बिरसा मुंडा जयंती - कौन थे बिरसा मुंडा, 10 प्रमुख बातें
सोमवार, 15 नवंबर 2021 (12:31 IST)
बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के लिए भगवान समान हैं। आज भी उन्हें कई लोग गर्व से और भगवान के समान याद करते हैं। आदिवासियों के न्याय के लिए उनके द्वारा किया गया संघर्ष किसी कहानी से कम नहीं है। आदिवासियों के हित के लिए ब्रिटिश शासन काल में उन्होंने अपना लोहा मनवाया था। अपने क्षेत्र के अहम योगदान के लिए उनकी तस्वीर आज भी भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी है। ये जानकर आश्चर्य होगा कि इस तरह का सम्मान जनजातीय समुदाय में अभी तक केवल बिरसा मुंडा को ही मिला हैं। बिरसा मुंडा जयंती पर जानते हैं उनके बारे 10 बातें -
1. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर को 1875 में हुआ था। उनका जन्म आदिवासी परिवार में हुआ था। आदिवासियों के हितों के लिए अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने के बराबर संघर्ष किया।
2.पढ़ाई के दौरान मुंडा समुदाय के बारे में आलोचना की जाती थी। तो उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगता था। और वह नाराज हो जाते थे। इसके बाद उन्होंने आदिवासी तौर तरीकों पर ध्यान दिया और इस समाज के हित के लिए संघर्ष किया।
3.गुलामी के दौरान आदिवासियों का शोषण किया जाता था। उस दौरान ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियां चरम पर थी। उन्हीं के साथ जमींदार, साहूकार, महाजन लोग आदिवासियों को शोषण करते थे। जिसके खिलाफ बिरसा मुंडा ने बेबाक तरीके से आवाज उठाई। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। वह सरदार आंदोलन में शामिल हो गए।
4. बिरसा मुंडा ने 1895 में नए धर्म की शुरुआत की। जिसे बरसाइत कहा जाता था। इस धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए 12 विषयों का चयन किया गया था। कहा जाता है इस धर्म के नियम बहुत कड़े हैं। आप मांस-मछली, सिगरेट, गुटखा मदिरा, बीड़ी का सेवन नहीं कर सकते हैं। साथ ही बाजार का या किसी अन्य के यहां का नहीं खा सकते हो। साथ ही गुरुवार के दिन फूल,पत्ती तोड़ना भी सख्त मना है। इस धर्म के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं।
5.आदिवासियों की जमीन को ब्रिटिश सरकार से छुड़ाने के लिए अलग जंग लड़ना पड़ी। इसके लिए उन्होंने नारा दिया था। 'अबुआ दिशुम अबुआ राज' यानी 'हमारा देश, हमारा राज'।
धीरे-धीरे अंग्रेजों के पैर से यह जमीन खिसकने लगी। पूंजीपति और अन्य जमींदार लोग बिरसा से डरने लगे थे।
6.1897 से 1900 के बीच बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। जिसमें करीब 400 सैनिक शामिल थे। उस दौरान खुंटी थाने पर हमला बोला था।
7.1897 में तंगा नदी के किनारे हुए युद्ध में अंग्रेजी सेना हार गई थी। हालांकि पराजय के बाद गुस्साए अंग्रेजों ने आदिवासियों की कई नेताओं की गिरफ्तारी की।
8. जनवरी 1900 के दौरान डोमबाड़ी पहाड़ी पर भी युद्ध हुआ। उसी क्षेत्र में वह सभा को संबोधित कर रहे थे। दूसरी और चल रहे युद्ध में कई शिष्यों को गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान बड़ी तादाद में बच्चे और महिलाओं की भी मौत हई। आखिरकार 9 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को भी गिरफ्तार कर लिया। जेल जाने के बाद उनका जल्द ही निधन हो गया।
9.9 जून 1900 को रांची में उन्होंने अंतिम सांस ली। आज भी उन्हें बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में भी भगवान की तरह पूजा जाता है।
10. उनकी स्मृति में रांची में केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा के नाम से हवाई अड्डा हैं।