बदलता रहता है मोदी के प्रचार का तरीका

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007 (19:32 IST)
गुजरात के मुख्यमंत्री एंव भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने वाकपटुता का उपयोग कर 2002 का चुनाव अकेले अपने दम पर ही जीत लिया था।

लेकिन इस बार भाजपा के रणनीतिकार मोदी की छवि एक ऐसे परिपक्व नेता के रूप उकेरना चाहते हैं जो अपने सपनों की सान पर एक नया गुजरात गढ़ना चाहता हो।

मोदी राष्ट्रीय पहचान के नारों के साथ अभी आतंकवाद का मुद्दा भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। बेशक आई लव गुजरात और गुजरात जीतेगा का उनका प्राथमिक नारा भी चल रहा है।

गोधरा के बाद राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों की तरह इस बार कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो भावनाओं को छू सके। फिर भी मोदी को पता है कि भावनाओं की चाश्नी में डुबोए नारे मतदाता को आकर्षित करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी के प्रचार का तौर-तरीका विधानसभा क्षेत्र के अनुसार बदलता रहता है। वे जहाँ जाते हैं, वहाँ के माहौल के हिसाब से अपनी बातें रखते हैं।

विश्लेषकों के अनुसार जब वे उन इलाकों में जाते हैं, जहाँ भाजपा में असंतोष है तो फर्जी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन की हत्या पर अपने ही अंदाज में बात करने लगते हैं। भाजपा में असंतोष वाले इलाकों में मोदी कहते हैं कि किसी ने आतंकवाद से निबटने की कोशिश नहीं की। सोहराबुद्दीन गुजरात की धरती पर मारा गया।

लेकिन जब मुख्यमंत्री दंगा प्रभावित इलाकों से गुजरते हैं तो वहाँ वे आतंकवाद की बातें करते हैं और अपनी हिंदू वाली छवि को भुनाते हैं।

बहरहाल पाँच साल के इस अंतराल में 2002 के विधानसभा चुनाव और मौजूदा चुनावी संग्राम में सिर्फ नारे ही नहीं बदले हैं, तरीके भी बदले हैं। 2002 में मोदी आधुनिकतम रथ का प्रयोग करते थे, जिसमें लाउंज था, टेलीविजन और इंटरनेट था और आधुनिक साजो-सामान थे।

इस बार का उनका रथ सीधा-सादा सा है। एयरकंडिशन गाड़ी पर भगवा रंग चढ़ाया गया है और उस पर आई लव गुजरात के नारे का स्टिकर चिपकाया गया है।

मोदी अपने चुनावी भाषणों को हास्य की चाश्नी लपेटते हैं और गुजरात का झंडा बुलंद करने के बावजूद अपने भाषण भारत माता की जय से शुरू करते हैं। वे अपने भाषणों में गाहे-बगाहे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर निशाना साधते हैं। इस दौरान वे गुजरात विधानसभा चुनाव में चल रहे कांग्रेस के नारे चक दे कांग्रेस की भी खिल्ली उड़ाने की कोशिश करते हैं।

मोदी अपने भाषणों में कहते हैं गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ता समझते हैं यह चक दे कोई इतालवी शब्द है, क्योंकि सोनिया ने इसे चुना है। मैं आपको बता दूँ कि यह ना तो इतालवी है ना अंग्रेजी और ना ही हिंदी। यह एक पंजाबी शब्द है, जिसका इस्तेमाल आम तौर उस वक्त किया जाता है जब गाड़ी किसी गड्ढे में फँस जाती है।

मोदी की रैलियों में उनका मुखौटा पहने सैंकड़ों लोग आगे की कतार में बैठते पाए गए हैं। यह वही जगह है जहाँ ज्यादातर टीवी कैमरे होते हैं।

वेबदुनिया पर पढ़ें