इश्क की दुकान बंद है : लोकार्पण एवं परिचर्चा

''इश्क की दुकान बंद है'' छोटी-छोटी जीवन्त कहानियों का एक ऐसा कोलाज है, जिसमें इश्क के सफरनामे पर निकले हुए पात्रों के अनुभवों को शब्दबद्ध किया गया है। यह सफरनामा कहीं-कहीं खुशनुमा एहसास जगाता है, तो कहीं-कहीं त्रासदी के उदास और मायूस रंगों से लबरेज है।




बचपन में देखे गए सलोने सपनों की दुनिया से निकलकर एक बच्चा कब तितलियों और फूलों की दुनिया को सहसा झटककर उस दोराहे पर आ जाता है, जहां से कुछ ऐसे सम्बंधों और ख्वाहिशों को पंख लगते हैं। जिसे भली समझी जाने वाली दुनिया के दरवाजे के भीतर ले जाने की सनातन मनाही चली आ रही है। ऐसे में एक समय वो भी आता है, जब दोस्ती, भरोसा, ईमानदारी और इश्क जैसी बातें बेमानी लगने लगती हैं। काला जादू जानने वाले किसी जादूगर के बक्से से निकलकर उड़ने को आतुर चिड़िया बेसब्री की डाल कुतरती है, जिसे ‘सेक्स’ के अर्थों में समझना सबसे प्यारा खेल बन जाता है।
 
इन कहानियों की फंतासी में पड़े हुए ऐसे अनगिनत पलों में इश्क के सबसे सलोने सुरखाबी पंख नुचते जाते हैं, जो उसे प्रेम कम, कारोबार की शक्ल में बदलने को आतुर दिखते हैं। इसी कारण सेक्स की परिणति पर पहुंचे हुए किरदारों का सपना टूटता है और इश्क की दुकान बंद मिलती है।
            
इश्क की दुकान बंद है के लेखक नरेन्द्र सैनी ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं, लेकिन उनकी पूरी शख्सियत एक किस्सा-गो की है। दिल्ली में पले-बढ़े नरेन्द्र ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएटशन किया है। पेशे से पत्रकार होने के बावजूद अनुवाद से लेकर कहानी लेखन की हर विधा में पिछले एक दशक से उनका सशक्त हस्तक्षेप है। लेखन के इस विशाल संसार में नरेन्द्र की सबसे बड़ी पूंजी यह है कि पूरा जीवन दिल्ली जैसे महानगर में बिताने के बावजूद उनके संवाद कस्बाई भारत की कसमसाहट लिए रहते हैं। उनके पात्र दिल्ली की भव्य इमारतों की परछाई में छिपी अनाम बस्तियों से निकलकर चमकदार सड़कों पर चहलकदमी करने लगते हैं।

जब वे अपने नौजवान किरदारों की जुबान बोलते हैं तो यही लगता है कि जैसे वे आज भी नॉर्थ कैंपस के किसी हॉस्टल में डटे हों। अलग से उनकी नौकरी और लेखकी का मिला-जुला आलम यह है कि सिनेमा के परदे के किरदार महानायक अमिताभ बच्चन हों या युवा प्रतिभा नवाजुद्दीन सिद्दीकी, भाषा और अर्थशास्त्र की बिरादरी के प्रो. कृष्ण कुमार हों या गुरचरण दास, सबके साथ रहगुजर बनाते नरेन्द्र ने कुछ लिखते-पढ़ते, अनूदित और सम्पादित करते हुए पुस्तकों की शक्ल में बहुत कुछ सार्थक संजोने का काम भी किया है।

वाणी प्रकाशन ने विगत 55 वर्षों से हिन्दी प्रकाशन के क्षेत्र में कई प्रतिमान स्थापित किये हैं। वाणी प्रकाशन को फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स द्वारा ‘डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर अवार्ड’ से नवाजा गया है। वाणी प्रकाशन अब तक 6000 से अधिक पुस्तकें और 2500 से अधिक लेखकों को प्रकाशित कर चुका है। हिन्दी के अलावा भारतीय और विश्व साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं का प्रकाशन कर इसने हिन्दी जगत में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। नोबेल पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और अनेक लब्ध प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त लेखक वाणी प्रकाशन की गौरवशाली परम्परा का हिस्सा हैं। हाल के वर्षों में वाणी प्रकाशन ने अंग्रेजी में भी महत्त्वपूर्ण शोधपरक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने राजधानी के श्रेष्ठ पुस्तक-केन्द्र आक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ मिलकर कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला की शुरुआत की है जिनमें ‘हिन्दी महोत्सव’ उल्लेखनीय है। इश्क़ की दुकान बन्द है  पर आयोजित होने वाली परिचर्चा भी वाणी प्रकाशन और आक्सफोर्ड बुकस्टोर के स्वस्थ सम्बन्धों की दिशा में एक अगला कदम है।
 
14 फरवरी को नई दिल्ली के ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर में लेखक और सम्पादक नरेन्द्र शर्मा की इस पहली पुस्तक का लोकार्पण किया गया। वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल, प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी और लेखक नरेन्द्र सैनी के हाथों इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर उक्त पुस्तक पर एक परिचर्चा भी आयोजित हुई। परिचर्चा में अदिति माहेश्वरी-गोयल ने लेखक से बातचीत की। उन्होंने बातचीत की शुरुआत करते हुए इस पुस्तक के कंटेंट की ओर ध्यान दिलाया। लेखक ने कहा कि शायद इस पुस्तक का कंटेंट दमदार था इसलिए इसमें शामिल कहानियों को संपादकों ने प्रकाशित किया और आज यह किताब के रूप में हमारे सामने है। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें हमारे समाज के यथार्थ को चित्रित किया गया है।

संग्रह की कहानियों में पुरुष पात्र ज्यादा भावुक हैं। एक लेखक के रूप में मेरी कोशिश रही है कि किरदार मुझे साथ लेकर चले, मैं कैरक्टर को साथ लेकर नहीं चलता हूं। उन्होंने एक कहानी से अंश का पाठ करते हुए कहा कि हमारे पात्र समाज को नहीं मानते, जैसे कि मैं नहीं मानता हूं। इसके लिए इन्सपिरेशन भी समाज से ही लेता हूं, लेकिन समाज को नहीं मानता हूं। ‘आयशा’ कहानी का जिक्र करते हुए कहा कि अभी भी हम रूढ़िवादी सोच के दायरे से बाहर नहीं निकले हैं। आगे बढ़ रहे हैं लेकिन उतनी ही तेजी से पिछड़ भी रहे हैं। इस संग्रह में ऐसी बहुत-सी कहानियां  हैं जिनके क्लाइमेक्स में पाठक पहले से ही टूट-फूट जाता है।

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए श्रोताओं के बीच से ओम निश्चल ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जात-पात की धारणा से भरा हुआ हमारा समाज सबसे ज्यादा वहीं पतन की ढलान पर उतरा है जहां हम कहते हैं कि हम आधुनिक हो गए हैं। वेलेंटाइन डे पर कितने गुलाब का वध होता है तब जाकर दिल के कोंपले फूटते हैं। उन्होंने लंबी टिप्पणी करते हुए कहा कि हम दरअसल प्रेम के तथाकथित नकली यथार्थ को जीने वाले लोग हैं और यही सच इन कहानियों में उभर कर आया है। परिचर्चा में कई और श्रोताओं ने लेखक से प्रश्न किए। लेखक ने कहा कि प्रेम में जिन्हें हम उदात्त कहते हैं, निश्चित रूप से उस इश्क की दुकान अब बंद हो गई है। वेलेंटाइन डे के अवसर पर आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर की ओर से नीता श्रीधरन ने धन्यवाद ज्ञापन किया और सबको चाय के लिए आमंत्रित किया।

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