मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूपनगर की हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का मैं उस आँगन का इकलौता, तुम उस घर की कली जहाँ नित होंठ करें गीतों का न्योता, मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ? मैं पीड़ा का...
मेरा कुर्ता सिला दु:खों ने बदनामी ने काज निकाले तुम जो आँचल ओढ़े उसमें नभ ने सब तारे जड़ डाले मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ? मैं पीड़ा का...
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी उम्र आँसुओं की बढ़ जाए तुम आई इस हेतु कि मेंहदी रोज़ नए कंगन जड़वाए, तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दु:खान्तकी जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ? मैं पीड़ा का...
इतना दानी नहीं समय जो हर गमले में फूल खिला दे, इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी हर ख़त का उत्तर भिजवा दे, मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ? मैं पीड़ा का...