एक साहब इतने मोटे हो गए कि चलना-फिरना मुश्किल हो गया। एक बार सांस अंदर ले लें, तो छोड़ना मुश्किल और एक बार सांस छोड़ दें तो दुबारा लेना मुश्किल।
उन्हें डॉक्टर घोंचू ने कहा- भाई साहब, मर जाएंगे आप, अगर जीना चाहते हों तो अच्छा-अच्छा खाना-पीना छोड़ दो। बगैर नमक के और मटके का पानी पियो।
उन्होंने सोचा, बेकार है ऐसा जीना, न खा सकता हूं, न पी सकता हूं, न चल सकता हूं, न फिर सकता हूं। इससे तो मौत अच्छी। यह सोचकर उन्होंने आत्महत्या करने के लिए आठ माले की ऊंची बिल्डिंग से नीचे छलांग लगा दी, परंतु वे किस्मत के बड़े धनी थे, मरे नहीं। आंख खुली को अस्पताल में पड़े थे। डॉक्टर घोंचू बाजू में खड़े थे।
आदमी ने पूछा - डॉक्टर, क्या मैं जिंदा हूं?
डॉक्टर घोंचू ने गंभीर होकर कहा- हां, लेकिन वे तीनों मर गए जिन पर आप गिरे थे।