बापू ने बर्बाद किया बेटे का राजनीतिक करियर

बापू यानी शंकरसिंह वाघेला ने भाजपा और कांग्रेस की सेहत तो नहीं बिगाड़ी, लेकिन अपने ही बेटे की राजनीतिक सेहत पर जरूर असर डाला है। दरअसल, बापू के साथ कांग्रेस छोड़कर आए 7 विधायक भाजपा से जुड़ गए और भगवा पार्टी ने उन्हें टिकट भी दे दिया, लेकिन वाघेला पुत्र महेन्द्रसिंह खाली हाथ रह गए। 
 
वाघेला ने जनविकल्प नाम से पार्टी बनाकर अपने 70 उम्मीदवारों की तो घोषणा कर दी, लेकिन वे अपने ही बेटे को नहीं समझा पाए। महेन्द्रसिंह भी अपने बापू की रणनीति से सहमत नहीं थे। अब जनविकल्प के टिकट पर कोई भी नेता चुनाव लड़ने को राजी नहीं है। यहां तक कि वाघेला पुत्र ने भी चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। 
 
बापू ने अपना अलग धड़ा बनाकर 1995 में गुजरात की सत्ता हासिल की थी। उसी तरह से वे कुछ इस चुनाव में भी करना चाहते थे, लेकिन उनकी रणनीति पर पानी फिर गया है। क्योंकि उनकी पार्टी से कोई चुनाव लड़ने को ही तैयार नहीं है। भाजपा की तरफ से उनको मिलने वाला फंड भी अमित शाह ने रोक दिया। अब उनके पास अफसोस के सिवा कुछ नहीं है।
 
शंकरसिंह की राजनीति का अंधेरा पक्ष यह है उनकी उम्र तो घर बैठने की हो गई है, लेकिन बेटे का राजनीतिक करियर उड़ान भरने से पहले ही खत्म हो जाएगा। लोगों का तो मानना है कि बापू की गलती की सजा अब उनके पुत्र महेन्द्रसिंह को भुगतनी पड़ेगी। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अब तो बाप-बेटे दोनों की ही राजनीति समाप्त हो गई है। इसके चलते पिता-पुत्र के संबंधों में भी खटास आ गई है। 

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