हार्दिक को भले ही कांग्रेस का फॉर्मूला पसंद आ गया हो पर कांग्रेस जिस तरह से सर्वे कराने की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ा है उसने भी पाटीदारों के मन में सवाल खड़े किए होंगे। वैसे भी संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं है। भाजपा ने भी लगे हाथों मौके को भुनाते हुए कह दिया कि मूर्खों ने मूर्खों का फार्मूला स्वीकारा।
कांग्रेस ने यहां जिस आक्रामक अंदाज में अपना प्रचार अभियान शुरू किया था वह अब नदारद सी दिखती है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में टिकट वितरण के बाद से नाराजी है, हालांकि भाजपा में विरोध ज्यादा है लेकिन उनका डेमेज कंट्रोल सिस्टम भी कांग्रेस की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है। अब देखना यह है कि कांग्रेस और हार्दिक पटेल की जुगलबंदी गुजरात चुनाव में क्या असर दिखाती है? क्या यह जोड़ी पाटीदारों में भाजपा के प्रति विश्वास को तोड़ पाएगी या फिर पाटीदार आंदोलन 'घर की लड़ाई' ही कहलाएगी।