कैसा होगा नवसंवत्सर 2069 का वर्ष

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कल्पादि से गत वर्ष 1972949113, सृष्टि संवत्‌ 1955885113, श्रीविक्रम संवत्‌ शक संवत्‌ 1934, श्रीकृष्णजन्म संवत्‌ 5248, कलि-संवत्‌ 5113, सप्तर्षि-संवत्‌ 5088, श्री जैन महावीर निर्वाण संवत्‌ 2537-38, श्रीबुद्ध संवत्‌ 2635-36, हिजरी सन्‌ 1433-34, ‌सली सन्‌ 1419-20, ईस्वी सन्‌ 2012-2013।

वर्षारंभ में गुरुमान से विष्णुविंशति का विश्वावसु नामक संवत्सर है। इसका फल शास्त्रों में इस प्रकार है- विश्वावसु नामक संवत्सर में विश्व में भंयकर रोगों से आमजन परेशान रहते हैं। वर्षा भी मध्यम होती है। चावल, गेहूं, जौ, ज्वार, एवं दलहन की उपज भी मध्यम कही जा सकती है। शासक वर्ग में धन संचय की प्रवृत्ति हो सकती है। इस वजह से देश में धन का अभाव महसूस हो सकता है।

लेकिन मेघ महोदय में विश्वावसु नामक संवत्सर का फल उपरोक्त फल से कुछ भिन्न इस प्रकार लिखा है- प्रजा में कल्याण, सभी अनाज तेज, वर्षा-प्रबल होगी। अनाजों की फसल उत्तम होगी। लकडी़ एवं धातुओं से निर्मित वस्तुएं महंगी होगी।

इस संवत्‌ का राजा व मंत्री शुक्र, चौमासी फसलों का स्वामी शस्येश चन्द्र, शीतकालीन फसलों का स्वामी धान्येश शनि, मौसम, वर्षा-पानी के स्वामी मेघेश गुरु, गुड़-खांड, रसकस आदि के स्वामी रसेश मंगल, सर्वविध धातु, आदि व्यापार के स्वामी नीरसेश सूर्य, फल-फूल आदि के स्वामी फलेश गुरु, धन-दौलत एवं खलाना के मालिक धनेश सूर्य व सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा के स्वामी गुरु होंगे।

पदाधिकारी के फल -शुक्र वर्ष का राजा हो तो अन्न की उपज अधिक, वर्षा अधिक होने से नदियों में बाढ़ की स्थिति बन सकती है। फलदार वृक्ष खूब फलेंगें-फूलेंगें, गौ धन अधिक हो, शासन के लोगों में परस्पर स्नेह-सुख बना रहे।

शुक्र के मं‍त्री पद पर हो तो उस वर्ष कीट-पतंग, चूहे, जंगली पशु आदि से फसलों को क्षति हो सकती है, अनाजों में तेजी का रूख रहे। कहीं-कहीं बाढ़ का भय बना रह सकता है।

शस्येश चन्द्र के होने से प्रजा सुखी रहे, वर्षा पर्याप्त हो। गौ पालने वाले सुखी रहे, दूध खूब हो। शासक वर्ग में देव-द्विज के लिए श्रद्धाभाव रहे। पृथ्वी पर धन-धान्य एवं समृद्धि बनी रहे।

धान्येश शनि के होने से नेतागण आर्थिक संकट का सामना करें। नेता लोग परस्पर शक्ति परीक्षण अथवा युद्धमय वातावरण में उलझें। शस्य अर्थात्‌ अनाज की व पशुचारे की कमी रहे। लोगों में भयंकर रोगों से परेशानी बढ़े। वर्षा की न्यूनता रहे। धान्येश शनि के होने पर देश में दुर्भिक्ष की स्थिति बने। प्रजा एवं शासकों में अशांति। परस्पर कलह रहे। सौराष्ट्र प्रदेश आपदाग्रस्त अथवा राजनैतिक संकट ग्रस्त हो।

मेघेश गुरु का फल इस प्रकार हैं- गुरु मेघेश हो तो वर्षा उत्तम हो, प्रजा में सर्वत्र सुख-शांति रहे। शासक वर्ग वेद विहित मार्ग का अनुसरण करें। जनता में रस प्रधान यथा घृत-दूध आदि की समृद्धि रहे।

रसेश मंगल होने से जनता दूध, दही आदि का अभाव अनुभव करें। शासकों का व्यवहार जनमानस के अनुकूल न रहे। कुछ भागों में वर्षा की कमी भी रह सकती है।

नीरसेश सूर्य होने पर तांबा, चंदन, रत्न, माणिक एवं मोती आदि जवाहारात के मूल्यों में वृद्धि हो।

फलेश गुरु के होने से वनों में फलदार वृक्ष खूब हो। जनता में भय ना हो। देवालयों में धार्मिक अनुष्ठान होते रहें। जनमानस में धार्मिक भावना बढ़े।

धनेश सूर्य होने से व्यापारी वर्ग से विशेष धन प्राप्त हो या व्यापार से जनता विशेष लाभान्वित हो। हाथी, घोडे, गधे, ऊंट एवं भेड़ आदि के व्यापार से लाभ रहे।

दुर्गेश गुरु होने से शासक वर्ग नीतिपूर्वक जनता का ध्यान रखे। जंगलों व नगरों में भी किसी प्रकार का भय ना रहे, सर्वत्र सुख व्याप्त हो। धर्माचरण करने वाले व्यक्ति, शास्त्रज्ञ व्यक्ति अत्यंत सुखपूर्वक रहें।

विशेष ध्यान देने योग बात यह है कि दशाधिकारियों का फल सर्वत्र होता है। किन्तु विशेषतः राजा का फल कश्मीर, अफगानिस्तान में, मंत्री का फल आंध्र, उज्जैन एवं मालवा में, शस्येश का विदर्भ में, धान्येश का फल गुजरात, नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश एवं मध्यप्रदेश में, मेघेश का फल मगध एवं बंगाल में, रसेश का फल कोंकण एवं गोवा में, नीरसेश का मालवा व बिहार में, धनेश का फल राजस्थान एवं बाड़मेर में, फलेश व दुर्गेश एवं राजा का फल सब जगह विशेष होता है।

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