राजेंद्र यादव रचनावली का लोकार्पण एवं परिचर्चा

नई दिल्ली। समाज के वंचित तबके और स्त्री-पुरुष संबंधों को अपने लेखन का विषय बनाने वाले महान लेखक राजेंद्र यादव की रचनावली का लोकापर्ण वीमेन प्रेस कोर्प्स, विंडसर प्लेस, राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा किया गया। इस मौके पर वरिष्ठ आलोचक निर्मला जैन, कथाकार विश्वनाथ त्रिपाठी, कथाकार आलोचक अर्चना वर्मा संयोजक के रूप में बलवंत कौर एवं राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी मौजूद थे। अर्चना वर्मा और बलवंत कौर इस रचनवाली के संपादक है। 
 
राजेंद्र यादव आजाद हिंदुस्तान की दहलीज पर तैयार खड़ी नौजवान पीढ़ी के उस समुदाय के सदस्य हैं जिसकी मानसिकता 20वीं सदी के तीसरे-चौथे-पांचवें दशक में विश्वव्यापी निराशा और मोहभंग में संरचित हुई है। उनके उपन्यासों में ऐसे ही किसी जड़ीभूत पारिवारिक-सामाजिक-राजनितिक आग्रहों के उच्छेदन का अभियान छेड़ा गया है। रचनावली के खंड 1 से 5 तक में संकलित उपन्यास इसकी गवाही देते हैं। 
 
राजेंद्र यादव, हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध पत्रिका हंस के संपादक और लोकप्रिय उपन्यासकार थे। जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं पर उनकी समान पकड़ थी। राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य का एक मजबूत स्तंभ थे।

राजेन्द्र यादव को हिन्दी साहित्य में ‘नई कहानी’ के दौर को गढ़ने वालों में से एक माना जाता है। उन्होंने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ नई कहानी आंदोलन की शुरुआत की।  साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा 1930 में प्रकाशित पत्रिका ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरंभ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी।

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