Ramprasad Bismil : आज भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नायक पंडित रामप्रसाद 'बिस्मिल' का शहीद दिवस है, जिन्हें मात्र 30 वर्ष की आयु में अंग्रेज सरकार ने फांसी दे दी। मैनपुरी षड्यंत्र, काकोरी-कांड जैसी कई आंदोलनकारी घटनाओं में शामिल रहे रामप्रसाद फांसी के तख्ते पर झूलने के तीन दिन पहले तक वे लिखते रहे। उन्हें 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई थी।
आज 19 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि पर जानें उनके बारे में-
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी के रूप में रामप्रसाद बिस्मिल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। उनके पिता रामभक्त थे, जिसके कारण उनका नाम 'र' से रामप्रसाद रख दिया गया।
भारत के स्वतंत्रता सेनानी के अलावा रामप्रसाद बिस्मिल एक कुशल बहुभाषाभाषी अनुवादक, इतिहासकार, बेहतरीन कवि, शायर होने के साथ-साथ साहित्यकार भी थे। रामप्रसाद बिस्मिल ने राम और अज्ञात नाम से भी लेखन किया।
ज्योतिष ने बिस्मिल की जन्मकुंडली को देखकर यह भविष्यवाणी की थी, कि- 'यद्यपि संभावना बहुत कम है, किंतु यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी।' बिस्मिल उनका उपनाम था, जो कि उर्दू भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल ने 19 वर्ष की आयु में क्रांति के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा था।
यहां पढ़ें रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र-
शहादत से एक दिन पूर्व महान शहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को यह पत्र लिखा-
'19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूं। आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।'
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रों बार भी।
तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।
हे ईश! भारतवर्ष में, शत बार मेरा जन्म हो।
कारण सदा ही मृत्यु का, देशोपकारक कर्म हो।।
मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफ़ाक़ अत्याचार से।