कोई विचार, भाव या अहसास जब मन की धरा से उपज कर कागज के कैनवास पर एक विशेष 'कोमलता या उग्रता' से अवतरित होते हैं तो इसे कविता कहते हैं। यूं तो कविता की कई खूबसूरत परिभाषाएं हमें पढ़ने को मिलती है लेकिन सरल शब्दों में जो मन से निकल कर सीधे मन को स्पर्श करें वही असल में कविता है। इन अर्थों में कवयित्री ज्योति जैन की कविताएं स्वागत योग्य हैं।
प्रेम, स्त्री शक्ति, मां, रिश्ते, राष्ट्र, प्रकृति, बेटियां, जीवनसाथी जैसे सुकोमल-गंभीर विषयों पर कवयित्री ने खूबसूरत भावाभिव्यक्तियां दी हैं। संग्रह का सबसे आकर्षक पक्ष है प्रथम खंड 'कोमल अहसास प्रेम का' और अंतिम खंड 'ज्योति हूं मैं'।
अंतिम खंड में कवयित्री ने विभिन्न प्राकृतिक बिंबों के माध्यम से स्वयं को, और स्वयं के माध्यम से समूची नारी अस्मिता को प्रस्तुत किया है। वहीं प्रथम खंड सतरंगी प्यार से सराबोर है। चाहे वह पहली मुलाकात हो या पहला स्पर्श कवयित्री ने प्यार के हर स्निग्ध पहलू को नजाकत से पन्नों पर रखा है। गहरे प्यार को कवयित्री जितनी श्रद्धा से अनुभूत कर रही है उतनी ही प्रखरता से अभिव्यक्ति के स्तर पर भी वह सफल रही हैं।
उनकी छंदमुक्त कविताएं तल्लीनता से रची गई हैं जो पाठक के भीतर लय तरंगित करती है। दूसरी तरफ छंदयुक्त कविताएं, काव्य को पैरामीटर पर परखने वाले सुधी पाठकों को निराश कर सकती है। चांद, तारे, आकाश, सूर्य, फूल, इन्द्रधनुष, रंग, धरती, चिड़िया उनके पूरे काव्य-संग्रह में आते-जाते रहते हैं। सामाजिक विडंबनाओं और कुरीतियों के प्रति उनके तेवर तीखे हैं। राष्ट्र के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने में वह शहीदों को नहीं भूलती और सामाजिक समरसता स्थापित करने का कर्तव्य भी सच्चे कवि की तरह निभाती है।