आमतौर पर सर्वाधिक तनाव का कारण आपसी सामंजस्य न बैठा पाने की स्थिति में होता है। यदि हम सबकी ख़ुशी को अपनी खुशी समझें। मन में दूसरों को देखकर उसकी स्वयं से तुलना न करें तो एक हद तक इससे बचा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है अपने स्वभाव को लचीला बनाना। यदि हमने अपने को हर स्थिति में ढालना सीख लिया तो कोई कारण नहीं कि हम तनावग्रस्त रहें। किसी कारणवश यदि ऐसा नहीं कर पाते हैं तो इतना जरूर ध्यान रखें कि आपका तनावग्रस्त होना कहीँ आपको अवसाद से मनोरोग की ओर तो नहीं ले जा रहा है, इससे बचें। यह आपको ही समझना होगा। इन स्थितियों के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार आप स्वयं होते हैं। दूसरों को आपकी मनःस्थिति से कम ही फर्क पड़ता है इसलिए स्वयं को प्रफुल्लित रखने का प्रयास करें। अपनी अभिरुचि को महत्व दें। इसके लिए वातावरण बनाएं। दिनचर्या में जरूरी परिवर्तन करें। यह परिवर्तन ही सामंजस्य कहलाता है।
मेरा अनुभव कहता है कि घर, परिवार, समाज और रिश्तों में जो सामंजस्य बैठाकर चलता है वह् कभी भी तनावग्रस्त नही होता है। हां इसके लिए जरूरी है दूसरा पक्ष भी इसे स्वीकारें। प्रयास दोनों तरफ से होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो कोई न कोई तो तनावग्रस्त रहेगा ही क्योंकि जीवन का अहम पहलू तनाव भी है। तनावग्रस्त व्यक्ति को चाहिए कि वह समय रहते इस पर ध्यान दें। इसकी रोकथाम के विभिन्न उपाय करें और अवसाद की स्थिति में चिकित्सक की सलाह जरूर लें। परिजनों का भी यह दायित्व है कि वह तनावग्रस्त व्यक्ति की समस्या को समझें और उनके निदान की पहल करें।
तनाव से छुटकारा पाने के अनेक उपाय हैं- योग, संगीत, सुबह की सैर, मनोरंजन आदि पर सबसे महत्वपूर्ण है- ईर्ष्या का त्याग करना और आपसी सामंजस्य का भाव रखना। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो कोई कारण नहीं कि हम तनावग्रस्त रहें। करना तो पड़ेगा क्योंकि यह जरूरी हैं स्वस्थ्य और खुशहाल जीवन के लिए। करके देखें...