(कार्तिका सिंह)
प्रेम को धैर्य की दरकार होती है। वो अपने घटने के लिए लंबे समय तक इंतजार करता है। ठीक इसी तरह काफी वक्त के बाद जब एक सुंदर किताब पढ़ी जाती है तो ठीक वैसा ही अहसास होता है, जैसे देर तक प्रेम का इंतजार करने के बाद होने वाले सुख का अहसास होता है। इंतजार में लिपटे हुए प्रेम को महसूस करना ही एक अलहदा बात होती है।
तकरीबन दो महीने पहले एक किताब से मेरा वास्ता हुआ। उसी दिन से उसे लेकर लिखने के बारे में सोच रही हूं। लेकिन आज जा कर उसके बारे में लिख पा रही हूं। कई बार सोचा कि जब किताब पूरी पढ़ लूंगी, तभी कुछ कहूंगी और लिखंगी, तभी इसके बारे में लिखूं सकूंगी।
हालांकि कुछ किताबें ऐसी होती हैं, जिन्हें चाहकर भी पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सकता। आख़िरी पन्ने तक पहुंचने के बाद भी आप फिर से किसी एक कविता, एक पंक्ति, या एक शब्द के पास वापस लौट सकते हैं, उसके साथ इस तरह जुड़ जाएंगे जैसे कि वो आपके लिए ही लिखा गया हो।
किताबों से इतर ये किताब आपके मन से होते हुए, कब आपकी सोच और रूह तक पहुंच जाएगी, इसे वक़्त कह पाना और समझना मुश्किल है। शायद पलक झपकने से भी कम समय में यह आपके दिल पर एक छाप छोड़ जाएगी।
'इंतज़ार में आ की मात्रा — कवि और लेखक नवीन रांगियाल का कविता संग्रह है, जिसमें तकरीबन 170 कविताएं हैं— इन्हें पढ़ने के बाद आप वैसे नहीं रहते जैसे पहले थे। एक नई-सी ऊर्जा भीतर बहने लगती है। बिना किसी हड़बड़ी के। बिना किसी जल्दबाज़ी के।
हर शब्द में एक सहजता है। एक सरलता है। जैसे-जैसे आप पन्ने पलटते हुए आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे कभी लौटकर पिछले पन्ने भी टटोलने लगते हैं। क्योंकि वहां कुछ छूटा हुआ सा लगता है— और वही छूटा हुआ सबसे ज़्यादा अपना लगता है।
कभी लगता था कि मन भावनाओं का ज़ाल है। जिसके तले सारा ब्रह्माण्ड समा सकता है और शायद शब्द इन भावनाओं को व्यक्त करने और जताने की राह कम, और बोझ ज़्यादा लगते हैं। वैसे ही जैसे, जब आपके पास बहुत कुछ होता है कहने के लिए, पर बताना नहीं आता। जाहिर करना नहीं आता।
अगर शब्द इन कविताओं जितने ही सरल और सहज होते हुए, एक असीम और गहरा अर्थ छुपाये हुए हों, तो उन्हें बयां किया जा सकता है।
खैर, 'इंतज़ार में आ की मात्रा'— कविताओं का ये संग्रह आपको भावनाओं के हर क्षीतिज पर लेकर जाएगा। नवीन पत्रकार हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया, लोकमत, वेबदुनिया जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ जुड़ चुके हैं। इन प्रोफ़ेशनल परिचयों से इतर — वे कमाल के कवि और लेखक हैं।
मुझे नहीं पता कविताओं ने उन्हें ढूंढा या उन्होंने कविताओं को, पर उनके द्वारा लिखी हर कविता, हर प्रोज, हर शब्द आत्मीयता की गंध अपने में समेटे हुए हैं। जैसे वो लिखते हैं— ये दुनिया तब तक चलती रहेगी, जब तक हम किसी से मिलने जाते रहेंगे।
एक जगह उनकी कविता है... दुनिया में सबकुछ सही चल रहा है
जहां कहना था, वहां चुप्पियां रख दी गईं
जहां रोकना था, वहां जाने दिया
हर जगह सही बात कही और सुनी गई
सभी ने अपने लिए सबसे सही को चुना
सबकुछ सही तरीके से रखा गया
कहीं भी कोई गलती नहीं की गई
नतीजतन, सारे हाथ गलत हाथों में थे
सारे पांव गलत दिशाओं में चले गए
दुनिया में सारे फैसले सही थे
इसलिए सारे सफ़र ग़लत हो गए।
जिंदगी और नौकरी की दुश्वारियों में— कला का सृजन बेहद जरूरी लगता है। इस अनुभूति को अभिव्यक्त करना ही जैसे नवीन का मुख्य काम हो। वो दिल के ज़ज़्बातों को इतनी सरलता से आपके सामने रख देते हैं, जैसे कि वो शब्द आपके लिए ही लिखे गए हैं। लगता है, यही नवीन का असली काम है— जो तुम्हारे लिए नहीं लिखा गया,
उसमें भी उपस्थित हो
और अदृश्य की तरह
मौजूद हो तुम
हर तरफ़
दूरी में बहुत दूर जैसे
ज़िंदगी में "न" की बिंदी
इश्क़ का आधा "श"
और इंतज़ार में "आ" की मात्रा की तरह।
प्रेम और संवेदनाओं से आगे बढ़कर, वे आज के हालात के बारे में भी बखूबी लिखते हैं।
सबसे पहले जबान काटी जाती है
सबसे पहले रीढ़ तोड़ी जाती है
फिर चाहे वो किसी आदमी की हो
या हाथरस की किसी लड़की की
और जब वह लिखते हैं — "एक पंक्ति की प्रतीक्षा के लिए लंबे समय तक जिया जा सकता है,
एक पूरी रात काटी जा सकती है। दो वाक्यों के बीच के कुछ भी न होकर एक आसान ज़िंदगी चुनी जा सकती है।"
तो दो अक्षरों और दो वाक्यों के बीच में रहना! मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। वे दो वाक्यों के बीच की 'ख़ामोशी' को भी कविता बना देते हैं। उस खालीपन को जी लेना— शायद वही सबसे बड़ी कविता है।
आप इस किताब को Amazon, गूगल बुक्स या सेतु प्रकाशन की वेबसाइट से ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं।
अगर आप साहित्य, शब्दों और ख़ासतौर पर कविताओं से प्रेम करते हैं तो इंतजार में आ की मात्र जरूर पढ़िए। नवीन की कविताओं का दूसरा संग्रह भी जल्द आ रहा है, जिसका बेसब्री से इंतजार है। नवीन से उम्मीद है कि आगे भी पत्रकार होने के बावजूद उनकी कविताएं ऐसे ही उन ख़बरों को ओवरटेक करती रहेगीं, जो वे दफ्तर में लिखते हैं।
(नवीन रांगियाल की किताब इंतजार में आ की मात्रा की यह समीक्षा कार्तिका सिंह ने की है। कार्तिका सिंह पेशे से पत्रकार हैं, कविता, संगीत और अन्य कलाओं के साथ पढ़ने- लिखने में उनकी विशेष रूचि है।)