जेल में सिमटी महिलाओं का पहला और एकदम अनूठा कविता संग्रह
कैद। चार दीवार के भीतर घुटती सांसें। अपनों के लिए छटपटाता मन का पंछी। जान-अनजाने, चाहे-अनचाहे किए गए अपराधों या महज आरोपों का दंड भोगती महिलाएं। संवेदनशीलता के धरातल पर हम में से कितनों को स्पर्श कर पाती है उनकी पीड़ा। कितना महसूस कर पाते हैं हम उनकी वेदना का दंश। शायद बिलकुल नहीं। क्योंकि यह जेल की दुनिया है। हम जैसे संभ्रांतों से अलग नकारात्मक छवि वाले इंसानों की दुनिया।