लेटी रही नदी

- प्रेमशंकरघुवंशी
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रातभर

लेटी रही नदी

रातभर -

जागते रहे घाट

रात भर -

तारे लगाते रहे गश्त

रात भर हवा संग -

बजाते रहे पेड़ सीटियाँ

लेकिन सभी की -

नजरों से ओझल

रातभर -

नदी की सेज पर पसरा रहा कोहरा

और सूरज के आने तक -

निश्चिंत होकर लेटी रही नदी !!

साभार: पहल