भारत एक ऐसा देश है, जिसमें निजाम के लिहाज से कई देश बसते हैं। देश का एक निजाम अमीरों के लिए है, राजनेताओं के लिए है, प्रभावशाली लोगों के लिए है। यह सरकारी निजाम इनके एक इशारे पर इन्हें तमाम सुविधाएं मुहैया कराता है। इनमें वे सुविधाएं भी शामिल हैं, जिनकी इन्हें कोई खास जरूरत नहीं होती। मसलन, बीमार होने पर ये महंगे से महंगे नामी अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं। लेकिन ये ऐसा नहीं करते. क्योंकि सरकारी अस्पताल इन्हें सभी सुविधाएं मुहैया कराते हैं। हालत तो यह है कि अस्पताल खुद इनके घर पहुंच जाता है।
ताजा मिसाल राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की है। हुआ यूं कि पिछले महीने वे बीमार हो गए। फिर किया था, उनके स्वास्थ्य मंत्री बेटे ने घर पर ही चिकित्सकों को तैनात करा दिया। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के 31 मई को जारी विभागीय पत्र के मुताबिक संस्थान के तीन चिकित्सक और दो वार्ड बॉय की ड्यूटी 31 मई से 8 जून तक 10 सर्कुलर रोड, पटना में लगाई गई थी। हालांकि इस पर खासा विवाद हो रहा है, जो होना भी चाहिए। भारतीय जनता पार्टी बिहार विधान मंडल दल के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि लालू प्रसाद यादव के घर पर चिकित्सकों की तैनाती पद का दुरुपयोग है। अगर लालू प्रसाद यादव इतने ज्यादा बीमार थे, तो उन्हें एयर लिफ्ट दिल्ली ले जाना चाहिए था या कम से कम आईजीआईएमएस के आईसीयू में दाखिल करना चाहिए।
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के नियमों के मुताबिक सिर्फ मुख्यमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री के बीमार होने पर ही उनके निवास पर चिकित्सकों को तैनात किया जा सकता है। उनके परिवार वालों के लिए चिकित्सकों की तैनाती का कोई प्रावधान नहीं हैं। हालांकि इस बारे में इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. पीके सिन्हा का कहना है कि चिकित्सकों की तैनाती के लिए बाकायदा आदेश जारी किया गया था। तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री होने के अलावा इंस्टीट्यूट के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन भी हैं, इस नाते उन्हें विशेष अधिकार दिया गया। लालू प्रसाद के नाम से आदेश जारी नहीं किया गया। अगर कोई चिकित्सक कहीं इलाज करने के लिए जाता है, तो उसकी कुछ जिम्मेदारी होती है। संस्थान के चिकित्सकों को आधिकारिक नोटिस देकर ही कहीं भेजा जाता है। अगर कोई सामान्य व्यक्ति भी संस्थान में यह बात कहता है, तो उसे घर पर इलाज की सुविधा दी जाएगी डॉ. सिन्हा कोई भी सफाई पेश करें। क्या उनसे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि अगर वह बीमार थे, तो उन्हें अस्पताल दाखिल क्यों नहीं किया गया ? सवाल यह भी है कि उनके संस्थान के चिकित्सकों ने इस तरह कितने सामान्य नागरिकों के घर जाकर उनका इलाज किया है ?
देश में दूसरा निजाम जनमानस के लिए है, उन लोगों के लिए है, जो बेहद गरीब हैं और महंगे अस्पतालों में अपना इलाज नहीं करा सकते। ऐसे लोग अकसर इलाज के अभाव में अस्पताल के बाहर घर या सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं। ऐसी खबरें आए दिन-देखने और सुनने को मिलती रहती हैं कि फलां ने वक्त पर इलाज न मिलने की वजह से तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। देश की आबादी के हिसाब से यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की बहुत कमी है। सिर्फ सुविधाओं की ही कमी नहीं है, बल्कि अराजकता भी है। कहीं अस्पताल नहीं, कहीं चिकित्सक नहीं, कहीं दवाएं नहीं हैं। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद खराब है। ज्यादातर जगहों पर बिजली की सुविधा भी नहीं है। रिहायशी मकानों की कमी और यातायात की सुविधाएं मुहैया न होने की वजह से चिकित्सक डिस्पेंसरियों में जाने से कतराते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों में हमेशा दवाओं की कमी रहती है। चिकित्सकों की शिकायत रहती है कि सरकार द्वारा दवाएं वक्त पर मुहैया नहीं कराई जातीं। डिस्पेंसरियों द्वारा जिन दवाओं की मांग की जाती है, अकसर उनके बदले दूसरी दवाएं मिलती हैं। जिन दवाओं की एक्सपायरी डेट निकलने वाली होती है या निकल जाती है, उन्हें डिस्पेंसरियों में पहुंचा दिया जाता है, बिना यह सोचे समझे कि इसका मरीज पर क्या असर पड़ेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की योजनाओं का फायदा भी जनमानस तक नहीं पहुंच पाया है। इस मिशन के मानकों के मुताबिक एक ऑपरेशन थियेटर, सर्जरी, सुरक्षित गर्भपात सेवाएं, नवजात देखभाल, बाल चिकित्सा, ब्लड बैंक, ईसीजी परीक्षण और एक्सरे आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जानी थीं। इसके अलावा अस्पतालों में दवाओं की भी पर्याप्त आपूर्ति नहीं की जाती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक़ प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए, लेकिन भारत इस मामले में आज भी बहुत पिछ्ड़ा हुआ है। पिछली एक दहाई में इस कमी में तीन गुना तक बढ़ोतरी हुई है। देश में एक लाख की आबादी पर एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथिक चिकित्सक 80 और 61 नर्सें हैं। एमसीआई के मुताबिक देश में नौ लाख पंजीकृत चिकित्सक हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने राज्यसभा में बताया था कि देश भर में चौदह लाख चिकित्सकों की कमी है और सालाना तकरीबन 5500 चिकित्सक ही तैयार हो पाते हैं। विशेषज्ञों के मामले में हालत और भी बदतर हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सर्जरी, स्त्री रोग, शिशु रोग व अन्य गंभीर रोगों के मामले में 50 फीसद चिकित्सकों की कमी है।
काबिले-गौर बात यह भी है कि भारत दुनिया के अनेक देशों को सबसे ज्यादा चिकित्सक मुहैया कराता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशों में काम करने वाले भारतीय चिकित्सकों की संख्या साल 2000 में 56 हजार थी, दस सालों में यानी साल 2010 में बढ़कर 86,680 हो गई। दरअसल, धनाढ्य वर्ग के लोग उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं और फिर वहीं के होकर रह जाते हैं। भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (एसोचैम) के मुताबिक देश से हर साल चार लाख से ज्यादा युवा विदेशों में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं और फिर पढ़ाई के बाद वहीं बस जाते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश के मामले में देश की हालत अच्छी नहीं है। इस मामले में पड़ोसी देश भूटान, श्रीलंका और नेपाल हमसे बेहतर है। स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में साढ़े 11 हजार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी चिकित्सक है। देश में मेडिकल कॉलेजों की भी कमी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 412 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से 45 फीसद सरकारी और 55 फीसद निजी हैं। देश के कुल 640 जिलों में से महज 193 जिलों में ही मेडिकल कॉलेज हैं। इन कॉलेजों की फीस और डोनेशन बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में जो मोटी रकम खर्च करके चिकित्सक बनते हैं, तो फिर उनका मकसद भी सेवा की बजाए मुनाफा कमाना हो जाता है। वे चिकित्सक बनकर मरीजों से वसूली शुरू कर देते हैं। मामूली सी बीमारी के लिए भी मरीज को गैर जरूरी टेस्ट और महंगी दवाएं लिख कर देते हैं। ऐसे में मरीज इन चिकित्सकों के पास जाने की बजाए अपने गली-मुहल्ले में बैठे किसी चिकित्सक से दवा लेना बेहतर समझता है। केमिस्ट को अपना हाल बताकर दवा लेने वालों की भी कोई कमी नहीं है।
बहरहाल, मुद्दा लालू प्रसाद यादव के इलाज का नहीं है। मुद्दा सरकारी सुविधाओं के दुरुपयोग का है, पद के दुरुपयोग का है। जिस देश में लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं, उस देश में जनमानस की परवाह किए बिना किसी के घर को ही अस्पताल में तबदील कर देना क्या सही है? बिल्कुल नहीं। अगर इस मुद्दे पर लालू यादव का विरोध हो रहा है, तो सही है। वहां के मुख्यमंत्री को भी इस बारे में जवाब देना चाहिए।