आईएनएस खुकरी कैसे डूबी

प्रदीप कुमार
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भारतीय सेना के इतिहास में 1971 को ऐतिहासिक माना जाता है क्योंकि इसी साल जबरन थोपे गए युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को न केवल हराया बल्कि करीब एक लाख से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदी भी बनाए। विश्व में इतने ज्यादा सैनिकों के युद्धबंदी बनाए जाने की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती है लेकिन भारतीय नौसेना के लिए ये साल दुखद भी रहा, क्योंकि इसी युद्ध में 18 अधिकारियों और 176 नाविकों को लेकर उसका पोत खुकरी डूब गया। जब भारत की विजय पताका चारों ओर लहरा रही थी, तभी इसका डूब जाना एक बड़ा सदमा था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि खुकरी डूबी कैसे?

खुकरी के डूबने के रहस्य बताने के लिए मेजर जनरल इयान कार्डोज ने 'आईएनएस खुकरी कैसे डूबी' नामक पुस्तक लिखी। इस हादसे में जीवित बचे नौसैनिकों के बयानों और अनुभवों पर लिखी गई पुस्तक एक ऐतिहासिक दस्तावेज साबित हुई। रॉली बुक्स से आई इस पुस्तक को हिंदी पाठकों के लिए अनूदित तौर पर हिंद पॉकेट बुक्स ने पेश किया है।

कार्डोज थल सेना के अधिकारी रहे हैं और उन्होंने नौसेना के एक बड़े हादसे पर पुस्तक लिखी है, यह थोड़ा चौंकाने वाला है लेकिन कार्डोज बताते हैं कि उनका सपना नौसेना में ही शामिल होने का था। उनका बचपन कोलाबा में बीता, उनके घर के दोनों तरफ सागर थे, गोवा स्थित पैतृक घर भी सागर किनारे था तो उनकी सोच और सपने हमेशा सागर की लहरों से ही टकराते थे लेकिन एक आँख में चोट लगने की वजह से उन्हें नौसेना में प्रवेश नहीं मिला।

लेकिन नौसेना के प्रति लगाव ने उनसे खुकरी की कहानी को 38 साल बाद ही सही बताने के लिए प्रेरित किया। हादसे में बचे लोगों का पता-ठिकाना मालूम कर उन्होंने सबसे बात की और इसके लिए उन्हें कई देशों के चक्कर भी लगाने पड़े क्योंकि जीवित बचे कुछ लोग विदेशों में जा बसे थे।

इस पुस्तक में कार्डोज ने खुकरी के साथ-साथ भारतीय नौसेना की अहमियत भी बताई है। पहले अध्याय में उन्होंने पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए युद्ध में नौसेना के शामिल नहीं होने को सही ठहराया है। दरअसल, 1965 में नौसेना को युद्ध में नहीं उतारने का फैसला तत्कालीन सरकार का था जिसके खिलाफ तबके नौसेना अध्यक्ष एडमिरल बी.एस. सोमण ने प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भी बात की लेकिन सरकार उसी फैसले पर अड़ी रही और भारतीय नौसेना मन मसोसकर रह गई।

शायद तब सरकार युद्ध के दायरे को बढ़ाना नहीं चाहती थी। लेकिन 1971 से काफी पहले ही नौसेना ने तय किया कि अब युद्ध छिड़ने पर वह चुपचाप नहीं बैठेगी। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी नौसेना को भरोसा दिलाया कि युद्ध होने पर नौसेना को बाहर नहीं रखा जाएगा।

बहरहाल, 1971 के युद्ध में नौसेना ने हिस्सा लिया और भारत की जीत में अहम भूमिका अदा की। युद्ध के दौरान ही पाकिस्तानी युद्ध पोत हैंगर को ठिकाने लगाने के लिए खुकरी और कृपाण को जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन सागर की गहराइयों के बीच खुकरी हैंगर के निशाने पर आ गई और खुकरी में रखे अस्त्र-शस्त्र के भंडार में विस्फोट हो गया। 9 दिसंबर, 1971 को खुकरी मिनटों में डूब गई।

पुस्तक : आईएनएस खुकरी कैसे डूबी
लेखक : इआन कार्डोज
प्रकाशन : हिंद पॉकेट बुक्स
मूल्य : 175 रुपए

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