आया मौसम 'बयान' का

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दिलीप गोविलकर 
पांचवां मौसम प्यार का सुना था, अब लीजिए छठा मौसम आया है 'बयान' का। जबसे 'बयानों' का मौसम आया है, क्या बड़ा क्या छोटा, क्या पढ़ा और क्या अनपढ़, सभी अपने-अपने स्तर पर किसी न किसी मंच से अपने श्रीमुख से 'बयान' दे ही देते हैं। फिर देखिए कस्बा, गांव, शहर, प्रदेश और देश-विदेश सभी जगह उसी 'बयान' को लेकर समुद्र मंथन प्रारंभ हो जाता है।


'घटिया सोच', 'राजनीति से प्रेरित', 'देशद्रोही' न जाने कितने अलंकरणों से 'बयानबाज' को अलंकृत किया जाता है। यहां त‍क कि 'बयानबाज' की पत्नी/ बच्चे जिसे मोहल्ले के अधिकांश लोग पहचानते भी नहीं होंगे, वे बेचारे रातोंरात 'हेडलाइन' और 'ब्रेकिंग न्यूज' बनकर छा जाते हैं। विरोधी राजनीतिक दल को बयानबाज की प्रता‍ड़ित अबला पत्नी एक चुनावी अखाड़े की पहलवान नजर आने लगती है, फिर ऐसे बयानों के मौसम से मैं ही क्या, कोई भी अछूता कैसे रह सकता है?
 
मैंने भी बयानों की बहारों में एक बयान देना जरूरी समझा। वैसे भी फटे में टांग डालने की आदत मेरी बचपन से है, तो मैं भला अपनी आदत से बाज कैसे आता? हुआ यूं कि एक दिन जब मैं थका-हारा अपने ऑफिस से घर लौटा, ड्योढ़ी पर तमतमाई पत्नी मुझ पर बरस पड़ी कि तुमसे कितनी बार कहा है कि बाहर जाते वक्त किचन के दरवाजे-खिड़कियां बंद करके जाया करो।

आज फिर 'पूसी' (पड़ोसी की बिल्ली) दूध में मुंह डालकर चली गई। मैंने आव देखा न ताव, तपाक से 'बयान' दे डाला- अरे उसकी तो आदत है सब जगह मुंह मारने की। मेरा बयान पड़ोसन को ऐसा लगा, मानो उसके कान में पिघला सीसा उड़ेल दिया हो। पड़ोसन ने सीधा हमला मुझ पर ही किया- पहले खुद को देखो, फिर दूसरे को कहो।
 
अचानक हुए इस हमले से मैं तैयार नहीं था, सो हकलाते हुए पूछ बैठा- क्या मतलब है आपका? वो तपाक से बोली, घबराओ मत, अभी आने दो इनको, उसके बाद तुम्हें मतलब समझाएंगे। 'आप' से 'तुम' पर कब आ गया, पता ही नहीं चला। चूंकि पड़ोसी देर रात को घर लौटता है, उसके बाद न जाने क्या-क्या होगा, इस गफलत में रातभर करवटें बदलता रहा। सुबह-सुबह कोई अनिष्ट न हो इसलिए मैं खुद ही पड़ोसी को गुड मॉर्निंग करने पहुंच गया और अपने 'बयान' पर खेद जताते हुए अपने शब्द वापस ले लिए। ऐसा प्रदर्शित कर मामला रफा-दफा किया। 
 
शाम को मेरी पत्नी फिर से मुझसे कहने लगी कि ऐसा क्या कह दिया तुमने पड़ोसन की 'पूसी' को? मोहल्ले की सभी महिलाओं के फोन आ रहे हैं। वॉट्सएप पर मैसेज आ रहे हैं कि भाई साहब से कहो कि 24 घंटे में माफी मांगो नहीं तो मोहल्ला छोड़ना होगा। मैंने पत्नी को बताया कि मैंने तो अपने शब्द वापस ले लिए हैं, फिर यह सब क्यों? उतने में पत्थर से लपेटा एक कागज मेरे पास फेंका गया। मैंने उसे उठाया और कागज को एक ही सांस में पढ़ गया। हे भगवान! यह क्या हो रहा है? कल सुबह अपने घर पर पेट्स पैरेट्स की प्रोटेस्ट रैली रखी गई है, इसमें सार्वजनिक रूप से मेरे बयान की निंदा का प्रस्ताव पास होगा और मुझे सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होगी।
 
दूसरे दिन मैंने भी पुलिस सुरक्षा मांग ली। मेरे घर से 50 मीटर दूरी पर एक मंच तैयार किया गया। माइक वगैरह लगाकर देशभक्ति के गाने सुबह से ही बजने लगे। बीच-बीच में मेरा मुर्दाबाद होना भी माइक से मोहल्ले को बताया गया। खूब 'हाय-हाय, मोहल्ला छोड़ो' के नारे लगाए गए। मेरे पूरे परिवार के सदस्यों का नाम लेकर अनाप-शनाप शब्दबाण छोड़े गए। दोपहर तक माहौल को गर्माता देख पुलिस ने प्रोस्टेट पार्टी को खदेड़ दिया। मैंने भी राहत की सांस ली।

शाम को पत्रकारों ने घेरकर पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट अगले दिन के अखबार में हेडलाइन बनाई। देखते ही देखते हम टटपूंजिये वीआईपी बन गए। शाम को विरोधी पार्टी का एक धड़ा घर पर बधाई देते हुए मेरी पत्नी को अपनी पार्टी का पार्षद उम्मीदवार घोषित कर गया। 
 
बयानों के इस मौसम में एक बयान हमें अकल्पित ऊंचाइयां प्रदान कर गया। 

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