भाषा की नाव पर सवार संस्कृति का प्रवाह

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राष्ट्रपति के साथ अपनी हाल की रूस और ताजिकिस्तान यात्रा के दौरान इन दोनों ही देशों में हिन्दी भाषा की उपस्थिति देखकर बहुत खुशी हुई। हिन्दी भाषा बोलने और सीखने को लेकर जिस तरह की उत्सुकता इन देशों में दिखी, उसको देखकर यही लगा कि उनके इस उत्साह को अगर बेहतर तरीके से बढ़ावा मिले तो निश्चित ही इन देशों में हिन्दी का परचम ज्यादा बुलंदी के साथ लहरा सकता है।

भाषा दरअसल संस्कृति की महत्वपूर्ण संवाहक है। भाषा की नाव पर सवार होकर ही संस्कृति का प्रवाह दूर-दूर तक पहुँच सकता है। खुशी की बात है कि फिलहाल तो हिन्दी भाषा की ये नाव अपनी ख़ुद की ऊर्जा से हर उस धारा तक पहुँच रही है जहाँ उसे हिन्दी के लिए बेहतर प्रवाह का रास्ता दिखे, लेकिन यदि इसी नाव को नियोजित प्रचार के बेहतर चप्पुओं और इच्छाशक्ति की पतवार का सहारा मिल जाए तो हिन्दी के माध्यम से भारतीय संस्कृति की यह कल-कल चारों ओर प्रवाहमान नजर आएगी।

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रूस में हिन्दी :- रूस की मेरी यह पहली यात्रा थी। जाने से पहले कुछ मित्र जो वहाँ जा या रह चुके हैं, ने एक मुख्य ताकीद ये दी थी कि - जैसे कि हम भारतीयों की आदत होती है- रूसियों के सामने हिन्दी में उनकी बुराई या कोई गोपनीय मंत्रणा करने की कोशिश मत करना। कई रूसी ऐसे भी मिल जाएँगे, जिनकी हिन्दी आपसे बेहतर हो। मित्रों की बात सच निकली। हमारे परिचय में आए कई रूसी बहुत बढ़िया हिन्दी बोल रहे थे।

कुछ ने तो बाकायदा भारतीय दूतावास के माध्यम से लगने वाली कक्षाओं में जाकर हिन्दी सीखी थी तो कई ने बॉलीवुड की फिल्में देखकर तो कई ने अपने मित्रों के माध्यम से। भारतीय दूतावास में कार्यरत ओल्गा न केवल फर्राटेदार हिन्दी बोलती हैं, बल्कि उन्हें हिन्दी फिल्में बेहद पसंद हैं।

आज की पीढ़ी की होने के बावजूद उन्हें पुरानी क्लासिक हिन्दी फिल्में ज्यादा पसंद हैं। ऋषि कपूर उनके सबसे प्रिय कलाकार हैं। जब उन्होंने यह बात बताई तो हमने सोचा- ऐसे ही कह रही होंगी। हमने पूछा- अच्छा ऋषि कपूर की कौन-सी फिल्म पसंद है? तो तपाक से ओल्गा बोलीं- प्रेमरोग। हम चौंके। थोड़ा और कुरेदते हुए पूछा- अच्छा वह तो बहुत पुरानी फिल्म है। कोई गाना भी याद है उसका?

अब हमारी और ज्यादा हतप्रभ हो जाने की बारी थी, क्योंकि ओल्गा तो तुरंत गाने लगी - 'मेरी किस्मत में तू नहीं शायद, क्यों तेरा इंतजार करता हूँ' फिर आगे बोलीं - 'ये गलियाँ ये चौबारा, यहाँ आना न दोबारा।' इसके बाद तो पूछने और समझने को कुछ रह ही नहीं गया था। यही लगा कि बीते समय के जिगरी दोस्त भारत और रूस संस्कृति के इस सेतु को थोड़ा और मजबूत बनाते तो इस पर चलकर एक-दूसरे तक पहुँचने वाले तो कब से तैयार बैठे हैं।

एक और माध्यम जो भाषा और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है वह है विवाह। पुराने समय में राजा-महाराजा नीतिगत आधार पर, अपने राज्य के विस्तार के लिए, संरक्षण देने या लेने के लिए या दोस्ती बढ़ाने के लिए शादियाँ करते थे। फिल्म जोधा-अकबर के माध्यम से हमने इतिहास के आईने में झाँककर ये देखा ही है कि किस तरह एक मुस्लिम राजा और हिन्दू रानी का विवाह दो संस्कृतियों को करीब लाने में मदद करता है।

रूस में भी ऐसे सैकड़ों उदाहरण आपको मिल जाएँगे, जहाँ भारत से यहाँ पढ़ने या कामकाज के सिलसिले में आए युवाओं ने रूसी लड़कियों से शादी कर ली और यहीं बस गए। इन शादियों के माध्यम से रूसी लड़कियों ने हिन्दी सीखी, वे भारत के और करीब आईं और भारतीय लड़कों को रूस में बेहतर स्थायित्व मिला।

इसकी ही एक मिसाल है दिल्ली के निवासी कुलविंदर अरोरा। कुलविंदर दस साल से मास्को में रह रहे हैं और वे यहाँ तब पढ़ने आए थे, जब वे 18 साल के थे। उन्होंने यहीं एक रूसी लड़की अन्ना इवानोवा से शादी कर ली। अन्ना यहाँ जमीन का व्यवसाय करने वाली एक कंपनी में प्रबंधक हैं। अब उनकी डेढ़ साल की एक बच्ची भी है सोफिया अरोरा।

कुलविंदर बताते हैं कि अन्ना को भारत बेहद पसंद है। जब भी वे भारत आती हैं तो मुझे कामकाज की वजह से जल्दी वापस मास्को लौटना पड़ता है, लेकिन अन्ना दो-तीन महीने यहाँ रुककर जाना ही पसंद करती है और यहाँ के तीज-त्योहारों में भी उत्साह से भाग लेती हैं।

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हिन्दी कक्षाएँ :- मास्को में भारतीय दूतावास से संबद्ध जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र के माध्यम से नियमित रूप से हिन्दी की कक्षाएँ चलाईं जाती हैं। केन्द्र के निदेशक मनीष प्रभात बताते हैं कि यहाँ के लोगों को भारतीय संस्कृति में काफी दिलचस्पी है, खास तौर पर हिन्दी सीखने को लेकर।

लखनऊ के रहने वाले हिन्दी के प्राध्यापक डॉ. शिशिर कुमार पांडे यहाँ हिन्दी पढ़ाते हैं। इसके अलावा रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के स्कूल क्र. 653 में तो सारे ही रूसी बच्चे बाकायदा हिन्दी पढ़ते हैं। यहाँ 15 साल से हिन्दी पढ़ा रहीं यूलिया की हिन्दी तो अपने यहाँ के कुछ हिन्दी शिक्षकों को भी पीछे छोड़ दे। इसी तरह एक और हिन्दी शिक्षिका एलिना को बॉलीवुड की फिल्में बहुत पसंद हैं और वे यहाँ के बच्चों को कई बार हिन्दी फिल्मी गानों के उदाहरण देकर हिन्दी पढ़ाती हैं।

जब हम मास्को में थे तब वहाँ अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला भी चल रहा था और वहाँ भारत के स्टॉल पर रूसियों की भीड़ देखकर हिन्दी साहित्य में उनकी रुचि का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था।

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ताजिकिस्तान का हिंदी प्रेम :- उर्दू मिश्रित हिन्दी का चलन ताजिकिस्तान में आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रहा है। यहाँ ताजिक मिश्रित रूसी बोली जाती है और ताजिक भाषा पर फारसी का सीधा प्रभाव है। इसीलिए उर्दू के कई शब्द ताजिक भाषा में जस के तस मिल जाते हैं। जैसे किएक है शब्द-आहिस्ता। जब मेरे एक साथी ने हमारी कार का दरवाजा जोर से बंद कर दिया तो ड्राइवर बोला-ओस्ते ओस्ते। हमें समझते देर नहीं लगी कि वह कह रहा है कि आहिस्ता-आहिस्ता। ऐसे ही वक्त, सफर, दोस्ताना जैसे कई शब्द हैं जो मूल फारसी से ताजिक और उर्दू में आकर दोनों जगह समान हैं।

ताजिक लोग भी बॉलीवुड से खासे प्रभावित हैं और शाहरुख खान, शाहिद कपूर और ऐश्वर्या राय का नाम लेने पर तो ये लोग उछल पड़ते हैं। इन्हें हिन्दी फिल्मी गानों पर नृत्य करने का बेहद शौक है, खास तौर पर 'हम दिल दे चुके सनम' के गानों पर।

राष्ट्रपति की ताजिकिस्तान यात्रा के दौरान एक खास बात यह रही कि जगह-जगह रूसी के अलावा हिन्दी में भी उनके स्वागत के बोर्ड लगे हुए थे। जैसे दुशाम्बे के ड्राय-फ्रूट मार्केट में लगा बोर्ड जिस पर लिखा था- हम भारत के साथ अपनी मित्रता का सम्मान करते हैं या फिर कुलयाब हवाई अड्डे पर लगा बोर्ड- कुलयाब शहर भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का हार्दिक स्वागत करता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भाषा की ये नाव पूरे मध्य और पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति की धारा को निरंतर प्रवाहमान बनाए रखेगी।

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