रोकथाम ही पोलियो का इलाज

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-डॉ. अग्रवा

पोलियो एक वायरल संक्रमण है जिसका निशाना होता है हमारा तंत्रिका तंत्र का वह हिस्सा, जो हमारी विभिन्न मांसपेशियों को नियंत्रित करता है यानी मोटर न्यूरान्स, एंटीरियर हॉर्न सेल और मस्तिष्क में स्थित दिमाग के मोटर एरिया। इसकी वजह से बच्चे या बड़े भी आजीवन लकवे के शिकार हो सकते हैं। इसी को आम भाषा में पोलियो कहा जाता है। पोलियो वायरस किसी भी व्यक्ति पर किसी भी उम्र में हमला कर सकता है परंतु बच्चों में इसकी आशंका अधिक होती है। पोलियो वायरस तीन प्रकार से प्रभावित करता है-

अबार्टिव पोलियो : इसमें मरीज को लकवा नहीं होता तथा दो या तीन दिन तक साधारण ज्वर बना रहता है।

एसेप्टिक मेनिन्जाइटिस : इसमें उपरोक्त लक्षणों के अलावा मस्तिष्क ज्वर के भी लक्षण होते हैं और कुछ ही दिनों में मरीज पूर्णतः ठीक हो जाता है। इसमें भी लकवा नहीं होता है।

पैरालिटिक पोलियो : इसमें लकवा हो जाता है। उक्त लक्षणों के अलावा बच्चों में एक पैर का लकवा और 5 से 15 वर्ष के बच्चे में एक पैर एवं हाथ का लकवा या दोनों पैर का लकवा हो सकता है। यदि मस्तिष्क में स्थित ब्रेन स्टेम स्थित क्रेनियल नर्व्ज की कोशिकाएँ प्रभावित होती हैं तो बल्बर पोलियो होता है, जिसमें बुखार, न्यूमोनिया, साँस की मांसपेशियों का लकवा होता है।

पोलियो की दवाई बच्चे के जन्म के पश्चात पहले दिन से ही दी जा सकती है तथा इसके पाँच डोज एक से दो महीने के अंतराल से और पाँच वर्ष में एक बूस्टर डोज दिया जाता है। पहले मात्र तीन डोज दिए जाते थे। पोलियो से एक बार यदि लकवा हो जाए तो होने के छःमहीने बाद जितना असर बच जाता है, वह स्थायी होता है। लकवा एक बार होने के बाद ठीक नहीं होता। इसलिए पोलियो की रोकथाम ही इसका सबसे बेहतर इलाज है और इसके लिए बच्चे को जन्म के पहले दिन ही पोलियो की दवा पिलाएँ। इसी अभियान को बल देने हेतु निरंतर पल्स पोलियो अभियान चलाए जा रहे हैं।

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