14 जून 1868 को ही महान वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन का जन्म हुआ था, उन्होंने मानव रक्त में उपस्थित एग्ल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्तकणों का ए, बी और ओ समूह में वर्गीकरण किया। इस वर्गीकरण ने चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महत्वपूर्ण खोज के लिए ही कार्ल लैंडस्टाईन को सन् 1930 में नोबल पुरस्कार दिया गया।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य था, कि किसी भी नागरिक को रक्त की आवश्यकता पड़ने पर उसे पैसे देकर रक्त न खरीदना पड़े और इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अब तक 49 देशों ने स्वैच्छिक रक्तदान के विकास को बढ़ावा दिया है। हालांकि कई देशों में अब भी रक्तदान के लिए पैसों का लेनदेन होता है, जिसमें भारत भी शामिल है।
विभिन्न संस्थाओं व व्यक्तिगत स्तर पर रक्तदान को लेकर उठाए गए कदम भारत में स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने में कारगर साबित हुए हैं। चिकित्सा विज्ञान रक्तदान के संबंध में कहता है कि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो वह रक्तदान कर सकता है। साथ ही जिसे एचआईवी, हेपेटाइटिस B या हेपेटाइटिस C जैसी बीमारी न हुई हो, और रक्तदान करने के इच्छुक हो, वह अपना ब्लड डोनेट करके किसी की जान की रक्षा कर सकता है।
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