कोरोना काल में आया ‘लॉकडाउन’ ट्रेंड दुनिया के लिए एक त्रासदी बनकर आया, इस काल में बच्चों से लेकर बुर्जुगों तक की जिंदगी थम सी गई। जिंदगियां घरों में कैद हो गईं और हर किसी की उड़ान थम गई, लेकिन जो इस दौर में भी जिंदादिल रहे शायद वही सच्चे अर्थों में इंसान हैं।
पिछले दिनों मीडिया में इटली से लेकर स्पेन तक में ऐसी तस्वीरें देखने को मिली जहां लॉकडाउन में सबसे जिंदादिल और उत्साहित लोगों के रूप में बुर्जुग ही नजर आए। कोई संगीत पर झूमता नजर आया तो कोई अपने फ्लैट की गैलरी में डांस करता नजर आया। तो किसी ने इस संक्रमण काल में रेड वाइन को हाथों में लेकर सेलिब्रेट किया और अवसाद को हराया।
लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की कुछ जिंदादिल महिलाओं की कहानी इन सबसे जुदा है। इन महिलाओं का लॉकडाउन कर्म सबसे ज्यादा सराहनीय रहा, सबसे ज्यादा काबिल ए तारीफ है।
इसे उनकी रचनात्मकता कह लें या ‘आपदा में अवसर’ कहें। जो काम लॉकडाउन के दौर में इंदौर शहर की इन प्रबुद्ध महिलाओं ने किया है वो जिंदादिली की सबसे सुंदर और रचनात्मक मिसाल है।
दरअसल, इंदौर से सटे राऊ के तक्षशिला महिला स्वसहायता समूह की महिलाओं ने लॉकडाउन में लेखन कर्म कर के अपने अनुभवों को साझा करने का एक अनोखा काम किया। अपनी उम्र की एक दहलीज को पार कर चुकीं इन महिलाओं ने अपने अतीत की कहानियां और अनुभव का एक बेहतरीन दस्तावेज तैयार किया है।
एक नॉस्टेल्जिक एक्सपिरिएंस के तहत महिलाओं ने बचपन की अपनी रुचियों से लेकर अपनी शरारतों की कहानियां इसमें दर्ज की हैं।
प्रीति सिसोदिया ने लिखा कि कैसे वे बचपन में एक शरारती और नटखट लड़की थी, लेकिन जब ब्याह की बात आई तो कैसे उन्हें एक घर की बहू की भूमिका में आना पड़ा।
माया कौल ने कश्मीर से लेकर मध्यप्रदेश में आकर बसने से लेकर अपने विवाह की कहानी को बयान किया। वे अपने कॉलेज जाने की कहानी बताती हैं तो अपनी शादी के दिलचस्प किस्सें भी कहती हैं।
अनुपमा शर्मा ने अपनी शादी के रिश्ते के गढने की कहानी को दिलचस्प तरीके से बताया है। इसी तरह अनिता व्यास ने अपनी लव मैरिज के संघर्ष को किताब में उकेरा है।
अपने बाबुल का घर छोड़कर पति के घर में आकर रहने वाली इन क्रिएटिव महिलाओं के डायरीनुमा अंदाज में लिखे गए शादी के किस्सों को पढना बेहद दिलचस्प है।
ठीक इसी तरह दीपाली मोहिनी, पूजा महोबिया इंद्रा व्यास, मित्रा शर्मा और अन्य सभी महिलाओं ने बेहद भावुक कर देने वाले तो व्यंग्यात्मक तरीके से अपनी कहानियां लिखी हैं।
इस साहित्यिक उपक्रम में 60 से ज्यादा महिलाओं ने अपने अतीत, बचपन, स्कूल और शादी-ब्याह के अनुभवों को अपनी भाषा में बयान किया है।
समूह की इन महिलाओं ने की भागीदारी
इस रचनात्मक क्रम में समूह की सदस्य माया कौल, मनीषा पाठक सोनी, मंजुला अत्रे, उपमा कौल, प्रीति सिसोदिया, इंद्रा व्यास, पुष्पा शुक्ला, सुलोचना शर्मा, निरुपमा, विमला मिश्रा, प्रेमलता, अलीफिया, अर्पूवा श्रीवास्तव, रीना सिंह, ज्योति कुमारी, कुसुम अहिरवार, दीपा श्रीवास्तव, साधना सिंह, वंदना भोंसले, प्रीति गोगिया, सीमा कौल,रूपी संधू, नवीना गंजू, मीनाक्षी रघुवंशी, सीमा पाटीदार, मोनल सिंह जाट, मधु मोहे, पुनम पहारिया, कविता चौधरी, शशि पार्थसारथी, अनुपमा शर्मा, संध्या राय चौधरी, दीप्ति प्लुन्दकर, रजनी व्यास, अनिता व्यास, डॉ सुधा चौहान, विजया ओझा, पूजा महोबिया, अनुराधा, कृष्णा वर्मा, दर्शना कानिटकर, उषा जी, जानकी सोनी, दीपाली मोहीनीराज, रमा तिवारी, दुर्गा मुकाती, सुषमा जवेरी, राज लक्ष्मी, अंजु शर्मा, गीता गुप्ता, विजयश्री सोनी, मनीषा अग्रवाल, ममता तिवारी, रमा शर्मा, मित्रा शर्मा, गंगा तिवारी, सरला वैद्य, उषा कुशवाहा, शिव कुमारी, सुमति हजेला, मौसमी, नीलू कुमरावत, सुंदरम ओझा, विजया देवडा, वंदना रैना और ज्योति ने अपने अनुभव सा झा करते हुए लेख लिखे।
क्या करता है समूह?
राऊ स्थित तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह की अपनी बहुत निराली पहचान है यह समूह 12 महिलाओं से प्रारंभ हुआ था और आज सलाहकार इसके और समूह सदस्य मिलाकर कुल 52 सदस्य हैं। इस अनुष्ठान में समूछ ने1040 छोटे-छोटे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का अपना प्रयत्न किया है उन बच्चों की खुशी ही सबकी सफलता है। वह ख़ुशी चाहे उनके नए कपड़े पहनने में हो चाहे उनके खेलने में हो, चाहे उनके पढ़ने में हो, चाहे उनके नाटक करने में हो, उनके फैंसी ड्रेस में हो। समूह की माहिलाये जब भी बच्चों के पास जाती है बच्चो में बच्चों की तरह ही रहती है। बातें करती है खेलती है और कहानियां भी सुनाती है। हम यह नहीं कर सकते… यह बच्चों के मन से बचपन से ही निकालना बहुत जरूरी है। इसी का बीड़ा उठाया है,इस समूह ने। समूह खामोशी से अपना काम करता रहता है दो आदिवासी गांवों तिल्लोर और काँचरोड की आंगनबाड़ियों के बच्चों के लिए भी समूह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करता है। जो बच्चों के लिए बहुत जरूरी है… चाहे वह सहारनपुर से स्पेशल लकड़ी के खिलौने मंगवाने हो या कुपोषित बच्चों के लिए गुड़ चने नियमित देने हो समूह की माहिलाएं तत्परता से कार्य करती है।
स्वेटर हो, और चाहे उनकी छोटी-छोटी बचत करने के लिए गुल्लक हो। समूह नेकी की दीवार के अंतर्गत बच्चों के परिवारों को भी कपड़े उपलब्ध कराता है... लोकडाउन की अवधि में आशा कार्यकर्ताओं को राशन भी दिया मजदूरों को खाना जूते चप्पल भी उप्लब्सह कराए।
समूह ने 50 सीनियर सिटीजनके पुलिस सहयोग के आई कार्ड भी डीआईजी ऑफिस से बनवा कर दिए समूह का लक्ष्य बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाना उनके मन में आत्म सम्मान की भावना जगाना और उनको वही शिक्षा देना है जो समाज के उच्च वर्ग के बच्चों को मिलती है साथ ही उनकी शिक्षा केवल किताबी ज्ञान बनकर न रह जाए इसका भी ध्यान रखना है छोटी-छोटी बचत भी उनको बतानी है बच्चों को और नाटक के माध्यम से कहानी के माध्यम से शिक्षा देने की नई पद्धति समूह शुरू करने जा रहा है और इसके लिए पतंग नामक बच्चों का समूह एक व्हाट्सएप बनाया है जिसमें सुदूर पूर्व बच्चों को पढ़ाया जाता है और कहानी के द्वारा ड्राइंग के द्वारा कविताओं के द्वारा उनको समझाया भी जाता है।