पुस्तक समीक्षा : बाल कहानियों की पुस्तक 'चुलबुली कहानियां' जादुई आकर्षण से भरपूर

neelam rakesh kids story
 
नीलम राकेश देश की एक जानी-मानी बाल साहित्यकार हैं। उनकी रचनाएं देश की बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहतीं हैं। कई सम्मानों से सम्मानित आपकी 23 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। जिसमें एक लघु कथा संग्रह भी है। 
 
आपकी एक बाल कहानियों की पुस्तक 'चुलबुली बाल कहानियां' ज्ञान मुद्रा पब्लिकेशन भोपाल से अभी प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में बाल मन के अनुरूप लिखी सातों कहानियों में जादुई आकर्षण है। एक बार पुस्तक हाथ में आ जाने पर बच्चे सारी कहानियां पढ़ने के बाद ही पुस्तक छोड़ते हैं।
 
पुस्तक की पहली कहानी 'टॉफी का पेड़'सूखते हुए पेड़ों को बचाने की पहल, एक बच्चे के द्वारा किस तरह की गई है, इसे बड़े मनोरंजक और चुलबुले अंदाज में लेखिका ने प्रस्तुत किया है। 
 
दूसरी कहानी 'जुगनू भैया' भी मजेदार बाल मन की कहानी है। ठुमक-ठुमक कर देखो भैया, चम-चम चमकें जुगनू भैया। इसे मंत्र मानते हुए अपनी बाल बुद्धि से कहानी की नन्हीं नायिका अपनी मौसी को जुगनुओं के दर्शन करवाती है। इधर मौसी भी बालमन का आनंद लेती हुई नायिका को जुगनुओं की चमक का रहस्य बताती है। यह कहानी बाल मनोविज्ञान के साथ ही वैज्ञानिक पहलू को भी समायोजित करती दिखाई पड़ती है। 
 
 
'तिरंगा' कहानी में झंडे के सम्मान के साथ ही ध्वजा रोहण और झंडा फहराने में अंतर बताया गया है। 'सपना का टिफिन', कहानी में बच्चों को बड़े मनोरंजक ढंग से मिलजुल कर खाने की सीख दी गई है। '100 नंबर डायल का कमाल' बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी है बाल कहानी है, जिसमें 100 नंबर डायल करके किस तरह एक बच्चे को अपहरणकर्ताओं से बचाया जाता है, को सीधे और सरल शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। 
 
 
'बुलबुल और हाथी' कहानी इस पुस्तक की सबसे अच्छी कहानी इस मायने में है कि बच्चे असफल होने पर जल्दी हार मान लेते हैं, जो कि केवल भ्रम होता है| यदि यह सोच लिया कि हम अमुक काम नहीं कर सकते तो फिर यह सोच मिटाना बहुत कठिन होता है। हाथी जो एक पतली सी चैनों से बंधे थे, चैन तोड़कर आराम से भाग सकते थे लेकिन बचपन में इन हाथियों ने चैन तोड़ने का असफल प्रयास किया था और सफलता न मिलने पर बड़े होने पर भी इनके मन में यह बात बैठ गई कि चैन नहीं तोड़ी जा सकती। और उनहोंने प्रयास करना ही बंद कर दिया। निडर होकर कोई भी कार्य किया जाए तो सफलता मिलती ही है, भले ही देर से मिले। 
 
पुस्तक की अंतिम कहानी 'मेरी बगिया' परोक्ष रूप से यह सीख देती है कि किसी नेक काम को करने के लिए हमें स्वयं पहल करना चाहिए। हम आगे बढ़ेंगे तो दूसरे हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए तैयार हो जाएंगे| कुल मिलाकर सभी बालक कहानियां बाल भावों और बालमन की सुंदर अभिव्यक्ति है। आशा है बाल जगत में इस पुस्तक का स्वागत होगा, बच्चे इसे बड़े चाव से पढ़ेंगे और आनंद लेंगे।

समीक्षक : प्रभुदयाल श्रीवास्तव

 
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