* अधिक नमक का सेवन करने से शरीर में सोडियम का स्तर बढ़ जाता है, जो पानी को ऊतकों में खींच लाता है।
* अधिक शर्करा का सेवन करने से भी यही स्थिति बन सकती है। शर्करा का प्रत्येक अणु पानी को अपने में कैद कर सकता है। यही नहीं, अधिक शकर के सेवन से अधिक इंसुलिन का स्राव होता है, जिससे अधिक सोडियम जमा होने लगता है और यह भी पानी को जमा करता है।
* महिलाओं में कुछ हार्मोनल गड़बड़ी के चलते भी वॉटर रिटेंशन हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान भी अक्सर यह समस्या देखी जाती है।
* एनिमिया के रोगियों में हीमोग्लोबिन की कम मात्रा के कारण नमक व पानी अधिक समय तक शरीर में रुका रहता है।
* उच्च रक्तचाप की स्थिति में गुर्दे कम मात्रा में पानी का उत्सर्जन करते हैं। इसके कारण भी वॉटर रिटेंशन होता है।
* सुस्त थायरॉइड ग्रंथि पाचन एवं उत्सर्जन क्रिया को धीमा कर देती है, जिससे वॉटर रिटेंशन हो सकता है।
* कुछ एलर्जियों के कारण भी वॉटर रिटेंशन की समस्या हो सकती है।
* कभी-कभी वॉटर रिटेंशन हृदय, गुर्दे, लीवर या लसिका ग्रंथि की गंभीर बीमारियों के कारण भी हो सकता है।
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अब प्रश्न उठता है कि वॉटर रिटेंशन से मुकाबला कैसे किया जाए। पहली नजर में किसी को भी यही लग सकता है कि पानी का कम सेवन करने से शरीर में जल-जमाव की समस्या पर काबू पाया जा सकता है लेकिन ऐसा करने से लाभ होने के बजाए नुकसान अधिक होने की आशंका है। कारण यह कि पानी के इस जमाव को दूर करने के लिए भी ताजे पानी की जरूरत पड़ती है।
हाँ, नमक का सेवन जरूर कम कर देना चाहिए। बेकिंग पाउडर, अजीनो मोटो आदि में भी सोडियम की मात्रा अधिक होती है। इनके सेवन से भी बचना चाहिए। एसिडिटी की दवाओं तथा कुछ एंटी बायोटिक्स में भी सोडियम होता है। डॉक्टर की सलाह लेकर इनके बेहतर विकल्प तलाशें। शकर का सेवन भी कम कर दें।
अपने आहार में खड़े अनाज को शामिल करें। दाल, चावल आदि छिलके सहित पकाएँ व उनका सेवन करें। मौसमी फल व सब्जियाँ जरूर खाएँ। वॉटर रिटेंशन को दूर करने के लिए गोलियाँ भी आती हैं लेकिन इनका सेवन केवल बहुत जरूरी होने पर डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।