आजकल बच्चों और युवाओं में फास्ट-फूड के प्रति तेजी से लगाव बढ़ रहा है। भागती-दौड़ती जिंदगी में लोगों के पास इतना वक्त नहीं रह गया है कि वे सेहतमंद भोजन कर सकें और वे इधर-उधर कुछ भी खाकर अपना काम चला लेते हैं।
ND
ND
डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ कम उम्र के लड़की-लड़कों को ऐसे रोगों का शिकार होने के लिए जो आमतौर पर बड़ी उम्र के लोगों को होते हैं, फास्ट फूड के बढ़ते चलन को जिम्मेदार मानते हैं। दिल्ली के लेडी ईरानी कॉलेज की पोषण विशेषज्ञ डॉ. सुषमा शर्मा के अनुसार महानगरों के स्कूलों मे पढ़ने वाले 60 फीसदी बच्चे सिर्फ फास्ट फूड पर चलते हैं, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि उन्हें फास्ट फूड का चस्का लगा हुआ है। नतीजा बड़ा ही खौफनाक है। फास्ट फूड खाने के आदी बच्चे ऐसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं जो बुढ़ापे की बीमारियाँ समझी जाती हैं।
एक और पोषण वैज्ञानिक और पथ्य आहार विशेषज्ञ डॉ. पल्लवी जोशी यह कहते हुए बड़ी भयावह तस्वीर खींचती हैं कि पहले के जमाने में बच्चे गेहूँ, चावल, दही और हरी सब्जियों से बने भोजन पर पले थे लेकिन इन दिनों ये चीजें इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। आज के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले किशोर-किशोरियों के पसंदीदा भोजन हैं बर्गर, पिज्जा, फ्रेंच फ्राई, छोले-भटूरे, समोसे और न जाने ऐसी ही कितनी ही चीजें।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ परामर्शदाता और अग्रणी बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पी.के. सिंघल का कहना है कि त्वचा पर आने वाले चकत्तों से लेकर पेट की मरोड़ तक तकरीबन 50 रोग फास्ट फूड की देन है। वे कहते हैं कि तकरीबन 60 फीसदी बच्चों की बीमारियाँ उनके गलत खानपान की वजह से होती हैं।
बढ़ते बच्चों को रोजाना तकरीबन 1500 कैलोरी की जरूरत है, जिसका आधा कार्बोहाइट्रेड, 20 फीसदी वसा और 30 फीसदी प्रोटीनों का होना चाहिए। लेकिन बाजार में फास्ट फूड के नाम पर जो चीजें सहज उपलब्ध हैं, उनमें शर्करा और चर्बी तो होती है, लेकिन प्रोटीन लगभग नदारद होती है। यही नहीं, उनमें पड़ने वाले कृत्रिम नमक और प्रिजर्वेटिव्स स्वास्थ्य के लिए जहर जैसे होते हैं। प्रोटीन की कमी उनमें कितनी ही स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा करती हैं।
कभी-कभार स्वाद बदलने के लिए फास्ट फूड ले लेने में कोई खास बुराई नहीं है, लेकिन उनकी लत काफी घातक है। ऐसा नहीं कि वे पोषक तत्वों से पूरी तरह खाली होते हैं, लेकिन उनकी पौष्टिकता बरकरार रखने के लिए उनका तापमान 20 से 30 अंश सेल्सियस के बीच रखना आवश्यक होता है। गरम जलवायु, खराब यातायात और संग्रह सुविधाओं के चलते फास्ट फूड केंद्रों के फ्रिजों में पहुँचते-पहुँचते उनकी पौष्टिकता काफी कुछ हद तक खत्म हो जाती है।
फास्ट फूड की बढ़ती आदत के लिए इन खाद्य पदार्थों के निर्माताओं के धुआँधार विज्ञापनों और बड़ी नामी-गिरामी हस्तियों का उनके प्रचार के लिए टीवी के परदे पर आना और मोहक लुभावने नारे देकर उनके प्रति ललक पैदा करने की कोशिश बच्चों के अपरिपक्व दिमाग पर ज्यादा असर करते हैं। वे उन्हीं चीजों को खाने-पीने की जिद करते हैं। दूसरे, आज भारतीय रसोई में पकने वाले खाने की एकरसता भी बच्चों को फास्ट फूड की ओर झुकने पर विवश करती है। वही-वही चीजें रोज खाते-खाते वे ऊब जाते हैं और कुछ नया खाने के लिए उनका जी उमगता है। बाहर के खाने के प्रति बच्चों की इस ललक को रोकने के लिए जरूरी है कि उनकी माताएँ अपनी रसोई में अलग-अलग चीजें पकाकर उन्हें खिलाएँ।
कुछ डॉक्टरों का मानना है कि सरकार को इन सस्ते और नुकसानदेह खाद्य पदार्थ बेचने वाले फास्ट फूड केंद्रों पर रोक लगाने के लिए फौरन पेशतर कानून बनाने चाहिए। साथ ही निष्पक्ष अधिकारी से फास्ट फूड केंद्रों पर उपलब्ध खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता की जाँच कराई जानी चाहिए।
फ्रेंच फ्राई : सिर्फ मांड और चर्बी होती है, प्रोटीन नदारद है।
बर्गर : मैदे से बने होने के कारण पोषक तत्वों से खाली है।
पिज्जा : मैदे से बने होने के कारण पौष्टिक तत्वों का अभाव। हालाँकि उनमें सब्जियों और गोश्त जैसी पोषक चीजें भी पड़ती हैं, लेकिन बासी होने के कारण पेट की बीमारियाँ पैदा कर सकती हैं।
नूडल्स : मैदे से बने होने के कारण पोषक तत्वों का अभाव।
छोला-भटूरा : इनमें चर्बी और मांड जरूरत से ज्यादा मात्रा में होता है। तले हुए भटूरे पेट और आँत के लिए नुकसानदेह होते हैं।
चिप्स : चर्बी की अधिकता और कृत्रिम प्रिजर्वेटिव्स के चलते नुकसानदेह होते हैं। ज्यादा मात्रा में खाने से मोटापा लाते हैं।
शीतलपेय : फास्फोरिक एसिड में बने होने के कारण हड्डियों को कमजोर करते हैं।