दशहरा पर निबंध Essay on Dussehra in Hindi

WD Feature Desk
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024 (14:15 IST)
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Dussehra Essay In Hindi: प्रस्तावना- हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार तथा भारतीय संस्कृति के वीरता का पूजक और शौर्य का उपासक माना जाने वाला दशहरा/ विजयादशमी का पर्व प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता है, इसी दिन प्रभु श्री राम ने दशानन रावण का वध किया था। जो कि असत्य पर सत्य की विजय के रूप में जाना जाता है। 
 
असत्य और बुराई पर विजय का पर्व है दशहरा : यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार होने के कारण भारतभर के लोगों द्वारा बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। ये कलाकार आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू-धू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं और उससे उसका अंत हो जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस दिन क्षत्रियों के यहां शस्त्र की पूजा तथा वाहन पूजा की जाती है। 
 
कैसे हुई थी दशहरा शब्द की उत्पत्ति : दशहरा या दसेरा शब्द 'दश' (दस) एवं 'अहन्‌‌' से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का कोई ठिकाना नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। तो कुछ लोगों के मत के अनुसार यह रण यात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त ही जाती हैं, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर रखे जाने वाले हो जाते हैं।
 
दशहरा पर्व का धार्मिक महत्व क्या है : धार्मिक ग्रंथों में दशहरा को वर्ष की 3 अत्यंत शुभ तिथियों में से एक माना गया है, अन्य दो तिथियां हैं चैत्र शुक्ल एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, शस्त्र-पूजा, वाहन पूजा की जाती है। नया भवन, नया वाहन आदि की खरीदारी भी की जाती है। दशहरा या विजयादशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दशमी के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने दशानन रावण का वध किया था। अत: इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस तिथि को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा पर्व 10 प्रकार के पापों से दूर रहने की सीख देता है। यह लोभ, काम, क्रोध, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा हमें देता है। दशहरा पर्व हमें यह भी सिखाता है कि हमें सभी बुराइयों को त्याग कर अच्छाई के मार्ग पर हमेशा चलना चाहिए।   
 
राम-रावण युद्ध की कथा क्या है : रावण प्रभु श्री राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। प्रभु श्री राम की विजय के प्रतीक स्वरूप इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है। इस उत्सव का संबंध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है। दशहरा या विजयादशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। सनातन काल से ही शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्रि प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर लोग नवरात्रि के नौ दिन जगदंबा के अलग-अलग रूपों की उपासना करके शक्तिशाली बने रहने की कामना करते हैं। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। दशहरे का उत्सव भी शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव है।
 
दशहरे पर क्या-क्या आयोजन होते हैं : विजयादशमी या दशहरा पर्व को मनाने के लिए जगह-जगह बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यहां लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ आते हैं और खुले आसमान के नीचे मेले का पूरा आनंद लेते हैं। मेले में तरह-तरह की वस्तुएं, चूड़ियों से लेकर खिलौने और कपड़े, बच्चों के लिए शस्त्र, गदा, तलवार आदि बेचे जाते हैं। इसके साथ ही मेले में व्यंजनों की भी भरमार रहती है। इस समय रामलीला का भी आयोजन होता है। रामलीला में जगह-जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयादशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए या दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा, आयुध-पूजा या आजीविका के लिए आवश्यक औजारों की पूजा, शस्त्र पूजन, हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। 
 
कुल्लू के दशहरे पर हिन्दी निबंध : कुल्लू को उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के बारे में विश्वभर में जाना जाता है। अत: भारत के हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित एक नगर है, यह कुल्लू घाटी में ब्यास नदी के किनारे बसा हुआ है और यहां का दशहरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस दशहरे की खासियत यह है कि जहां सभी स्थानों पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है, वहां कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बलि दी जाती है।
 
कथा : यहां के कुल्लू के दशहरे का सीधा संबंध रामायण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसके पीछे की कहानी एक राजा से जुड़ी है। सन्‌ 1636 में जब जगतसिंह यहां का राजा था, तो मणिकर्ण की यात्रा के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि एक गांव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न हैं। अत: राजा ने उस रत्न को हासिल करने के लिए अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण के पास भेजा। सैनिकों ने उसे यातनाएं दीं, डर के मारे उसने राजा को श्राप देकर परिवार समेत आत्महत्या कर ली। कुछ दिन बाद राजा की तबीयत खराब होने लगी। तब एक साधु ने राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथ जी की मूर्ति लगवाने की सलाह दी। तब अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और तभी से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया। तभी से यहां दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा। अत: यहां का कुल्लू का दशहरा परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। 
 
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