महाजन ने अपने शोक संदेश में कहा- बैरागीजी का देहांत समस्त साहित्य जगत एवं कविताप्रेमियों के लिए अपूरणीय क्षति है। 'जो मेरा संस्कार बन गई, वो सौगंध नहीं बेचूंगा', ऐसा उन्होंने लिखा ही नहीं, बल्कि उस पर अमल भी किया। बैरागीजी अपने प्रशंसकों एवं प्रियजनों से पत्रों के माध्यम से जुड़े रहते थे। मुझे भी समय-समय पर वे पत्र भेजते रहे, जो अक्सर कविता के रूप में होते थे। उन्होंने विशेषकर बच्चों और नौजवानों के लिए कई कविताएं लिखीं। उनकी कविताओं में समाज का यथार्थ एवं देशप्रेम की भावनाओं का विशिष्ट स्थान था। उनकी कविताओं के साथ ही उनके जीवन में भी जोश और उत्साह साफ झलकता था। इसका एक उदाहरण ये कुछ पंक्तियां हैं-