दामिनी हूं मैं

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हां दामिनी हूं मैं
अपनी चमक और कड़क के साथ
पोत दी है कालिख उन चेहरों पर
जो कहते नहीं थकते
होने देना था बलात्कार
और लेना था मज़ा

मूर्खो वो जिस्म नहीं
अधिकार की लड़ाई थी
आज़ादी की मांग थी
कैसे मार देती मैं
अपनी ही आत्मा को
क्यों कोई मेरी आज़ादी का
क़त्ल करे सरे आम यूं ही

नहीं लुंगी अन्न का दाना भी
जब तक फांसी नहीं मिलती
सारे अपराधियों को
कटवा दी अपनी आंतें
नहीं पीउंगी पानी ी बूँद तक

कंदील मार्च वालों
पानी की कैनन वालों
लाठियों ,अश्रु गैस वालो
बंद रहो अपने कमरों में
मीडिया बढाएं अपनी ीआरपी
सरकार बनाएं अपने कानून
न्यायाधीश पढ़ें धाराएं

मैंने सुन्न कर लिया है दिमाग को
रोक ली हैं दिल की धडकनें
और लिख दी है सजा
हैंग देम फ्रॉम नक् टिल डेथ
और कर दिए हस्ताक्षर
अपनी मौत से

जा रही हू
कि मुझे देख कर
नाक भौं न सिकोड़े
हेय न समझे
न शर्मिंदा हों मेरे अपने ही
ठहराए अपराधी मुझे ही
उस अपराध के लिए
जो मैंने किया ही नहीं

जो दोस्त हैं
भाई या चाचा मामा हैं
मनाएं सोग जाते साल की लाश पर
न करें स्वागत नए वर्ष का
खड़े हो मेरे मां बाप के साथ
कि दामिनी कुछ हमारी भी लगती है....

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