पता नहीं ऐसा क्यों होता है, इस वक्त मेरे हाथ में अल्बर्ट कामू की 'मिथ ऑफ सिसिफ़स' है और मुझे काफ़्का याद आ रहा है। फ्रांज़ काफ़्का। एक ऐसा लेखक जो प्रकाशित नहीं होना चाहता था, उसने अपना ज़्यादातर लिखा हुआ जला दिया। जो थोड़ा बहुत बचा था उसे मरने से पहले अपने मित्र मैक्स ब्रॉड को दे दिया, कुछ अपनी प्रेमिका डोरा को सौंप दिया।
दोनों को काफ़्का ने कहा था कि यह सारे ड्राफ़्ट जला दें, लेकिन दोनों ने ऐसा नहीं किया और इसी वजह से काफ़्का का कुछ और लेखन दुनिया में रह गया।
किसी कला में जो लोग बहुत उत्कृष्ट होते हैं वे दुनिया में 'कल्ट' हो जाते हैं, उनके न चाहते हुए भी। काफ़्का वही था। एक कल्ट, लेखन का एक पंथ। शायद इसीलिए उसके लेखन शेली को कई मर्तबा 'काफ़्काएस्क' कहकर परिभाषित किया जाता है। संभवतः काफ्का की बेहइ महत्वपूर्ण कृतियां 'द ट्रायल' और 'मेटामॉरफसिफ़स' की वजह से।
जिसने 'द कासल', 'द ट्रायल' और 'मेटामॉरफसिफ़स' लिखे हो, वो दुनिया से इतना डरा और सहमा हुआ क्यों था। दुनिया में नज़र आने से कितना डरा हुआ होगा? आखिर क्या वजहें थीं कि काफ़्का अपनी किताबें नहीं छपवाना चाहता था।
इस दौर में जब प्रकाशित होना लेखकों और कवियों के लिए रोग की तरह हो, वहां काफ्का जैसा लेखक चालीस की उम्र के पहले ही यह कृतियां लिख डालें और और उन्हें प्रिंट भी न करना चाहे, यह कैसा संशय, विरक्ति या भय रहा होगा?
एक ऐसा महान लेखक जिसे सिर्फ लिखना ही आता है, वही एक काम वो जानता है और उसे ही दुनिया के सामने नहीं आने देना चाहता है। यह एक आदमी के भीतर की स्थिति की खोज का विषय है, तब और भी ज्यादा जब यह विषय काफ्का को लेकर हो।
सुसाइड और एब्सर्डिटी पर अल्बर्ट कामू की किताब पढ़ते हुए मुझे फ्रांज़ काफ़्का का ख़्याल क्यों हो आया? क्या कामू जीवन की जिस अर्थहीनता (एब्सर्ड) की बात करता है उसको समझने के लिए काफ़्का मेरे ज़ेहन में चला आया?
संभव है काफ़्का भी, कामू की तरह ही जीवन और लेखन की अर्थहीनता एब्सर्डिटी को जानता था या जान गया था, इसलिए उसने अपने ज़्यादातर लेखन को जला दिया! लेकिन सवाल यह भी है कि जिस अर्थ-हीनता को कामू बेहतर जानता था और उस पर एक किताब (मिथ ऑफ सिसिफस) ही लिख डाली उसने कभी अपनी किसी रचना को नष्ट नहीं किया। कामू लिखना चाहता था और प्रकाशित होना भी।
काफ़्का की जब मौत हुई तो उसने अपने सारे ड्राफ़्ट अपने दोस्त मैक्स ब्रॉड और प्रेमिका डोरा को दे दिए जलाने के लिए। वहीं जब अल्बर्ट कामू की कार दुर्घटना में मौत हुई तो उसके हाथ से छूटकर उसकी सबसे प्रतीक्षित नॉवेल 'द फर्स्ट मैन' के पन्ने हवा में बिखर कर यहां वहां उड़ रहे थे। काफ़्का ने अपने शब्दों और पन्नों से विरक्ति पा ली और कामू उसे अंत में अपनी मृत्यु के समय भी अपने ज़िस्म से लगाए हुए था।
निर्मल वर्मा कहते रहे कि हमें अपने लगावों को पीछे छोड़ते चले जाना चाहिए। कामू को लेखन से मोह था, वो लेखन को जीता था। काफ्का लिखते रहने के बावजूद प्रकाशित होने से भयभीत था और निर्मल वर्मा एक दार्शनिक दृष्टि के साथ घोषणा करते हैं कि हमें अपने लगावों को छोड़ते जाना चाहिए। तीन लेखक और तीन दृष्टियां। हालांकि इन दृष्टियों से उनका क्या मतलब था, ये तो वही तीनों लेखक ही जानते हैं। हम सिर्फ अटकलें लगा सकते हैं।
लेखन काफ़्का का जूनून था और फिर भी उस जुनून से अस्तित्व में आई अपनी रचनाओं को वो नष्ट कर देना चाहता था। यही उसकी अंतिम इच्छा थी। काफ़्का ने एक बार कहा था... Follow your most intense obsessions mercilessly.
इस पंक्ति से काफ्का का क्या अर्थ रहा होगा। क्या लेखन ही उसका सबसे इंटेंस ऑब्सेशन था या इसके आगे और अलावा वो कुछ ओर सोच रहा था। मुझे अभी भी संशय है, काफ़्का ने जो लिखा उससे बेहतर कुछ लिखना चाहता था या वो सच में अपनी रचनाओं के लिए क्रूर था?
कई बार लगता है कि काफ्का एक रिलक्टंट राइटर है, उसके बावजूद उसने मेटामॉरफासिस और कॉसल जैसे क्लासिक्स रचे। दूसरी तरफ दुनिया में काफ़्का उसी जुनून के साथ को पढ़ा जाता है। दूसरे राइटर्स काफ्का के बारे में कहते हैं कि काफ्का का मेटामॉरफासिस वो रचना है, जिसके बाद लेखकों का एक वर्ग है जो सोचता है कि दुनिया में इस तरह भी लिखा जा सकता है। इस तरह भी लेखन की परंपरागत शैली को ध्वस्त किया जा सकता है।