अक्सर देखा गया है कि बुखार आने पर आम आदमी क्रोसिन या मेटासिन की गोली खाकर निश्चिंत हो जाता है जबकि बुखार इस बात का संकेत है कि शरीर पर आक्रमण करने वाले रोगाणुओं ने शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को तात्कालिक रूप से परास्त कर दिया है और शरीर को मदद की दरकार है।
इस दरकार के मायने हैं कि रोगाणुओं से संबंधित दवा दी जाए यानी मलेरिया के रोगाणु हों तो एन्टीमलेरियल दवा और अन्य तरह के हों तो सक्षम एंटीबायोटिक दवाइयाँ देकर उनसे शरीर को निजात दिलवाई जाए। जबकि साधारणत: हम वही करते हैं जिसका जिक्र पहले किया गया है।यदि बुखार को इस तरह सामयिक रूप से दबाकर निश्चिंत हो गए तो आशंका इस बात की भी है कि रोगाणु हमारे रक्त में मौजूद प्राणवायु और ग्लूकोज का उपयोग कर अपना परिवार बढ़ाने का काम द्रुतगति से कर डालें। यदि ऐसा हुआ तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
हालाँकि ऐसा भी होता है कि शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता रोगाणुओं को परास्त कर डालती है। ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो मेहनत करते हैं और पौष्टिक भोजन करते हैं। किसानों या मजदूरों के बीच प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सकों का अनुभव कुछ ऐसा ही है। क्योंकि ये लोग न तो मलेरिया की और न ही किसी अन्य रोगाणु से बुखार की दवा निर्धारित समय तक यानी चार से सात दिन तक लेते हैं परंतु फिर भी अक्सर पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं।
याद रखें 102 डिग्री फेरनहाइट से अधिक बुखार हो तो हथेलियाँ, पगतलियों, सिर और पेट पर पानी की पट्टियाँ तब तक अदल-बदल कर रखते रहें जब तक कि तापमान 100 डिग्री फेरनहाइट तक नहीं आ जाए। याद रखिए, बुखार इस बात की स्पष्ट सूचना है।
बुखार आने पर बुखार को मापना निहायत जरूरी समझना चाहिए। इसके लिए आसानी से पढ़े जा सकने वाले क्लिनिकल थर्मामीटर बाजार में उपलब्ध हैं। यदि विविध कारणों से चिकित्सक को तुरंत नहीं दिखा सकते हैं तो बुखार को दिन में तीन या चार बार बराबर के अंतराल से नापकर नोट करते रहें और जब भी डॉक्टर को दिखाने जाएँ बुखार का चार्ट तथा ली गई दवा के बारे में सही जानकारी दें।
बुखार नापने का आसान तरीका यह है कि थर्मामीटर को साफ पानी से धोकर साफ कपड़े से पोंछ लें। झटका देकर पारे को 95 डिग्री फेरनहाइट या 35 डिग्री सेल्सियस के नीचे ले आएँ। जीभ के नीचे थर्मामीटर को 2 से 3 मिनट रखें। तब तक पूरी तरह मुँह को बंद रखें, होंठों से थर्मामीटर को दबाए रखें, नाक से साँस लें। निर्धारित समय के बाद पारे की स्थिति को पढ़कर रीडिंग नोट कर लें।
याद रखें 102 डिग्री फेरनहाइट से अधिक बुखार हो तो हथेलियाँ, पगतलियों, सिर और पेट पर पानी की पट्टियाँ तब तक अदल-बदल कर रखते रहें जब तक कि तापमान 100 डिग्री फेरनहाइट तक नहीं आ जाए। याद रखिए, बुखार इस बात की स्पष्ट सूचना है कि सक्षम और योग्य चिकित्सक की सलाह लेकर शरीर को भारी हानि और अनहोनी से रक्षा की जाए।
अहम बात यह है कि मनुष्य उष्ण रक्त प्राणी है और मस्तिष्क में स्थित ताप नियंत्रक केंद्र शरीर के तापमान को 37 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखने की पूरी कोशिश सतत करते रहते हैं। शरीर की समस्त क्रियाएँ इसी तापमान पर अपनी संपूर्ण क्षमता के साथ संपन्न होती हैं। अत: तेज बुखार की स्थिति में बताई गई विधि से ठंडे पानी की पट्टियाँ तुरंत रखना शुरू कर देना चाहिए। अन्यथा मस्तिष्क के अवयवों में स्थायी या अस्थायी विकृति आ सकती है, जो घातक सिद्ध हो सकती है।
बच्चों को अक्सर झटके आने लगते हैं, जिसकी वजह से कम से कम 3 से 5 वर्ष तक मिर्गी की दवा बिना चूके लगातार देना आवश्यक होती है। बुखार के दौरान दो बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है, एक तो ऊर्जा का क्षय या व्यय कम से कम होना चाहिए, चलते-फिरते, काम करने, पढ़ने, टीवी देखने, बोलने, स्नान करने आदि में ऊर्जा का क्षय होता है, जिससे ज्यादा थकान और कमजोरी आती है। बीमारी से लड़ रहे शरीर को जबकि अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
दूसरा यह है कि भोजन बंद न करें, हाँ तरल पदार्थ अधिक से अधिक मात्रा में अधिक बार लें। गरिष्ठ भोजन को पचाने में शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अत: घी, तेल, मावेदार पदार्थ न लें। मधुमेह न हो तो एक गिलास उबले पानी में दो-तीन चम्मच शकर या ग्लूकोज, चुटकी भर नमक और 10-15 बूँद नीबू का रस डालकर बार-बार लें। फलों का रस, फल, छाछ, दूध, दलिया, मूँग की दाल का पानी आदि लेना चाहिए।