आखि‍र क्‍या है लुप्त होती जा रही विधा कुण्डलिया?

बचपन में पढ़ा हुआ "कह गिरधर कविराय" पंक्तियां सभी को याद होंगी और गिरधर की कुण्डलिया सभी ने पढ़ी भी होंगी। अब यह विधा छंद मुक्त काव्य के आ जाने के बाद कम ही प्रचलित है। फिर भी कुछ हास्यकवि अब भी कुण्डलिया लिख रहे हैं या एक बड़ा आसान और रोचक छंद है।

विधान
1) इसमें कुल 6 पंक्तियां होती हैं।
2) पहली दो पंक्ति दोहा एवं अंतिम चार रोला से बने होते हैं अर्थात
एक दोहा+दो रोला =कुण्डलिया
(दोहा एवं रोला की विस्तृत जानकारी भी वेबदुनिया में ही पूर्व में दिए गए आलेखों से प्राप्त की जा सकती है।)

3) हर चरण में  24 मात्रा होती हैं जिनमें
-प्रथम 2 चरण में 13+11 =24
-अंतिम 4 चरण में 11+13 =24

4) जैसा कि कुण्डलिया नाम से स्पष्ट है सांप कुंडली मारकर बैठता है ठीक उसी तरह इस विधा में रचना का पहला और अंतिम शब्द समान होता है, अर्थात एक कुंडली सी बनाता है।

विधान तो प्रथम और अंतिम शब्द एक ही रखने का है पर कई कवियों ने इस नियम का पालन नहीं किया है। जैसे काका हाथरसी की अनेक कुण्डलिया में इस विधान के बिना ही कुण्डलिया लिखी गईं हैं जो अत्यंत प्रसिद्ध हुईं हैं।
मात्रा विधान: इसे गिरधर की प्रसिद्ध कुण्डलिया से समझते हैं

रहिये  लट  पट  काटि  दिन
112  11   11  21  11  =13
बरु  घामें  मां  सोय
11   22   2    21     =11
छांह  न  वाकी  बैठिये
21    1   22    212   =13
जो  तरु  पतरो  होय
2   11   112  21    =11

जो  तरु  पतरो  होय
2   11   112  21    =11
एक  दिन  धोखा  दै है
21    11   22    2 2   =13
जा  दिन  चले  बयारि
2    11   12    121   =11
टूटि  तब  जर  ते  जैहे
21   11   11  2  22   =13
कह  ‘गिरधर’  कविराय
11    1111   11  21   =11
छांह  मोटे  की  गहिये
21    22   2    112    =13
पातो  सब  झरिजाय
22    11   1121      =11
तऊ  छाया  में  रहिये
12    22    2   112   =13

उदाहरण :
1) बादल पागल हो रहे है चिंता की बात
बेमौसम करने लगे मनचाही बरसात
मनचाही बरसात नष्ट फसलें कर डालीं
कृषक हुए हैरान गले फांसियां लगा लीं
सुनो इंद्र महराज मची है कैसी हलचल
करो नियंत्रण सख्त संभालो अपने बादल

2) काव्य विधा को सीखना नहीं बहुत आसान
इतना मुश्किल भी नहीं अगर लगाएं ध्यान
अगर लगाएं ध्यान विधा जो भी अपनाएं
उसकी लय को मन में गहरे खूब बिठाएं
रखें नियम का ध्यान त्याग कर हर दुविधा को
लें अच्छे से साध किसी भी काव्य विधा को
(श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी)

अन्य उदाहरण :

3)अपराधी बेखौफ हैं जनता है बेहाल
न्याय निर्भया को मिले आठ लगाए साल
आठ लगाए साल रोज़ नुचती है बेटी
मुँह पर ओढ़े मास्क मौन मानवता बैठी
लुटी सभ्यता रोज स्वर्ग से देखें गांधी
करें लुटेरे मौज खुले घूमें अपराधी

4)बीती जाए ज़िंदगी जीना रही सिखाय
सारे दुख को भूल के तनिक दियो मुस्काय
तनिक दियो मुस्काय मधुर सब बोलो बानी 
खुशबू दो बिखराय गढ़ो इक नई कहानी 
दुख में भी जो  हँसे तो जानो जंग जीती
जी लो पल पल आज उमरिया जाये बीती

(साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी द्वारा डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित कविता की पाठशाला में अर्जित ज्ञान पर आधारित)

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