अमृतलाल वेगड़, एक ऐसी शख्सियत जिसने नर्मदा यात्रा के अपने जुनून को नदी की निर्मल धार की भांति शब्दों में बांधकर हिन्दी पाठकों को नदी से प्यार करना सिखा दिया। जीवनदायिनी नर्मदा के साथ-साथ बहने वाले, नर्मदा को भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रित करने वाले, नर्मदा की हर बूंद के एहसास को शब्दों में बांधकर पुस्तकाकार देने वाले पर्यावरण प्रेमी अमृतलाल वेगड़जी चिरनिद्रा में लीन हो गए।
अक्टूबर 1928 को जबलपुर में जन्मे वेगड़जी ने 50 की उम्र में नर्मदा यात्रा आरंभ की। सन् 1977 से आरंभ हुई यात्रा टुकड़ों-टुकड़ों में चलती हुई 2009 में पूर्ण हुई। इस यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को उन्होंने अत्यंत रसपूण, भावपूर्ण भाषा शैली में 3 पुस्तकों- अमृतस्य नर्मदा, सौंदर्य की नदी नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा में प्रस्तुत किया। जिस पाठक ने इन पुस्तकों को पढ़ा, वह नर्मदा का प्रेमी हो गया। अपने यात्रा वृत्तांत में उन्होंने न सिर्फ नर्मदा के भिन्न रूपों को वर्णित किया बल्कि पाठकों को जैवविविधता और नर्मदा संरक्षण के प्रति जागरूक भी किया। उनकी चौथी पुस्तक 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' 2015 में प्रकाशित हुई।
वेगड़जी ने 1948 से 1953 तक शांति निकेतन में कला का अध्ययन किया। उन्होंने नर्मदा यात्रा के दौरान नर्मदा के विविध रूपों और उसके तट दृश्यों का अनूठा रेखांकन किया जिसकी प्रदर्शनियां भी लगीं। नर्मदा पदयात्रा वृत्तांत की उनकी 3 पुस्तकें हिन्दी, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, बंगला और संस्कृत में भी प्रकाशित हुईं। नर्मदा परिक्रमा संपन्न होने के बाद वेगड़जी ने नर्मदा की सहायक नदियों की 4,000 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा की। इनमें उनके साथी-सहयोगी बदलते रहे। कभी दोस्त और परिचित साथ चले तो कभी अर्द्धांगिनी ने साथ दिया।
वेगड़जी ने बाल साहित्य के रूप में भी पुस्तकें लिखीं जिनके 5 भाषाओं में 3-3 संस्करण भी निकले। साहित्य और कला में योगदान के लिए अमृतलाल वेगड़जी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें हिन्दी और गुजराती में साहित्य अकादमी पुरस्कार, महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।
एक शिक्षक के रूप में समाज को अपनी सेवाएं देने वाले नर्मदा प्रेमी अमृतलाल वेगड़ हमारे बीच न होकर भी सदैव हमारे साथ रहेंगे। जब तक नर्मदा की निर्मल धार बहती रहेगी, जब तक किनारों के पेड़ हरियाते रहेंगे, जब तक घाटों पर सूर्य अर्घ्यदान होता रहेगा, जब तक जीवनदायिनी अन्न उपजाती रहेगी, तब तक नर्मदा में 'अमृत' का अंश बहता रहेगा।