हिमाचल प्रदेश में मतदान के बाद अब गुजरात में चुनावी माहौल और गरमाएगा क्योंकि अब सभी नेताओं का ध्यान गुजरात पर ही केन्द्रित हो जाएगा। हालांकि कांग्रेस सत्ता हासिल करने के लिए पूरी ताकत से जुटी है, वहीं भाजपा अपने गढ़ को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
राहुल का नया अंदाज : ओजस्वी कवि रामधारीसिंह दिनकर की बहुत ही चर्चित पंक्तियां हैं- दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी इन दिनों इसी अंदाज में बातें कर रहे हैं और लगातार फ्रंटफुट पर ही खेल रहे हैं। पिछले दिनों जब रसोई गैस महंगी हुई तो राहुल ने कुछ इसी तरह विरोध किया था- महंगी गैस, महंगा राशन बंद करो खोखला भाषण, दाम बांधो, काम दो, वरना खाली करो सिंहासन।
इसी बीच विजय रूपाणी की कंपनी पर भी जुर्माने का मामला सामने आ गया, राहुल ने लगे हाथ फिर ट्वीट कर दिया- खाऊंगा, न खाने दूंगा की कहानी शाह-जादा, शौर्य और अब विजय रूपाणी। राहुल के आक्रामक तेवरों को देखकर लगता है कि वे इस बार कुछ कर गुजरने के लिए आतुर हैं। मगर जीत का फैसला तो असली खिलाड़ी मतदाता ही करेगा। वही बताएगा कि राहुल गुजरात के रण के रणवीर साबित होंगे या रणछोड़।
आरक्षण बन सकता है कांग्रेस की मुसीबत : कांग्रेस चुनावी रण में जात पांत का दांव भी खेल रही है। उसने पाटीदारों को आरक्षण का लॉलीपॉप भी दिया है, लेकिन चुनाव में यह उसके लिए ही मुसीबत का कारण भी बन सकता है। भले ही उसने हार्दिक को तीन विकल्प दिए हों पर संविधान के बाहर जाकर वह किसी भी सूरत में पाटीदारों को आरक्षण नहीं दे सकती और ओबीसी के 27 प्रतिशत कोटे में पाटीदारों को आरक्षण की बात करती है तो राज्य में 40 फीसदी ओबीसी वोटर उसकी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाएंगे। अब ऐसे में हार्दिक पटेल की मानते हैं तो ओबीसी एकता मंच के नेता अल्पेश ठाकोर नाराज हो जाएंगे। 22 वर्षों से गुजरात की सत्ता के लिए छटपटा रही कांग्रेस के लिए तो यह सांप-छछूंदर वाली स्थिति हो गई है।
भाजपा के दुर्ग में हलचल : कांग्रेस के लगातार हमलों से इस बार भाजपा के दमदार दुर्ग गुजरात में हलचल तो मची हुई है। इसका सबसे एक बड़ा कारण तो यही है कि असली किलेदार नरेन्द्र मोदी दिल्ली में किला लड़ा रहे हैं। दूसरी ओर हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा नेताओं की मौजूदगी ने भी भगवा खेमे को परेशानी में डाल रखा है।
हालांकि भाजपा के इस गढ़ को ध्वस्त करना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि यूपी जैसे बड़े राज्य में सफलता के कदम चूमने वाले सेनापति अमित शाह ने भी पूरी ताकत गुजरात में झोंक दी है। साथ ही पार्टी के दलित और ओबीसी सांसद, विधायकों ने भी राज्य में मोर्चा संभाल लिया है। यह देखना कम रोचक नहीं होगा कि अमित शाह के चक्रव्यूह को कांग्रेसी युवराज भेद पाते हैं या एक बार फिर 'राजनीतिक वीरगति' को प्राप्त होते हैं।
पाटीदारों पर नजर : इसमें कोई संदेह नहीं कि पाटीदार धनबल और संख्या बल के हिसाब से गुजरात की राजनीति में खासी अहमियत रखते हैं। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उनकी आरती उतारने में लगे हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं, राज्य की करीब 44 सीटों पर पाटीदार मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
एक ओर भाजपा के पास पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल जैसे पाटीदार नेता हैं तो कांग्रेस हार्दिक पटेल पर लगातार डोरे डाल रही है और उन्हें अपने पाले में लाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। अब पाटीदार वोटों का प्रसाद किसको मिलेगा इसके लिए तो हमें 18 दिसंबर तक इंतजार करना ही होगा।
भाजपा का विरोध : पाटीदारों की ओर से भाजपा के लिए भी अच्छी खबर नहीं है। कहा जा रहा है कि पाटीदार इलाकों में भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए धारा 144 लगा दी गई है। राज्य के कई पाटीदार इलाकों में बैनर भी लगाए गए हैं, जिन पर लिखा है कि 'बीजेपी वाले यहां वोट मांगने न आएं।
भाजपा कार्यकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि उन पर अंडे भी फेंके गए। पाटीदारों की इस कार्रवाई को पाटीदार आरक्षण आंदोलन के वक्त सरकार द्वारा पाटीदार इलाकों में धारा 144 लगाने से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके बाद भाजपाई खेमे में चिंता बढ़ गई है क्योंकि मतदान के दिन भाजपा की टेबलों पर यदि धारा 144 नजर आई तो लेने के देने पड़ सकते हैं।