भारत गांवों में बसता है। गांवों में आज भी सामाजिक कुरीतियां कम नहीं हुई हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने छुआछूत को मिटाने का नारा दिया। उनका जीवन भी सामाजिक समरसता की मिसाल है। गांधीजी ने स्वाधीनता आंदोलन में जितने भी प्रकल्प तय किए, उनका ध्येय भारत की सामाजिक विषमता को पाटना था। वे चाहते थे कि समाज में ऊंच-नीच, भेदभाव, लिंग अनुपात और आर्थिक संपन्नता, विपन्नता की खाई खत्म हो और भारत एक लय, एक स्वर, एक समानता और एक अखंडता के साथ मंडलाकार प्रवृत्ति में विश्व का नेतृत्व करे। कुछ ऐसी ही परिकल्पना पं. दीनदयाल उपाध्याय ने भी की। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सामाजिक एकता के इसी प्रकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं।