लिखे जाने से पहले ‘कविता’ लेखक की ‘आत्मा’ में गूंजती है

प्रेम और कला की अज्ञात सृष्‍ट‍ि अपने अव्‍यक्‍त और अकथ में रहती है, कुछ प्रेम दुनिया में नहीं आता, वो वहीं सबसे पवित्र है एक तरफ, अपने अकथ में।

एक संगीतकार अपनी मृत्यु के साथ बहुत सारी धुनें और गीत अपने साथ ले जाता है। वो सारे गीत जो हम कभी नहीं सुन सकेंगे। जो दुनिया में कहीं भी और कभी भी नहीं गाए जाएंगे।

क्या इसी तरह बहुत सारे उदास प्रोज और सुंदर कविताएं दुनिया में आने से रह जाती हैं। यहां आने से बच जाती हैं। लेखक के मरने पर, कवियों की मौत के बाद!

आदमी की मृत्यु टल जाने से क्या संसार में और भी अनजान कलाएं घट सकती थीं। या ऐसे गीत और कविताएं लिखी जा सकती थी जिन्हें हम कभी सुन और पढ़ नहीं पाएंगे।

क्या कलाएं अपने होने या रचे जाने का समय चुनती हैं, जैसे मृत्यु के घटने का समय तय है। मैं उस अज्ञात दुनिया में दिलचस्पी रखता हूं, जहां लिखे जाने से पहले कविता किसी लेखक की आत्मा में गूंजती रहती है।
जहां किसी मन में कोई अनगढ़ गद्य बनता- बिखरता और धीमे- धीमे सरकता रहता है अंदर ही अंदर।

फिर किसी दिन वो लिखे जाने से पहले ही ख़त्म हो जाता है। आत्मा के गलीचे में घुल कर कहीं गुम हो जाता है।
गीत की वो धुनें और तराने जो सिर्फ मन में ही आकार लेते हैं। और फिर कभी बाहर नहीं आ पाते हैं। वे वहीं रह जाती हैं। फिर हम उन्हें किसी पुरानी चोट या घाव की तरह धुंधला- धुंधला याद करते रहते हैं।

जैसे अब तक न पढ़ी गई किसी किताब का रोमांच। किसी अनजान शहर से मुलाकात के पहले का रहस्य।
किसी स्टेशन के आउटर पर खड़ी ट्रेन की उबासी और नींद में डूबी हुई आंखों की प्रतीक्षा।

जैसे अनटोल्ड लव। अकथ प्रेम। प्यार के उस तरफ वाला किनारा। जहां अक्सर लोग नहीं पहुंच पाते हैं।
प्रेम के अज्ञात किनारे जिसकी प्रतीक्षा में दुनिया के ज़्यादातर प्रेमी इसी तरफ खड़े रह जाते हैं।

ये शायद ईश्वर की अज्ञात सृष्टि है। जिसका दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं, वो सिर्फ भीतर ही बनती और नष्ट होती है। जिसके होने का कोई सुबूत नहीं है। लेकिन जिसका नहीं होना भी सच नहीं है।

यह अज्ञात सृष्टि है। ना लिखी गई कविता, गीत और गद्य की तरह। किसी ना गाए गए गीत और न रचे गए संगीत की तरह। अपने नहीं होने में उनका ख़्याल है। कभी न कहे गए इकतरफा प्रेम की तरह।

नहीं जान पाने, या नहीं जानने के रहस्य की ब्यूटी। अज्ञात की अनमनी सुंदरता। अक्सर बहुत सुंदर ख़्याल दुनिया में आने से डरते हैं। इसलिए कुछ कविताएं, गीत और गद्य दुनिया में नहीं आते। कुछ कलाएं और पंक्तियां वहीं रह जाती हैं भीतर। और मरने पर वो अनगढ़ पंक्तियां आदमी के साथ चली जाती हैं।

कुछ प्रेम दुनिया में नहीं आता, वो वहीं सबसे पवित्र है, एक तरफ, अपने अकथ में।

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