यह कोरोना काल है। यह समय लोकल के लिए वोकल बनने की शुरुआत का सही समय है। कोरोना महामारी के चलते जब जीवन सभी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है। ऐसे में किसी प्रेरणादायी व्यक्तित्व का अनुसरण करने से मनोबल बढ़ेगा। देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर बनने के आह्वान को अमल में लाने की कोशिश हमें करनी होगी।
एक ऐसा ही नाम है रूमा देवी जो हम सब को प्रेरित कर रहा है। हस्तकला, हस्तशिल्प, लोककला को प्रोत्साहन को लेकर यह नाम आज सुर्खियों में है।
तमाम तकलीफों के बावजूद रूमा देवी ने आत्मनिर्भरता की एक बहुत बड़ी मिसाल पेश की है। लोग उनके काम पर गर्व महसूस करते हैं। इसमें न सिर्फ गौरव की बात है बल्की उनका काम हमारी संस्कृति को भी समृद्ध कर रहा है।
हाल ही में प्रकाशित हुई किताब ‘हौसले का हुनर’ में रूमा देवी के संघर्ष और उनकी सफलता की पूरी कहानी का ब्यौरा दिया गया है।
राजस्थान के बाड़मेर की रूमादेवी ने अल्पशिक्षा, संसाधनों की कमी, तकनीकी अभाव के बावजूद सफलता के शिखर पर अपनी जगह बनाई।
वो अपने गांव से निकलीं, कई महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा दी। खुद के साथ दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया। गांव की महिलाओं को भी आगे बढ़ाया और आज हावर्ड विश्वविद्यालय में जा कर भारत का मान बढ़ाया। रूमादेवी के जीवन से सभी को प्रेरणा मिल सके इसी उद्देश्य से इस किताब को लिखा गया है। रूमादेवी के शून्य से सफलता के शिखर तक पहुंचने की कहानी इस किताब में है।
हुनरमंद रूमा देवी की सफलता के साथ ही उनके व्यक्तित्व पर लिखी गई यह किताब अमेज़ान पर उपलब्ध है।
पुस्तक: हौसले का हुनर लेखक: निधि जैन कीमत: 151 रुपए