कांग्रेस के लिए अब बचाने और छुपाने के लिए कुछ नहीं है। ये शर्मनाक हार है और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के वो लोग जिम्मेदार हैं जो राहुल गाँधी नाम की मजबूरी को ढोते रहे। गाँधी परिवार का नेतृत्व ना हो तो कांग्रेस बिखर जाती है, ये मजबूरी कांग्रेस की हो सकती है, देश की नहीं। ये बात समझनी बहुत जरूरी थी।
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राहुल के नेतृत्व में लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी राहुल को आगे करना एक कट्टर कांग्रेसी के भी गले नहीं उतर रहा था। पर ऐसा होता रहा। चाहे उत्तरप्रदेश और बिहार के विधानसभा चुनाव हों या पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव, बुरी तरह हारने के बाद भी पता नहीं क्यों इतना पैसा, श्रम और समय राहुल गाँधी पर बर्बाद किया गया।
अब भी जो कांग्रेसी राहुल का बचाव कर रहे हैं उसे चापलूसी की हद ही कहा जाएगा। निश्चित ही ये कांग्रेस के लिए गहरे आत्ममंथन का दौर है। कांग्रेस को उनका विकल्प ढूँढ़ना होगा क्योंकि देश ने तो अपना विकल्प चुन लिया है...।