आर्ट कंजर्वेटर - विरासत की खि‍दमत

- सुमेधा

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सुब्रतो ग्रेजुएशन करने के बाद करियर की राह तलाशने के लिए भटक रहा था। पेंटिंग्स में उसकी रुचि थी पर वहां भी वह खुद को फिट महसूस नहीं कर रहा था। उसकी परेशानी को भांपते हुए उसके स्कूल के ड्रॉइंग टीचर ने उसे आर्ट कंजर्वेटर का कोर्स करने की सलाह दी।

टीचर के समझाने पर उसने दिल पक्का कर आर्ट कंजर्वेटर कोर्स में दाखिला ले लिया। इसमें पढ़ाई कर आज सुब्रतो एक सरकारी आर्ट म्यूजियम में आर्ट कंजर्वेटर यानी कला संरक्षण के रूप में काम कर रहा है और बेहतर वेतन प्राप्त कर रहा है।

निश्चित तौर पर आप भी यह सोच रहे होंगे कि आखिर इसमें करियर की कितनी संभावनाएँ हो सकती हैं। कुछ समय पहले तक आपका सवाल वाजिब हो सकता था पर आज हालात बदल चुके हैं। हाल के कुछ वर्षों में लोगों की कला के प्रति जागरूकता बढ़ी है। यही कारण है कि पेंटिंग्स व अन्य कलाकृतियाँ महँगे दामों में बिक रही हैं।

लाखों और करोड़ों रुपयों में बिकने वाली इन कलाकृतियों का संरक्षण जरूरी हो जाता है। दरअसल ये कलाकृतियाँ एक का निवेश हैं। जो कलाकृति आज लाख में बिकी है कुछ समय बाद वही कई लाख में बिक सकती है। ऐसे में इनका संरक्षण जरूरी हो जाता है दूसरी ओर हमारी धरोहर के रूप में गुफाओं, भित्ती चित्रों के रूप में अनेक पेंटिंग्स बिखरी हुई हैं।

इन्हें सहेज कर रखने का एक बड़ा फायदा यह है कि आगे चलकर तथ्यों को खोजने अथवा कई पुराने तथ्यों को परिभाषित करने में भी सहायता मिलती है। यही कारण है कि सरकार की ओर से इनका संरक्षण बड़े स्तर पर हो रहा है।

कहना न होगा कि कला का निर्माण जितना महत्वपूर्ण है उतना ही उसको संरक्षित करना भी है। इसी कोशिश ने इसे एक कोर्स का रूप दे दिया है जिसे कला संरक्षण के नाम से जाना जाता है। कला को संरक्षित करने वाले पेशेवर लोगों को कला संरक्षण (आर्ट कंजर्वेटर) कहा जाता है।

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कला संरक्षण के लिए विशेष पाठ्यक्रमों एवं ट्रेनिंग की जरूरत इसलिए महसूस की गई क्योंकि इससे छात्रों अथवा कामकाजी लोगों को कलाकृतियों, ऐतिहासिक इमारतों के इतिहास तथा कलाशिल्पों आदि के रख-रखाव की जानकारी मिलती है। वैसे आर्ट कंजर्वेशन केमिस्ट्री से मेल खाती विद्या है। बिना प्रशिक्षण के कलाकृतियों एवं कलाशिल्पों के नष्ट होने की संभावना अधिक रहती है।

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