विश्व पुस्तक मेले में बाल साहित्य कुंभ का आयोजन...

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विश्व पुस्तक मेले में रविवार, 14 जनवरी 2018 को लेखक मंच पर वाणी प्रकाशन द्वारा 'बाल साहित्य कुंभ' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित (Hey Diddle-Diddle) 'तुन-तुन तरा-तरा' की लेखिका डॉ. बाबली मोइत्रा सराफ (इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की प्राचार्य) और 'लॉटून्स' की नवोदित युवा लेखिका कानन ध्रु की किताब पर चर्चा की गई।
 
संवाद वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल द्वारा किया गया। 'लॉटून्स' की परिकल्पना बहुत ही सरल है- बच्चों के लिए कानून के बारे में रोचक कार्टून्स प्रस्तुत करना। कार्टून्स और कथा के जरिए बताने का प्रयास किया गया है कि कानून हम सबको कैसे प्रभावित करते हैं।
 
यह जगजाहिर है कि एक छोटा बच्चा कैसे अंग्रेजी की मशहूर कविता 'ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार' को गुनगुनाने की कोशिश करता है या 'हम्पटी-डम्पटी' की नकल करने की कोशिश करता है। प्रथम उत्तम कहानियों के रूप में बाल कविताएं बच्चों के लिए एक बढ़िया शैक्षिक उपकरण रही हैं जिनके माध्यम से बच्चे बोलना, शब्दों का सही उच्चारण करना और समन्वय करना जैसे कौशल सीख जाते हैं। सबसे प्रसन्नता की बात है कि हमारे बीच मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गईं चुनिंदा कविताओं का हिन्दी अनुवाद और रूपांतरण 'तुन-तुन तरा-तरा' के माध्यम से उपस्थित है।
 
वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत की गई। बाल साहित्य में लॉटून्स एक ऐसी ही श्रृंखला है, जहां कार्टून्स के माध्यम से बच्चों को उनके अधिकार समझने का प्रयास किया गया है।
 
यह प्रयास दो बहनों कानन और केली ध्रु की मेहनत का नतीजा है। कानन ध्रु को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनका स्वागत करती है और उनसे पूछती है कि लॉटून्स का विचार कहां से आया कि बच्चों को खेलते-खेलते कानून सीखने जरूरी हैं?
 
जवाब में कानन कहती हैं कि एक वकील होने के नाते मुझे लगता है कि जब हमें कानून की किताबें पढ़ना भारी लगता है तो सामान्य मनुष्य और बच्चों के लिए तो ये और भी मुश्किल होगा। फिर मैंने कुछ स्कूलों में जाकर बच्चों से बात करना शुरू किया और इस नए प्रयोग को करने का प्रयास किया।
 
अदिति पूछती हैं कि इस किताब को बनाने में कितना समय लगा और इसे कार्टून फॉर्म में लाने का विचार कैसे आया?
 
सहज उत्तर देते हुए कानन कहती हैं कि जब हम बच्चों से बात करते थे तो उनके प्रश्न बड़े रोमांचक होते थे। तब विचार आया कि ऐसा क्या किया जाए कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक यह पहुंच पाए। तब कॉमिक का ख्याल आया। एनआईडी के डायरेक्टर के सहयोग द्वारा हमने इसे कॉमिक रूप में रूपांतरित किया। कॉमिक का प्रयोग कर पूरी दुनिया में अच्छे विचार बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है तो यह माध्यम बेहतर लगा।
 
अदिति माहेश्वरी कहती हैं कि बच्चों को बौद्धिक आतंकवाद में नहीं डालना चाहिए। ऐसे ही कविता छंद में बंधती चली जाती है। छंद, कविता में 'अबे-तबे' जैसे शब्दों की कीमत जो बच्चों के जीवन में होती है उसका बाबली मैम ने बड़ी खूबसूरती से रूपांतरण किया है। मैम के प्रयास के कारण ही कार्टून को भारतीय परिवेश में देख पाना 'तुन-तुन तरा-तरा' के माध्यम से संभव हो पाया है।
 
लॉटून्स का हिन्दी, गुजराती में अनुवाद हो गया है और अब इसे उर्दू में भी अनुदित करने का प्रयास किया जा रहा है। कार्यक्रम में 10 नन्हे पाठकों को 'लॉटून्स' उपहारस्वरूप दी गई जिसे पाकर नन्हे पाठक बड़े ही प्रसन्न नजर आए।
 
अदिति कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कानन से पूछती हैं कि 'लॉटून्स' के अगले भाग में क्या होने वाला है?
 
कानन कहती हैं कि 'लॉटून्स' में पगलू को जो जीनी कानून सिखा रहा है, अब वो कहां से आया है इस रहस्य को खोलना भी जरूरी है। जिसमें बैंक कैसे काम करता है, संसद में क्या होता है और भी नए कानूनों की जानकारी इसी माध्यम से दी जाएगी।
 
अदिति माहेश्वरी कहती हैं कि कानन और केली दोनों ही बहनें गांधीवादी स्कूल से पढ़ी हैं, फिर भी उन्हें बड़े-बड़े विश्वविद्यालय में स्कॉलरशिप पर बुलाया गया तो इस पर आप क्या कहना चाहेंगी?
 
कानन कहती हैं कि हम दोनों ही बहनों ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में ही की है। मातृभाषा में पढ़ने से विचारों की स्वतंत्रता ज्यादा आती है और आप अपने निर्णय दृढ़तापूर्वक ले सकते हैं। ऐसा मुझे लगता है कि अपने मूल मूल्य से जुड़े रहना भी बहुत जरूरी है।
 
कानन का धन्यवाद करते हुए लेखक बालेंदु द्विवेदी की किताब 'मदारीपुर जंक्शन' के नुक्कड़ नाटक के प्रदर्शन द्वारा कार्यक्रम का अंत हुआ।

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