अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा अर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा, आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी, अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा। इस पार कभी, उस पार कभी.....
तुम बिछुड़े-मिले हजार बार, इस पार कभी, उस पार कभी। तुम कभी अश्रु बनकर आँखों से टूट पड़े, तुम कभी गीत बनकर साँसों से फूट पड़े, तुम टूटे-जुड़े हजार बार इस पार कभी, उस पार कभी। तम के पथ पर तुम दीप जला धर गए कभी, किरनों की गलियों में काजल भर गए कभी, तुम जले-बुझे प्रिय! बार-बार, इस पार कभी, उस पार कभी। फूलों की टोली में मुस्काते कभी मिले, शूलों की बांहों में अकुलाते कभी मिले, तुम खिले-झरे प्रिय! बार-बार, इस पार कभी, उस पार कभी। तुम बनकर स्वप्न थके, सुधि बनकर चले साथ, धड़कन बन जीवन भर तुम बांधे रहे गात, तुम रुके-चले प्रिय! बार-बार, इस पार कभी, उस पार कभी। तुम पास रहे तन के, तब दूर लगे मन से, जब पास हुए मन के, तब दूर लगे तन से, तुम बिछुड़े-मिले हजार बार, इस पार कभी, उस पार कभी।