अंकुरित आहार - संतुलित आहार

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आहार का संतुलित होना ही पर्याप्त नहीं, वरन उसके पकाए और खाए जाने का तरीका भी अपना विशिष्ट महत्व रखता है। तेज आग पर देर तक पकाने से सभी खाद्य पदार्थ अपनी मौलिक विशेषताओं का अधिकांश भाग गँवा बैठते हैं। चिकनाई में तलने-भूनने से रही-सही उपयोगिता भी नष्ट हो जाती है।

खाने के संबंध में बरती जाने वाली भूलें और भी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। कम चबाना, जल्दी-जल्दी में निगलते जाना, आहार को भूख में सम्मिलित होने वाले पाचक रसों से वंचित रखना है। एक बार किया हुआ भोजन पचने में काफी समय लगता है, लेकिन कभी-कभी बिना कड़ी भूख लगे ही भोजन कर लिया जाता है। यही अपच का प्रमुख कारण होता है।

अच्छा यह है कि अपने भोजन में काफी मात्रा में कच्ची साग-भाजी-सलाद शामिल किया जाए ताकि उनमें पाए जाने वाले बहुमूल्य क्षार एवं खनिजों को पोषण में सम्मिलित होने का अवसर मिले। सूखे अन्न को अंकुरित करके तथा धीमी आग पर उबाल कर खाने का तरीका भी ऐसा है, जिससे मोटे अनाज मेवे जैसा गुण देने लगते हैं।

प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में अंकुरित आहार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अंकुरित होते समय बीजों में पाई जाने वाले प्रोटीन, विटामिन, एन्जाइम एवं मिनरल की वृद्धि असाधारण रूप से होती है। अंकुरण के समय अन्न की जीवनी शक्ति विकासोन्मुखी एवं अधिक सक्रिय होती है। उस स्थिति में एन्जाइम की मात्रा बीजों में अत्यधिक बढ़ जाती है, जो शरीरगत चयापचय क्रिया को अधिक अच्छी तरह संपन्न कर रक्त संचार व पाचन तंत्र को विशेष शक्ति प्रदान करते हैं।

तेज आग पर उबाल देने से बीजों की अंकुरण क्षमता नष्टप्रायः हो जाती है और जीवनी शक्ति भी बहुत मात्रा में कम हो जाती है। अंकुरित आहार कम मात्रा में ग्रहण किए जाने पर भी पोषण की आवश्यकता पूरी हो जाती है।

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अंकुरित किए गए अन्न एवं बीजों में प्रोटीन की प्रचुरता हो जाती है। साथ ही जटिल एवं गरिष्ठ प्रोटीन का रूपांतरण सरल प्रोटीन अमीनो एसिड्स में हो जाता है। बीजों के अंकुरण के पश्चात श्लेष्मा बिलकुल नहीं रह जाता, इस कारण उनमें गैस उत्पन्न करने का दोष बहुत ही न्यून रह जाता है। अंकुरण के तीन-चार दिन बाद गेहूँ में विटामिन "सी" की मात्रा तो ३०० प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसी प्रकार विटामिन "बी-कॉम्प्लेक्स" की मात्रा भी अंकुरण की प्रक्रिया में कई गुना बढ़ जाती है।

प्रकृति मनुष्य के लिए खाद्य सामग्री सूर्य की अग्नि में पकाकर समग्र रूप में प्रस्तुत किया करती है। टहनी में से आम तभी टपकता है जब वह पककर खाने योग्य हो जाता है। यही बातें प्रायः अन्य सभी फलों पर लागू होती हैं।


अन्न के दाने भी पक कर तैयार हो जाने पर ही पौधे से अलग होते हैं। प्रकृति प्रदत्त उपहारों को उसी रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्यप्रद होता है। इनमें शरीर के पोषण के लिए आवश्यक सभी तत्व विद्यमान होते हैं। खाद्य पदार्थों को अधिक गरम करने, अधिक उबालने अथवा भूनने से वे अप्राकृतिक हो जाते हैं।


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हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक स्टार्च अधिक मात्रा में कच्चे खाद्य पदार्थों से ही मिलते हैं। दाँतों का व्यायाम और पाचन रस की प्राप्ति भी कच्चे पदार्थों से होती है। मुँह में अधिक अच्छी तरह चबाने से पर्याप्त "लार" निकलकर इनमें मिल जाती है।

फलों एवं सब्जियों को सलाद के रूप में लेना चाहिए। गाजर, मूली, ककड़ी, खीरा, पालक, धनिया, पुदीना को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिला लें। इनमें पोषक तत्व सुरक्षित रूप में मिल जाता है।

कच्चे भोजन को कुछ न कुछ अंशों में अवश्य लिया जाना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भोजन को संतुलित आहार की श्रेणी में तभी गिना जा सकता है जब उसमें कच्चे आहार का भी समावेश समुचित मात्रा में किया गया हो।