success story of pooja pal: कहते हैं, गुदड़ी में लाल पलते हैं – यानी गरीबी और अभाव में भी असाधारण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अगेहरा गांव, तहसील सिरौली गौसपुर की रहने वाली पूजा पाल की। गरीबी में पली-बढ़ी इस बेटी ने अपनी लगन और वैज्ञानिक सोच से अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन किया। उनकी यह यात्रा, घास की छप्पर से ढके कच्चे घर से शुरू होकर जापान के प्रतिष्ठित मंच तक पहुंची, जो यह साबित करती है कि प्रतिभा किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती।
कौन हैं पूजा पाल?
पूजा पाल एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां जीवनयापन के लिए हर दिन संघर्ष करना पड़ता है। उनके घर के नाम पर कच्ची दीवारें और उस पर घास-फूस की छत पड़ी है, जिसे बारिश के पानी से बचाने के लिए प्लास्टिक का सहारा लेना पड़ता है। पूजा की मां, सुनीता देवी, एक सरकारी स्कूल में रसोईया का काम करती हैं, जबकि उनके पिता, पुत्तीलाल, मजदूरी करके अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। ऐसे अभावग्रस्त माहौल में भी, पूजा ने अपने सपनों को मरने नहीं दिया और शिक्षा तथा विज्ञान के प्रति अपनी गहरी रुचि को बनाए रखा।
धूल रहित थ्रेशर मशीन का आविष्कार: किसानों और पर्यावरण के लिए वरदान
पूजा पाल ने अपनी प्रतिभा का लोहा एक ऐसे आविष्कार से मनवाया, जिसने न केवल किसानों के लिए बड़ी राहत प्रदान की, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने धूल रहित थ्रेशर मशीन का आविष्कार किया। पारंपरिक थ्रेशर मशीनें अनाज से भूसा अलग करते समय भारी मात्रा में धूल और छोटे कण हवा में छोड़ती हैं, जिससे किसानों और आसपास के लोगों को साँस संबंधी गंभीर बीमारियाँ होने का खतरा रहता है। साथ ही, यह पर्यावरण को भी प्रदूषित करता है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान:
पूजा के इस अभिनव विज्ञान मॉडल को स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उनकी प्रतिभा को पहचान मिली और उन्हें अपने आविष्कार को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर मिला। दिए की रोशनी में पढ़ाई करने वाली और घास की छप्पर के नीचे रहने वाली इस ग्रामीण लड़की ने जापान जैसे विकसित देश में आयोजित एक प्रतिष्ठित कार्यक्रम में अपनी जगह बनाई। यह उनके और उनके परिवार के लिए एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी, जिसने न केवल उनके गांव, बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया।
जापान का यह सफर पूजा के लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि उनके सपनों की उड़ान थी। यह इस बात का प्रमाण था कि यदि इरादे मजबूत हों और कड़ी मेहनत करने का जज्बा हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।