समाप्त करने के प्रयास किए। सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में 1931 में कांग्रेस के ऐतिहासिक कराची अधिवेशन में मूल अधिकारों के बारे में प्रस्ताव पास किया गया, जिसे स्वयं महात्मा गांधी ने पेश किया।
यह एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके तहत यह मांग की गई कि स्वराज्य मिलने के बाद देश का जो संविधान बनाया जाए, उसमें इस प्रस्ताव में उल्लेखित कुछ मूल अधिकार अवश्य शामिल हों। प्रस्ताव में कहा गया था देश की जनता का शोषण न हो, इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक आजादी के साथ -साथ करोड़ों अभावग्रस्त लोगों को असली मायनों में आर्थिक आजादी मिले।
अगस्त 1942 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ऐतिहासिक बैठक हुई। इसमें महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' का नारा दिया, जिसका भारतीय जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ा और जनता फिरंगियों से आजादी छीनने के लिए उठ खडी हुई।
भारत के लोग निहत्थे थे, फिर भी ब्रिटिश शासकों की पाश्विक शक्ति से एक होकर निडरता से भिड़े। उनके संघर्ष को 1947 में सफलता मिली और भारत आजाद हुआ। 1955 में हुआ आवड़ी अधिवेशन, 1959 में हुआ नागपुर अधिवेशन, जनवरी 1964 में हुआ भुवनेश्वर अधिवेशन सहित कांग्रेस के अनेक महत्वूपर्ण सम्मेलन हुए।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए 27 मई 1964 को नेहरू की मृत्यु हो गई। पश्चात 'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री नियुक्त हुए। जनवरी 1966 में ताशकंद में लालबहादुर शास्त्री का देहांत हो गए। 1967 में आम चुनाव हुए।
इन चुनावों में एक बड़ा परिवर्तन हुआ। डॉ. राममनोहर लोहिया लोगों को आगाह करते आ रहे थे कि देश की हालत को सुधारने में कांग्रेस नाकाम रही है। कांग्रेस शासन नए समाज की रचना में सबसे बड़ा रोड़ा है। उसका सत्ता में बने रहना देश के लिए हितकर नहीं है इसलिए उन्होंने नारा दिया, 'कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ।'
देश के 9 राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकारें गठित हुईं। डॉ. लोहिया इस परिवर्तन के प्रणेता और सूत्राधार बने। इस हार पर कांग्रेस ने बैठक कर यह निर्णय लिया गया कि यदि पार्टी को समाजवाद प्राप्त करना है, तो अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन करने होंगे।
1969 में बैंगलोर अधिवेशन हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी ने कार्यसमिति के समक्ष एक नोट पेश किया, जो 'स्ट्रे थॉट' नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1971 में हुए मध्यावधि चुनावों में कांग्रेस को दो तिहाई से अधिक सीटें मिलीं। इसी वर्ष दिसंबर में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया और हार का मुंह देखा। यहीं से बांग्लादेश का उदय हुआ।
1974 में जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया। आंदोलन को भारी समर्थन मिला। इससे निपटने के लिए इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की, जिसका भारी विरोध हुआ। जनता पार्टी एक शक्ति बनकर उभरी। 1977 में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हारी और विपक्ष में बैठी।
1980 के चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 544 लोकसभा सीटों में से 351 पर विजयी प्राप्त कर भारी बहुमत से चुनाव जीता। माना जाता है कि यह इंदिरा गांधी की ग़लती थी कि 1981 से लेकर 1984 तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की।
इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि, इंदिरा गांधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं। वह पंजाब के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं। इसके विपरीत कुछ राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि, 1985 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गांधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं, ताकि उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हो सके।
5 जून, 1984 ई. को भारतीय सेना द्वारा 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' चलाया गया। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य आतंकवादियों की गतिविधियों को समाप्त करना था। पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगी थीं और उन ताकतों को पाकिस्तान से हवा मिल रही थी।
पंजाब में भिंडरावाले का उदय इंदिरा गांधी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण हुआ था। अकालियों के विरुद्ध भिंडरावाले को स्वयं इंदिरा गांधी ने ही खड़ा किया था लेकिन भिंडरावाले की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं देश को तोड़ने की हद तक बढ़ गई थीं। जो भी लोग पंजाब में अलगाववादियों का विरोध करते थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था।
'ऑपरेशन ब्लू स्टार' से सिक्ख समुदाय में भारी रोष था। उस रोष की परिणति 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में सामने आई। उनके ही सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। इंदिरा गांधी की मौके पर ही मृत्यु हो गई। पश्चात उनके पुत्र राजीव गांधी प्रधानमंत्री चुने गए। सत्ता संभालने के साथ ही राजीव गांधी ने 21वीं सदी में भारत के स्वरूप और उसके सामने आने वाली चुनौतियों की कल्पना की।
उन्होंने इन चुनौतियों का सामना करने लिये रूपरेखा तैयार करना शुरू कर दिया था। इसके लिये प्रशासनिक व्यवस्था में कम्प्यूटरीकृत प्रणाली के साथ संचार क्रांति का आगाज किया। उन्होंने यह भी महसूस किया कि ग्रामीण अंचलो की जनता की प्रशासनिक व्यवस्था में भागीदारी के बिना राष्ट्र का सर्वागीण विकास संभव नहीं होगा।
इसके लिए उन्होंने पंचायतों को अधिकार देने के लिये संविधान में संशोधन की रूपरेखा तैयार की। देश की रक्षा प्रणाली के आधुनीकिकरण के लिये उन्होंने आधुनिक अस्त्रों का निर्माण तथा विदेशों से उनकी खरीदी की पहल की। इसी के चलते सेना के लिए बोफोर्स तोपों की खरीदी विवाद का विषय बना तथा उनके वित्तमंत्री वीपी सिंह ने इसमें दुराग्रहपूर्ण भूमिका निभाई तथा अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। साथ ही इस मुद्दे को लेकर राजीव गांधी के विरुद्ध दुष्प्रचार में जुट गए।
इस मामले को लेकर राजनीतिक वातावरण इतना दूषित हुआ कि 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त कर सकी। हालाकि वह सबसे बडे दल के रूप में सामने आई। इस नाते उसे पुनः सरकार बनाने का राष्ट्रपति से निमंत्रण भी मिला लेकिन राजीव गांधी ने विपक्ष में बैठना बेहतर समझा।
1991 में लोकसभा के लिए मध्यावधि चुनाव कराए जाने थे। इसी चुनाव के प्रचार हेतु श्रीपैरंबुदूर तमिलनाडु गए राजीव गांधी की एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई। चुनाव हुए, कांग्रेस को बहुत तो मिला किंतु वह स्पष्ट बहुमत नहीं ला सकी। इसके बावजूद कांग्रेस ने नरिसंह राव के नेतृत्व में सरकार बनाई। 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस बहुमत नहीं ला सकी।
इस बीच दो ग़ैर कांग्रेसी साझा सरकारें बनीं लेकिन करीब एक-एक साल ही चल सकीं। 1998 में लोकसभा के लिए पुन: मध्यावधि चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बहुमत हासिल कर सरकार बनाई।
2003 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को बहुमत मिला और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाए गए। नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), इंडियन यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस और इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) कांग्रेस की विभिन्न शाखाएं हैं।
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भारतीय जनता पार्टी, 1951 में श्यामाप्रसाद मुखर्जी के प्रयासों से गठित भारतीय जनसंघ का ही वर्तमान रूप है। सन् 1953 में कारागृह में मुखर्जी की असामयिक मृत्यु के बाद भारतीय जनसंघ को मज़बूत करने का दायित्व पं. दीनदयाल उपाध्याय पर आया।
क़रीब डेढ़ दशक तक संघ के महासचिव रूप में पं. उपाध्याय ने पार्टी को सुदृढ़ करने के अथक प्रयास किए। इसके तहत संघ के प्रतिभाशाली कार्यकर्ताओं को संघ की विचारधारा से भलिभांति अवगत कराना और उन्हें योग्य राजनेता बनाना शामिल था।
अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने पं. उपाध्याय की छत्रछाया में ही मूल्यगत राजनीति की बारहखड़ी सीखी। 1968 में पं. दीनदयाल की हत्या के बाद संघ के अध्यक्ष पद का दायित्व अटलबिहारी वाजपेयी ने संभाला।
1952 के आम चुनावों में महज़ 3 लोकसभी सीटों पर विजय दर्ज करने वाली जनसंघ, 1962 तक देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी। मुख्यत: समान नागरिक संहिता, गौहत्या, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे की समाप्ति तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार आदि मुद्दों पर चुनाव लड़ते हुए संघ ने उत्तर भार में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी।
इस बीच इंदिरा गांधी सरकार ने 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रहा। संघ ने अपने सहयोगी दलों के साथ आपातकाल का पुरजोर विरोध किया। इस दौरान बड़ी संख्या में संघ कार्यकर्ताओं को जेलयात्राएं भी करना पड़ीं।
इसके बाद संघ 1977 में अनेक राजनीतिक दलों से हाथ मिलाकर कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी से मिल गया। इसी वर्ष हुए आम चुनाव में जनता पार्टी ने न केवल उल्लेखनीय सफलता दर्ज की, बल्कि मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने।
इस सरकार में अटलबिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए। कुछ ही समय बाद 1979 में श्री देसाई ने प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया और इसके साथ ही जनता पार्टी भी अपघटित कर दी गई। भारतीय जन संघ से जुड़े जनता पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने काफी मंथन और चिंतन के बाद 6 अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना की।
पार्टी अध्यक्ष का दायित्व अटलबिहारी वाजपेयी को सौंपा गया। अटलीजी ने पार्टी की विचारधारा से युवाओं को अवगत कराते हुए उन्हें पार्टी से जोड़ने के सफल प्रयास किए। अटलजी के नेतृत्व में ही भाजपा ने ऑपरेशन ब्लू स्टार सहित 1984 में सिख विरोधी दंगों का मज़बूती से विरोध किया। हालांकि इस वर्ष हुए आम चुनाव में पार्टी को महज़ दो ही सीटें मिलीं। इधर अटलजी ने पार्टी अध्यक्ष बने रहने के साथ-साथ संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर भी संभाली। राम जन्मभूमि मुद्दे पर भाजपा ने विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ आवाज़ उठाई।
इसी को लेकर हिन्दुओं को जगाने और उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर में रथयात्रा निकाली, जो काफी हद तक कामयाब रही। 6 दिसंबर 1992 को विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद ध्वंस कर दी।
देशभर में हिन्दू-मुस्लिम विवाद गहराया। परिणामस्वरूप विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबंध लगा दिया गया और रथयात्रा के नायक लालकृष्ण आडवाणी सहित अनेक नेताओं को जेल जाना पड़ा। हालांकि देशभर में दंगों की निंदा हुई लेकिन दूसरी तरफ भाजपा हिन्दुत्व समर्थक पार्टी के रूप में उभरी।
भाजपा ने 1993 में दिल्ली, 1994 में कर्नाटक और 1995 में गुजरात-महाराष्ट्र में हुए चुनावों में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। 1996 के चुनावों में भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं और अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री चुने गए किंतु अल्पमत के कारण मात्र 13 दिनों में ही उन्हें त्याग-पत्र देना पड़ा।
1998 में भाजपा ने अनेक क्षेत्रीय पार्टियों से हाथ मिलाया, जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन नाम दिया गया। इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में गठबंधन को बहुमत मिला। अटलजी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाए गए किंतु 1999 में एक पार्टी के समर्थन वापस ले लेने से अटल सरकार गिर गई। 1999 चुनाव में गठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ, जिसमें भाजपा को 183 और गठबंधन को कुल 303 सीटें मिलीं।
लिहाजा अटलबिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने, जबकि लालकृष्ण आडवाणी को उपप्रधानमंत्री बनाया गया। अटलजी ने 5 वर्षों के अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में कई हितकारी नीतियां व योजनाएं बनाईं और लागू कीं।
2004 में भाजपा और गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। मई 2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतकर, भाजपा ने पहली बार किसी दक्षिण भारतीय राज्य में उपस्थिति दर्ज की जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी फिर पिछड़ गई।
मार्च 2012 में पांच राज्यों में हुए चुनावों में पार्टी ने उत्तराखंड सीट खोई परंतु गोवा में कब्ज़ा किया। पंजाब में कब्ज़ा कायम रखा जबकि उत्तरप्रदेश में यथास्थिति बने रहे। 2013 में राजनाथ सिंह को पार्टी अध्यक्ष का पदभार सौंपा गया।
सिंह ने 13 सिंतबर 2013 को संसदीय बोर्ड की बैठक में भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। अरुण जेटली महासचिव, लालकृष्ण आडवाणी संसदीय दल अध्यक्ष हैं जबकि क्रमश: लोकसभा और राज्यसभा में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे हैं। कमल संदेश पार्टी का मुखपत्र है।
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा/सीपीआई) एक साम्यवादी दल है। इसकी स्थापना 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में एम.एन. राय ने की थी।
1928 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने ही भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की कार्य प्रणाली निश्चित की। पार्टी के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी हैं। दल का युवा संगठन ' ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन' है। 2004 के संसदीय चुनाव में दल को 10 सीटें मिली थीं, जबकि 2009 में आँकड़ा सिमट कर महज़ 4 रह गया।
सीपीएम : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा/सीपीएम) देश का एक साम्यवादी दल है। सीपीएम का गठन 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के विभाजन से हुआ।
1969 में हुए चुनाव में सीपीआई(एम) ने 97 सीटों पर चुनाव लड़ा और 80 सीटें जीतीं। इसके साथ ही पार्टी ने पश्चिम बंगाल में एक बड़ी पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाई। वहीं 1970 में केरला में हुए चुनाव में पार्टी को 73 के मुकाबले 29 सीटें हासिल हुईं।
1971 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम को 25 सीटें मिलीं जिनमें से 20 पश्चिम बंगाल से आईं। इसी साल विधानसभा चुनाव में भी राज्य में सीपीएम को सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं. फिर 1977 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बहुमत हासिल किया और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने।
2004 के संसदीय चुनाव में इस दल को 43 सीटें मिली थीं। इस समय केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में पार्टी की स्थिति सुदृढ़ है। 2013 में त्रिपुरा में सत्ता में आकर पार्टी ने सरकार बनाई। पार्टी वाम मोर्चा गठबंधन के वामपंथी दलों का नेतृत्व करती है।
1964 से 1978 तक पी.सुंदरैया, 1978 से 1992 तक ई.एम.एस. नांबोदिरिपद तथा 1992 से 2005 तक हरिकिशन सिंह सुरजीत पार्टी के महासचिव रहे। वर्तमान में इस पद पर प्रकाश करात आसीन हैं।
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आम आदमी पार्टी (आप), सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल एवं अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से जुड़े बहुत से सहयोगियों द्वारा गठित एक भारतीय राजनीतिक दल है। इसके गठन की आधिकारिक घोषणा 26 नवंबर 2012 को भारतीय संविधान अधिनियम की 63वीं वर्षगांठ के अवसर पर जंतर मंतर, दिल्ली में की गई थी।
वर्ष 2011 में इंडिया अगेंस्ट करपशन नामक संगठन ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जनलोकपाल आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा लोकहित की उपेक्षा के खिलाफ आवाज उठाई।
अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे, जबकि अरविन्द केजरीवाल और उनके सहयोगियों की यह राय थी कि पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा जाए। इसी उद्देश्य के तहत पार्टी पहली बार दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी। पार्टी ने चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई। अरविन्द केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
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समाजवादी पार्टी मुख्यत: उत्तरप्रदेश का दल है। इसकी स्थापना 4 अक्टूबर 1992 को की गई। पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री रह चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा सहित देश के अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़े हैं।
हालांकि इसकी सफलता मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश में ही है। 2003 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को ७ सीटें प्राप्त हुईं। यह राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 15वीं लोकसभा में वर्तमान में इसके 22 सदस्य हैं। यह लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
2005 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बंगारप्पा ने समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए भाजपा से इस्तीफा दे दिया। वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर अपनी लोकसभा सीट शिमोगा से विजयी रहे। 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा को केवल 96 सीटें मिलीं, जबकि पार्टी ने 2002 में 146 सीटें जीती थीं।
नतीजतन, 207 सीटों के साथ बहुमत में आने वाली बसपा की मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मायावती का शासनकाल काफी विवादित रहा। इसी का परिणाम रहा कि 2012 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को जनता ने 224 सीटों पर जिताते हुए मायावती से पीछा छुड़ाया। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव विधान मंडल दल के नेता चुने गये तथा उन्होंने 15 मार्च 2012 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
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बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठन कांशीराम द्वारा 14 अप्रैल 1984 को किया गया। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है। 13वीं लोकसभा (1999-2004) में पार्टी के 14 सदस्य थे। 14वीं लोकसभा में यह संख्या 17 और वर्तमान की 15वीं लोकसभा में यह संख्या बढ़कर 21 हो गई है।
बसपा का मुख्य आधार उत्तरप्रदेश है और पार्टी ने इस प्रदेश में कई बार अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार भी बनाई है। मायावती कई वर्षों से पार्टी की अध्यक्ष हैं। दल का दर्शन बाबा साहेब अम्बेडकर के मानवतावादी बौद्ध दर्शन से प्रेरित है। बहुजन शब्द गौतम बुद्ध के धर्मोपदेशों 'त्रिपिटक' से लिया गया है। तथागत बुद्ध ने कहा था 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' उनका धर्म बहुत बड़े जन-समुदाय के हित और सुख के लिए है।
11 मई 2007 को घोषित विधानसभा चुनाव परिणामों के पश्चात् उत्तरप्रदेश में 1991 से 15 वर्षों तक त्रिशंकु विधानसभा का परिणाम भुगतने के बाद भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य में स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर सत्ता में आयी। बसपा अध्यक्ष मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तरप्रदेश में अपना चौथा कार्यकाल शुरू करते हुए 13 मई 2007 को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 50 अन्य मन्त्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
एक ओर जहाँ उत्तरप्रदेश की जनता ने बसपा को सरकार बनाकर काम करने का मौका दिया, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री मायावती की इस बात के लिए आलोचना भी की कि उन्होंने जनता के टैक्स के पैसे का अनुचित उपयोग किया है। इस पैसे से उन्होंने कांशीराम व अनेक दलित नेताओं की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं पर अरबों-खरबों रुपया पानी की तरह बहाया।
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा या एनसीपी) का गठन 25 मई 1999 को शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक़ अनवर ने किया। इन तीनों नेताओं को कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था क्योंकि इन्होंने सोनिया गांधी को पार्टी की बागडोर सौंपने पर आपत्ति जताई थी। तीनों नेताओं ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था।
एनसीपी का दबदबा महाराष्ट्र तक सीमित है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे नौ सीटें मिली थीं। कांग्रेस से अलग होने के बावजूद एनसीपी का उसके साथ गठजोड़ है और वो मौजूदा यूपीए सरकार में भी शामिल है। इस बार भी महाराष्ट्र में मुख्य मुक़ाबला एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन और शिवसेना-भाजपा के गठबंधन के बीच ही है।
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उड़ीसा की प्रमुख पार्टी, बीजू जनता दल (बीजद) की स्थापना 26 दिसंबर 1997 में वरिष्ठ राजनेता बीजू पटनायक के पुत्र नवीन पटनायक ने की। बीजू जनता दल ने केंद्र और ओड़ीशा में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर अनेक सत्तारूढ़ गठबंधन किए।
हालाँकि बीजद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रमुख धर्मनिरपेक्ष पार्टियों में से एक थी। पार्टी को मिली चुनावी सफलता में श्री पटनायक की ईमानदार और बेदाग छवि ने अहम भूमिका निभाई।
1998 में हुए आम चुनाव में बीजद ने 9 सीटें जीतीं और खान मंत्री बने, जबकि 1999 के आम चुनाव में बीजद के हाथ 10 सीटें लगीं। पार्टी ने भाजपा गठबंधन के साथ मिलकर 2000 और 2004 राज्य विधान सभा में बहुमत हासिल किया। पार्टी ने 2004 में 11 लोकसभी सीटं जीतीं।
हालांकि 2009 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर बीजद ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। वर्तमान में यह तीसरे मोर्चे के रूप में काबिज़ है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजद ने 14 सीटें जीतीं। वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 147 में से 108 सीटें अपने नाम कीं।
अगले पन्ने पर, जेडीयू की जानकारी...
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जनता दल (यूनाइटेड) या जेडी (यू) 30 अक्टूबर 2003 को जनता दल, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी के शरद यादव गुट में विलय के साथ अस्तित्व में आई।
पार्टी का संबंध मुख्यत: बिहार और झारखंड से है। 20 सीटें जीतने के साथ वर्तमान में यह पार्टी लोकसभा की पाँचवी सबसे बड़ी पार्टी है। पार्टी के सलाहकार और संरक्षक वयोवृद्ध समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस हैं।
राष्ट्रीय प्रजातांत्रित गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों में से एक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने गठबंधन से अलग होने की घोषणा की। यह घोषणा जदयू पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव एवं बिहार में जदयू के नेतृत्व वाली सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 16 जून 2013 को की। जदयू के अलग होने से एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी एवं जदयू के बीच 17 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया।
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तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) मुख्यत: दक्षिण भारत के राज्य आंध्रप्रदेश से संबंधित है। इसकी स्थापना 1983 को एन.टी. रामाराव के समय हुई थी। आंध्रप्रदेश में हुए 1983 के विधानसभा चुनाव में पहली बार एन.टी. रामाराव के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार गठित हुई। जयप्रकाश नारायण ने भी आंध्रप्रदेश में लोकसत्ता संगठन को जोड़ा था।
पार्टी की विचारधारा थी कि 'सोसायटी एक मंदिर है और लोग इस मंदिर के देवी-देवता हैं।' तेदेपा का मिशन था कि सभी के लिए सामाजिक न्याय और समानता के बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित एक कल्याणकारी राज्य प्रदान किया जाए। एन.टी. रामाराव के बाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी को नई पहचान दिलाई। उन्हीं की छत्रछाया में हैदराबाद की पहचान खेल राजधानी के रूप में बनी।
2013 का साल आंध्रप्रदेश के लिए इस मायने में अहम रहा कि अलग तेलंगाना राज्य की अर्से पुरानी मांग ने फिर ज़ोर पकड़ा। तेलंगाना का मुद्दा राज्य में छाया रहा और इसके पक्ष एवं विरोध में आंदोलनों का जैसे बाढ़ लगी रही। तेलंगाना की सियासत ने साल के मध्य में तब नया मोड़ लिया, जब जुलाई अंत में कांग्रेस कार्यसमिति ने अलग तेलंगाना राज्य पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी। कांग्रेस के इस कदम पर जहां तेलंगाना में खुशियां मनाई गईं, वहीं तटीय आंध्र और रायलसीमा के सीमांध्र क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया।
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईएडीएमके/अन्ना द्रमुक)
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एआईएडीएमके की स्थापना 1972 में पूर्व अभिनेता व राजनीतिज्ञ एम.जी. रामचंद्रन (एमजीआर) ने की थी। यह तमिलनाडु का एक राजनीतिक दल है। वर्तमान में इस दल की नेता जे. जयललिता हैं। एमजीआर के साथ जयललिता ने कई तमिल हिट फ़िल्मों भी कीं।
एमजीआर 1980 में जयललिता को राजनीति में लाए और उन्हें पार्टी का प्रचार मंत्री बनाया। 1987 में एमजीआर की मृत्यु के बाद जयललिता ने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी और एक तरह के अज्ञातवास में चली गईं। लेकिन जल्द ही एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन से एमजीआर की विरासत को लेकर उन्होंने लड़ाई छेड़ दी।
जब एमजीआर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन मुख्यमंत्री बनीं, तो एआइएडीएमके का विभाजन हो गया। वर्तमान में 2011 से वे मुख्यमंत्री पद पर हैं। इससे पहले वे 1991 से 1996 और 2002 से 2006 तक मुख्यमंत्री पद पर सेवाएं दे चुकी हैं। 2001 में भी प्रदेश में कुछ समय के लिए जयललिता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन थीं। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एम. करुणानिधि का भी तमिलनाडु की राजनीति में खासा प्रभाव रहा।
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द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, जिसे द्रमुक नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी है। इसका निर्माण जस्टिस पार्टी तथा द्रविड़ कड़गम से पेरियार से मतभेद के कारण हुआ था। इसके गठन की घोषणा 17 सितंबर 1949 में की गई थी।
इसका प्रमुख मुद्दा सामाजिक समानता, खासकर हिन्दू जाति प्रथा के सन्दर्भ में, तथा द्रविड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करना है। वर्तमान में इसके प्रमुख एम.करुणानिधि हैं। अपनी स्थापना के समय से ही डीएमके द्वारा अलग द्रविड़ राज्य बनाने की माँग की जा रही है।
दूसरी तरफ अन्नादुरई एक अलग द्रविड़ नाडु बनाना चाहते थे लेकिन ऐसे में 1962 में चीन युद्ध प्रारंभ होने के चलते वे अपनी माँग को भूलकर, भारतीय सेना के लिए धन जुटाने में जुट गए। 1965 में राज्य में हिन्दी विरोधी आंदोलन भी चर्चा में रहा।
तेलंगाना राष्ट्र समिति
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तेलंगाना नामक एक अलग राज्य की मांग को लेकर के.चंद्रशेखर राव ने 27 अप्रैल 2001 को तेलंगाना राष्ट्र समिति की स्थापना की। पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर 2004 के चुनावों में हिस्सा लिया, लेकिन इन चुनावों में वह पांच सीटों पर विजय हासिल नहीं कर सकी। के.चंद्रशेखर राव को जब यह लगने लगा कि कांग्रेस तेलंगाना निर्माण के लिए समर्थन देने की इच्छुक नहीं है तो उन्होंने कांग्रेस से अपना समर्थन वापस ले लिया।
2009 में विपक्षी दल के साथ गठबंधन कर तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन मात्र दो सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। इस चुनावी असफलता के कारण पार्टी के अधिकांश सदस्यों ने के.चंद्रशेखर राव को ही दोषी ठहराया। इन आरोपों से आहत होकर राव ने कुछ समय के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 2010 के उपचुनावों में तेलांगाना राष्ट्र समिति ने ग्यारह सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी क्षेत्रों में जीत हासिल की।
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अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस मुख्यतः पश्चिम बंगाल में सक्रीय एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल है। दो दशक से अधिक समय तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ काम करने के बाद ममता बनर्जी ने 1 जनवरी 1998 को अपनी पार्टी सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की।
1998 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 7 सीटें जीतीं। 1999 में पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। गठबंधन के बाद इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की। 2000 में तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता नगर निगम चुनाव अपने नाम किए। 2001 में पार्टी ने गठबंधन के लिए कांग्रेस (आई) से हाथ मिलाया और विधानसभा चुनाव में 60 सीटों पर जीती, जबकि 2004 लोकसभा चुनाव में यह गठबंधन केवल 1 सीट जीत सका।
वहीं इस गठबंधन ने 2006 विधानसभा चुनाव में 30 सीटों पर हाथ साफ किया। 2011 के पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 294 में 184 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और ममता बैनर्जी मुख्यमंत्री बनीं। अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के 5 विधायक हैं, जबकि मणिपुर में 7, असम और उत्तरप्रदेश में 1-1 विधायक हैं। झारखंड राज्यसभा से पार्टी का 1 सांसद भी है। 18 सितंबर 2012 के बाद से तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस(आई) से भी गठबंधन समाप्त कर दिया है। पार्टी प्रमुख ममता बैनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं।
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जनता दल (सेक्युलर) का अस्तित्व जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित जनता दल से ही था, जिसने इंदिरा गांधी के सभी विरोधियों को 1977 के चुनावों में एक बैनर तले एकत्रित किया था। जनता दल का गठन 1988 में बैंगलोर में जनता पार्टी और कुछ दूसरी छोटी विपक्षी पार्टिंयों का मिलाकर किया गया था। 1996 में जब संयुक्त मोर्चा (यूएफ) गठबंधन सरकार के नेतृत्व में एच.डी. देवगौड़ा प्रधानंत्री बने, तब पार्टी अपने चरम पर पहुँच गई थी।
1996 में जनता दल में उस वक्त दरार पड़ गई, जब कुछ नेताओं ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से हाथ मिलाने के लिए पार्टी का साथ छोड़ दिया और इस तरह जनता दल (युनाइटेड) का उदय हुआ।
पार्टी का नेतृत्व जॉर्ज फर्नांडीस द्वारा किया जा रहा था, इस बीच एच.डी. देवगौड़ा जनता दल (सेक्युलर) के नेता के रूप में उभर चुके थे। कर्नाटक में हुए 2004 के चुनाव पार्टी के उत्थान के गवाह हैं। इसके बाद पार्टी के नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने एक लोकप्रिय गठबंधन के रूप में 20 महीनों तक सरकार का नेतृत्व किया। वे कर्नाटक के 18वें मुख्यमंत्री बने। पार्टी का वर्चस्व कर्नाटक और केरल में है।
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राष्ट्रीय जनता दल (राजद) : लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की स्थापना की। दल के वर्तमान अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव हैं। युवा राष्ट्रीय जनता दल इस दल का युवा संगठन है। दल का बिहार मे बहुत जनाधार है।
जनता दल अध्यक्ष के चुनाव के बहिष्कार के आह्वान के बाद लालू यादव ने 5 जुलाई को नई दिल्ली में बिहार निवास पर एक सम्मेलन आयोजित कर अपने समर्थकों के समक्ष राष्ट्रीय जनता दल के गठन की घोषणा की। सम्मेलन में लालू यादव को सर्वसम्मति से दल का अध्यक्ष चुना गया। सम्मेलन में तीन केंद्रीय मंत्रियों रघुवंश प्रसाद सिंह, केप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद व कांति सिंह सहित लोकसभा के 17 व राज्यसभा के 8 सदस्य उपस्थित थे।
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शिवसेना : महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना नामक एक कट्टर हिन्दूराष्ट्र वादी संगठन की स्थापना की। अपने गठन के समय शिवसेना एक राजनीतिक पार्टी नहीं थी। हालांकि शुरुआती दौर में बाल ठाकरे को अपेक्षित सफलता नहीं मिली लेकिन अंततः उन्होंने शिवसेना को सत्ता की सीढ़ियों पर पहुँचा ही दिया।
1995 में भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई। पार्टी की विचारधारा मुख्यत: हिंदुत्व व मराठी राष्ट्रवाद की है। बाल ठाकरे के निधन के बाद पार्टी की कमान उद्धव ठाकरे के हाथों में है। शिवसेना की छात्र इकाई 'भारतीय विद्यार्थी सेना', युवा इकाई 'युवा सेना' और महिला इकाई 'शिवसेना महिला अघाड़ी' है।
वर्तमान समय में शिवसेना के लोकसभा में 11, राज्यसभा में 4 और महाराष्ट्र विधानसभा में 44 सदस्य हैं। शिवसेना की पहचान देश में एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी दल की है। पिछले कुछ दशकों से मुंबई महानगरपालिका पर शिवसेना ही काबिज़ है। पार्टी सदस्यों ने कई बार महाराष्ट्र राज्य सरकार में भागीदारी की।
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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) : महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) भारत के महाराष्ट्र की एक क्षेत्रीय पार्टी है। अपने चाचा बाल ठाकरे की पार्टी शिव सेना से अलग होकर 9 मार्च 2006 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की। उनके अलग होने की वजह थी बाल ठाकरे द्वारा अपने बेटे उद्धव ठाकरे को तरज़ीह देना, जबकि पार्टी में राज अधिक लोकप्रिय थे।
हालांकि मनसे, शिवसेना से निकला हुआ समूह है, परन्तु मनसे भी 'मराठी' और 'भूमिपुत्र' विचारधारा पर आधारित है। मनसे को विधान सभा में 13 सीटें मिलीं। पार्टी अध्यक्ष राज ठाकरे खुद को एक भारतीय राष्ट्रवादी (न कि क्षेत्रीय) समझते हैं। पार्टी, धर्मनिरपेक्षता को भी अपना एक मूल सिद्धांत मानती है। अपनी स्थापना से अब तक मनसे के प्रतिनिधि 4 नगर निगमों में चुने गए हैं।
इनमें पुणे नगर निगम में 8, नासिक ननि में 12, बृहन्मुंबई ननि में 7 और ठाणे ननि में 3 सदस्य निर्वाचित हुए हैं। मनसे ने 2009 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 13 विधानसभा सीटें जीतीं। इनमें मुंबई में 6, ठाणे में 2, नासिक में 3, पुणे में 1, कन्नड़ (औरंगाबाद) में 1 सीट पार्टी के नाम रही। 24 से अधिक स्थानों पर मनसे दुसरे स्थान पर रही।
मनसे को मुंबई में स्थानीय मराठी भाषी, डोंगरी और उमरखादी क्षेत्रों के मुस्लिम समुदाय से समर्थन प्राप्त है। झारखंड दिसोम पार्टी ने भी महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ नवनिर्माण सेना के आंदोलन का समर्थन किया है।