भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दौरान मानवता को जो त्रासदी झेलनी पड़ी, उन्हें लेकर लिखी मंटों की कहानियों में त्रासदी और दर्द जिस तरह उभरता है, वह पाठक की रूह को ठंडा कर देता है। इतना ठंडा, कि आगे सोचने की सारी शक्ति थम जाए। पाकिस्तान कथाकार अली अकबर नातिक की कहानियां भी मंटों की कहानियों जैसी ही कुछ हैं। उनके कथानक ही नहीं, कथा नायक भी बेहद सीधे-साधे हैं। इतने सादे कि प्रेमचंद के पात्र याद आ जाएं। घटनाओं का ब्योरे भी सादगी से भरे। उनकी कहानियों का अंत बेहद सहज है। सहजता में भी चौंकाना नातिक से सीखा जा सकता है, लेकिन यह चौंकाना भी दर्द से भर देता है।
हिंदी में पहली बार जगरनॉट बुक से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह शाह मोहम्मद का तांगा की दो कहानियों के अंत को देखा जा सकता है। वाल्टर का दोस्त और जोधपुर की हद का अंत बेहद ठंडा है। वाल्टर का दोस्त में वाल्टर दिखाने की कोशिश तो करता है कि दोस्ती में ऊंच-नीच की कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन बड़ी सफाई से युसूफ मसीह को अलग कर देता है। एक मेज के साथ तीन कुर्सियां लगाकर खुद भी खाने बैठता है...दूसरी मेज पर भी खाना वही परोसा जाता है, लेकिन कुर्सी अकेली लगती है युसूफ मसीह की। यह दृश्य ही सबकुछ कह देता है।
चूंकि भारत की नहीं पाकिस्तान की कहानी है, इसलिए यह भी नहीं कह सकते कि उदारीकरण ने वहां ऐसा बदलाव लाने में मदद दी है। यानी पाकिस्तान का समाज भी अभी बदला नहीं है। जोधपुर की हद में हॉरर किलिंग की कहानी है - तेली यानी अपने से नीची हैसियत और जाति वाले के साथ लड़की कैसे भाग सकती है। लड़की की खोज होती है और उसका ठंडा मर्डर भी। फिर कब्र में उसे बेहद इत्मीनान से दफना दिया जाता है। कहानी बड़ा सवाल छोड़ जाती है कि बराबरी का दावा करने वाले मुस्लिम धर्म में भी लड़की का विजातीय से प्रेम कितना बड़ा गुनाह है। वैसे यह पाकिस्तान की हकीकत है।
नातिक ने अपनी जिंदगी राजमिस्त्री के तौर पर शुरू की थी। गुंबदों और मीनारों को गढ़ने में माहिर हो गए थे। लेकिन वक्त ने करवट बदला। नातिक ने प्राइवेट से बीए किया और लेखक बन गए। शाह मोहम्मद का तांगा संग्रह में उनकी पंद्रह कहानियां शामिल हैं। इन कहानियों से गुजरते हुए लगता है कि गुंबद और मीनार गढ़ने वाले हाथों ने कहानियां, चरित्र और दृश्य गढ़ने में भी महारत हासिल कर ली है। इस संग्रह की कहानियों में पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब की माटी है, उसकी खुशबू है, उसका दर्द है, उसकी त्रासदियां हैं और उनके बीच से मानवता को खोजती आंखें भी हैं।
वैसे भी कहानियां इनके बिना रची भी नहीं जा सकतीं। इस संग्रह की मार्मिक कहानी है अलादीन की चारपाई। इस कहानी को पढ़ने के बाद ही पता चलेगा कि किस तरह एक शख्स खुद के भीतर एक पूरी की पूरी सभ्यता को समोये रहता है और उसके गुजर जाने के बाद किस तरह एक पूरी की पूरी सभ्यता भी उसके साथ ही गुजर जाती है। यह कहानी अपने आखिर में आपको सोचने के लिए बाध्य कर देगी। जिंदगी के फलसफे को समझने और समझाने की नई राह भी खोल देती है। इस संग्रह की दो कहानियों की बड़ी चर्चा हुई है। शीर्षक कहानी शाह मोहम्मद का तांगा तो बेहद चर्चित कहानी रही है। इस कहानी का नायक शाह तांगा चलाता है, तांगे पर बैठी सवारियों को कहानियां सुनाता है और इस तरह सफर चलता रहता है। हर शख्स की तरह उसके जेहन में भी एक फंतासी है। उस फंतासी में वह भी जीता है। फंतासी क्या है...कारों की। लेकिन जब कारों के बीच खुद को पाता है तो उसकी मनोदशा देखने लायक होती है। इस कहानी का असली स्वाद तो उसे पढ़कर ही लिया जा सकता है।
इस संग्रह की एक और उल्लेखनीय कहानी है कयामदीन। यह कहानी पाकिस्तान के शासन की फरेब को बखूबी उजागर करती है। सतलुज में आई बाढ़ के इर्द-गिर्द बुनी इस कहानी में आम आदमी की बेबसी, शासन की बेरूखी को बखूबी बयान किया गया है। कयामदीन रेडियो पर बाढ़ से बचाव की खबरें सुनकर उम्मीदें पाल बैठता है। लेकिन होता क्या है, रात के अंधेरे में बाढ़ का पानी उसे भी दबोच लेता है। एक ठंडी आह भर पीछे छूट जाती है। इस संग्रह की कहानियों में प्यार है, बेबसी है, दर्द है, नाराजगी है, सब कुछ है। इनसे गुजरते हुए हमजान सकते हैं कि पाकिस्तान स्थित पंजाब की जिंदगी कैसी है। कुछ-कुछ हिंदुस्तान जैसी तो कई मायनों में अलहदा भी...।