मधुदीप: राम नाम जपते रहे और काम करते रहे

शनिवार, 15 जनवरी 2022 (13:47 IST)
स्मृति शेष
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे,
दिशा प्रकाशन संस्था दिल्ली के संस्थापक और सम्पादक देश के सुप्रसिद्ध लघुकथाकार मधुदीप के असामयिक निधन से लघुकथा जगत में सन्नाटा पसर गया है।

लगने लगा है कि मधुदीप के रूप में लघुकथा का मधु'दीप' बुझ गया है। मधुदीप स्वयं एक बेहतर लघुकथाकार थे। लघुकथा के प्रति उनका समर्पण यहां तक रहा कि उन्होंने अपने दिशा प्रकाशन के बैनर तले लघुकथा- विधा पर केन्द्रित 'पड़ाव और पड़ताल' के श्रंखलाबद्ध तकरीबन 32 खण्ड प्रकाशित किए और इस अर्थ में लघुकथा के क्षेत्र में अपनी खास और गौरतलब भूमिका निभाई है।

लघुकथा के प्रति मधुदीप का अनुराग कितना व्यापक था इस बात का पता इससे लगता है कि मधुदीप ने  देश के हर प्रान्त के, हर आयु वर्ग के लघुकथाकारों की लघुकथाओं का प्रकाशन किया साथ ही देश की महिला लघुकथाकारों को महत्व देते हुए उनकी लघुकथाओं का पृथक संग्रह प्रकाशित कर उनका मार्ग प्रशस्त किया।

मधुदीप स्वयं एक प्रयोगधर्मी लघुकथाकार भी रहे हैं, उन्होंने देशभर के लघुकथाकारों से प्रयोगधर्मी लघुकथाएं आमन्त्रित कर उनके प्रकाशन की बागडोर भी हाथ में ली थीं।

मधुदीप ने देश में जहां एक ओर लघुकथा सृजन की नई पीढ़ी तैयार की वहीं दूसरी ओर लघुकथा के आलोचक भी तैयार किए। यानी दिशा प्रकाशन का नाम सार्थक सिद्ध करने में मधुदीप ने लघुकथा की हर दिशा में प्राण प्रण से कार्य किया है।

लघुकथा की समीक्षा के क्षेत्र में देश के महत्वपूर्ण समीक्षकों की कलम से 'लघुकथा के समीक्षा बिन्दु' नामक सामग्री तैयार कर एक बृहत पुस्तक के रूप में उसका प्रकाशन कार्य मधुदीप के किये कार्यों में मील के पत्थर की तरह सर्वकालिक चर्चित रहेगा। इसके अलहदा मधुदीप की एक विशिष्ट लघुकथा 'नमिता सिंह' हर देश काल में याद की जाएगी।

नारी शक्ति और नारी स्वाभिमान का विचार थामे यह लघुकथा इस नाते भी रेखांकन योग्य है कि नमिता सिंह नामक मधुदीप की इस लघुकथा पर देश के विभिन्न आलोचकों ने अपने अपने स्तर से समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत किये हैं, जिनका पृथक दस्तावेजीकरण मधुदीप की नमिता सिंह नामक पुस्तक रूप में किया हुआ है।

मधुदीप द्वारा लघुकथाओं पर करवाए गए कार्य की बहुलता और विविध विषयों पर लघुकथाओं के संग्रह की व्यापकता का जो भण्डारण सजाया गया है वह निस्संदेह लघुकथाओं पर शोधकर्ताओं के हित में एक उपयोगी सामग्री की तरह उपलब्ध है।

इस तरह मधुदीप द्वारा लघुकथा पर किया हुआ सम्पादन कार्य देर सवेर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययन/अध्यापन के पाठ्यक्रम में सम्मिलित होगा ? इसका सकारात्मक उत्तर भविष्य देगा!'

पड़ाव और पड़ताल' के 32 खण्ड के सिलसिलेवार प्रकाशन के बाद अभी अपनी मृत्यु के पूर्व मधुदीप ने लघुकथा की दिशा में अकल्पनीय कार्यो को हाथों में लिया था और ऐसे अप्रत्याशित कार्यो के अभिलेखन बाबत  महत्त्वपूर्ण लेखकों का चयन भी स्वनिर्णय के बूते ले लिया था मगर हौसलों का यह अभिमन्यु लघुकथा के कुरुक्षेत्र में नियति के हाथों इस तरह छल लिया जाएगा यह कौन जानता था?

मधुदीप ने लघुकथा विधा के पक्ष में निष्ठा के साथ जो सारस्वत कार्य सम्पादित किया है वह युगों तक मधुदीप के नाम की कीर्ति पताका बन लहराता रहेगा। इन्हीं आशयों के पुष्पगुच्छ मधुदीप की आत्मा को समर्पित है।

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