राजा हर्षर्धन और उनके काल के पहले कुछ राजा जब कुंभ में स्नान करने आते थे तो कई प्रकार के दान करते थे जिसमें 84 दान की चर्चा बहुत होती है। कहते हैं कि सम्राट हर्षवर्धन हर 5वें या 6टें वर्ष प्रयाग कुंभ मेले में आते थे और वह बारी-बारी भगवान सूर्य, शिव और बुध का पूजन करते थे। पूजन के बाद ब्राह्मणों, आचार्यों, दीनों, बौद्ध संघ के तपस्वी भिक्षुओं को दान देते थे। इस दान के क्रम में वह प्रयाग लाए हुए अपने खजाने की सारी चीजें दान कर देते थे। वह अपने राजसी वस्त्र भी दान कर देते थे। फिर वह अपनी बहन राजश्री से कपड़े मांगकर पहनते थे।
दान की अलग-अलग व्याख्याएं की गई हैं, लेकिन कुल 84 दानों का संदर्भ हमें हर्षवर्धन के शासन काल में मिलता है। कहते हैं कि सम्राट हर्षवर्धन ने अपने समय पूरे 84 दान किए थे। आज भी कई लोग यहां दान करते हैं, लेकिन उतना नहीं। अमूमन बारह या अठारह दान करके लोग अपने धार्मिक दायित्वों की इतिश्री मान लेते हैं। यह भी है कि इतने दानों की अब तो उन्हें सूची भी नहीं मालूम है।
7. सोने-चांदी के सामानः- सोने के जेवर, चांदी के जेवर, सोने की प्रतिमा, चांदी की प्रतिमा आदि। इसमें देवताओं की प्रतिमा सहित हाथी, घोड़ा, नाग आदि की प्रतिमाएं भी होती थी।
10. अन्य सामग्रीः- कमण्डल, घड़ी, छाता, छड़ी, कुश आसन, पूजा सामग्री आदि।
दान करते समय दान लेने वाले के हाथ पर जल गिराना चाहिए। दान लेने वाले को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। पुराने जमाने में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी, लेकिन अगर सोने का दान किया जा रहा हो तो उसकी दक्षिणा चांदी के रूप में दी जाती है। दान में जो चीज दी जा रही है, उसके अलग-अलग देवता कहे गए हैं। सोने के देवता अग्नि, दास के प्रजापति और गाय के रूद्र हैं। जिन कार्यों के कोई देवता नहीं है, उनका दान विष्णु को देवता मानकर दिया जाता है।